बढ़िया लिखीं,बढ़िया सुनीं, बढ़िया देखीं – कहली मालिनी अवस्थी

by | Sep 8, 2013 | 3 comments

malini-bhagalpurपिछला दिने बिना मतलब एगो विवाद का केन्द्र में आ गइल मालिनी अवस्थी आजु का दैनिक जागरण में प्रकाशित अपना लेख में भोजपुरी के सम्मान दिआवे का दिशाईं कुछ राय दिहले बाड़ी. मालिनी अवस्थी के कहना बा कि भोजपुरी के कबो उ राजाश्रय ना मिलल जवन बाकी भसन के मिलल आ भोजपुरी अपने बूते आजु ले चलत आइल बिया. भोजपुरी के बचावे रखला में आ एकर पसार दुनिया भर ले करावे में भोजपुरी के ओह लोग के बड़हन योगदान बा जे भोजपुरी में अपना जिनिगी के दुख सुख गा के एकरा के जियवले रखलन आ अपना संगे एकरा के भर दुनिया ले गइलन. बाकिर आजु भोजपुरिया लोग के एगो बड़का वर्ग भोजपुरी में आइल सांस्कृतिक पराभव का चलते एकरा से उदासीन हो गइल बाड़ें.

मालिनी अवस्थी एह सांस्कृतिक पराभव के जड़ नब्बे का दशक में आइल भोजपुरी गीत गवनई के गिरावट से जोड़ले बाड़ी. ओह दौरान आइल नया नया गायक भोजपुरी में फूहड़पन के शुरुआत कर के बाजार पर काबिज होखे के कोशिश कइलन आ ओह गिरावट के बादो में आइल गायक बढ़ावत गइलें, कहे के मतलब ई कि बाजार का फेर में भोजपुरी के बाजारू बना दिहल लोग. एही चलते भोजपुरी समाज के शिष्ट वर्ग एकरा ओर से मुँह फेर लिहलसि.

एगो मशहूर लोक गायिका का रूप में जानल जाए वाली मालिनी स्वाभाविक रूप से भोजपुरी के ओही अंग के सामने रखले बाड़ी जवना से ऊ बढ़िया से परिचित बाड़ी. भोजपुरी के सार्वजनिक पहचान एकरा गीते गवनई से बा एह बात से केहू इन्कार ना कर सके बाकिर भोजपुरी के जीवन्तता में भोजपुरी साहित्यो के योगदान के अनदेखी कइल ठीक ना रही.

अपना लेख में भोजपुरी में आइल गिरावट से निबटे के सलाह देत मालिनी के कहना बा कि बढ़िया लिखीं, बढ़िया सुनीं, बढ़िया देखीं. एहमें हम इहो जोड़ल चाहब कि बढ़िया पढ़ीं, बढ़िया सुनाईं, बढ़िया देखाईं. बाजार का फेर में बाजारू मत बनाईं भोजपुरी के.

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3 Comments

  1. bikrama singh

    मालिन जी राउर लिखल हर आदमि तक पहुचि तबे भोजपुरी लोगन के कलयान होइ !

  2. NEEMAN SINGH

    जवन लोग तवन भाषा ,इहे त बा भोजपुरिया गवई के मनई के अभिलाषा.
    नीमन त उनका अनुसार उहे बा .रुआ उनकर सोच बदले के परी.
    जवन संभव नईखे .

  3. santosh patel

    बहुत सार्थक बात, बाकिर बाजार के चलते भाषा के “मैकडोनाल्डीकरन” कैसे रुकी? ई विचारणीय प्रशन बा. मालिनी जी के सुझाव बढ़िया लिखीं, बढ़िया सुनीं, बढ़िया देखीं “से हमहूँ सहमत बानी बाकिर बाज़ार से मुक्ति संभव बा?

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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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