मूरख मिले बलेस्सर पढ़ा लिखा गद्दार ना मिले

by | Jan 9, 2012 | 2 comments

(9 जनवरी के पहिला पुण्य तिथि पर)
बालेश्वर के बिना एक साल

– दयानंद पांडेय

बालेश्वर के बिना ई एक बरीस बहुते चुभन का साथे बीतल. दोस्ती त इयाद आइबे करेले. हर भिनुसहरा, हर सँझिया याद आवेले. बाकिर एह साल एतना सगरी नया घटना भइली स आ हर बेर बालेश्वर याद अइले. ऊ चाहे राजा, कलमाडी, कनिमोझी भा येदियुरप्पा वगैरह के जेल गइल होखो, मंहगाई, भ्रठियरपन, लोकपाल भा अन्ना के मुद्दा रहल होखो, भा उत्तर प्रदेश में धकाधक बीस गो मंत्रियन के बर्खास्तगी भा इस्तीफ़ा होखो. भा तमाम अउरी मसला. हर बेर बालेश्वर याद अइलन. एहले याद अइलन कि अगर ऊ रहीतन त एह मसलन पर उनुकर एकाध गो गीत आ गइल रहीत.व्यवस्था विरोध आ बदलाव के जवन गीत बालेश्वर ललकार के गावत रहले, ऊ गाना गावे वाला अब केहु नइखे रहि गइल. ठकुरसुहाती गाना आ गोंइयां, सइयां से आगे भोजपुरी गायकी के अगर भिखारी ठाकुर का बाद केहु ले गइल त ऊ बालेश्वरे रहले. ऊ त गावसु कि “दुश्मन मिले सबेरे लेकिन मतलबी यार ना मिले” आ जइसे कि विसंगति के रेघरियावत रहले, “मूरख मिले बलेस्सर, पढ़ा लिखा गद्दार न मिले”. अब देखीं ना, अधिकतर पढ़ल लिखल लोगे देश आ समाज का साथे गद्दारी करत मिलत बाड़े. पता चली कि आक्सफोर्ड के पढ़ल हउवन आ करोड़ो अरबो के भठियरपन में डूबत उतरात बाड़न.

बालेश्वर के एगो गाना हवे, “नाचे न नचावे केहू पइसा नचावे ला”. जब ई गाना लिखले रहले बालेश्वर तब नरसिंहा राव प्रधान मंत्री रहले. सुखराम के घोटाला सामने आइल रहे आ चंद्रास्वामी के राजनीति में गरमाहट रहल आ घोटालो में. त बालेश्वर गावसु, “नाचे न नचावे केहू पइसा नचावे ला” आ फेरू जोड़सु कि, “हमरी न मानो सुखराम जी से पूछ लो”. फेरू ऊ चंद्रास्वामी अउर नरसिंहा राव ले आ जासु. बालेश्वर के गायकी दरअसल व्यवस्था के फुलौना में पिन चुभावत रहे. ऊ चाहे राजनीतिक व्यवस्था होखो भा सामाजिक कुरीति. ऊ हर जगहा चोट मारसु. व्यवस्था पर अइसन चोट अब भोजपुरी गायकी से नदारद बा. एही से बालेश्वर के इयाद आवत बा. बालेश्वर के एगो गाना ह, “मोर पिया एम पी, एम एल्ले से बड़का, दिल्ली लखनऊआ में वोही क डंका” आ जब ऊ एहमें ललकार के जोड़सु कि, “अरे वोट में बदलि देला वोटर क बक्सा ! मोर पिया एम पी, एम एल्ले से बड़का !” त चुनावी दलालन के चेहरा बरबस सामने आ जात रहुवे. “बाबू क मुंह जैसे फ़ैज़ाबादी बंडा, दहेज में मांगेलैं हीरो होंडा” भा फेरु “बिकाई ए बाबू बीए पास घोड़ा” जइसन गीतो बालेश्वर किहाँ बहुतायत में रहे. बालेश्वर असल में भोजपुरी गायकी में कबीर जइसन साफगोई अउर बांकपने खातिर जानलो जासु. से ऊ गाइबो करसु, “बिगड़ल काम बनि जाई, जोगाड़ चाही !” एक समय मंडल कमंडलो पर ऊ खूब गावसु. “फ़िरकापरस्ती वाली बस्ती बसाई न जाएगी” गावसु आ बतावसु कि “हिटलरशाही मिले पर मिली जुली सरकार ना मिले.” दलबदलुओं पर तंज करत एक समय ऊ गावसु “चार गो भतार ले के लड़े सतभतरी !” मंहगाई ले के उनुकर एगो तंज देखीं. “चंद्रलोक का टिकट कटा है, आगे और लडाई है, सोनरा दुकनिया भीड़ लगी है कोई कहता मंहगाई है.” ऊ त इहो गावसु “जब से लइकी लोग साइकिल चलावे लगलीं तब से लइकन क रफ़्तार कम हो गइल.” भा फेर “समधिनिया क पेट जइसे इंडिया क गेट” जइसन गानन में उनुकर गायकी के गमक देखले बनत रहे. “नीक लागे टिकुलिया गोरखपुर के” जइसन गाना त उनुका के गायकी के माथ पर बइठा दिहलसि.

बालेश्वर असल में गरीब गुरबन के गायक रहले. खुदहु गरीब रहलन. दबाइल कचराइल समाज से आवसु से उनुकर दुखोसुख करीब से जानसु. आ उनुकर दुख सुख गाइबो करसु. “लोहवा के मुनरी पर एतना गुमान, सोनवा क पइबू त का करबू!” गीत में गरीबी के जवन दंश आ डाह के जवन डंक ऊ परोससु ऊ अविरल बा. भा फेर “हम कोइलरी चलि जाइब ए ललमुनिया क माई” गीत में बेरोजगारी अउर प्रेम के जवना कंट्रास्ट ऊ परोससु ऊ अदभुत रहे, अदभुत रहे उनुकर ई गीतो कि “तोहर बलम कप्तान सखी त हमरो किसान बा.” गंवई औरत के जवन गुरुर आ स्वाभिमान एह गीत में छलकत सामने आवत बा ऊ विरल बा. “बलिया बीचे बलमा हेराइल” जइसन विरह गीतो उनुका खाता में दर्ज बा, “आव सखी, चलीं ददरी क मेला” भा “अपने त भइल पुजारी ए राजा हमार कजरा के निहारी ए राजा” भा फेर “कजरवा हे धनिया” जइसन गीतन के बहारो बा. “केकरे गले में डालूं हार सिया बउरहिया बनि के” जइसन मार्मिक गीतो बालेश्वर किहाँ मौजूद बा.

बालेश्वर किहाँ प्रेम बा त प्रेम का बहाने अश्लीलतो भरपूर बा. “खिलल कली से तू खेललऽ त हई लटकल अनरवा का होई?” भा फेर “काहें जलेबी के तरसेली गोरकी, बडा मज़ा रसगुल्ला में” भा फेर “लागऽता जे फाटि जाई जवानी में झुल्ला”, “आलू केला खइलीं त एतना मोटइलीं दिनवा में खा लेहलीं दू दू रसगुल्ला”, भा फेर “अंखिया बता रही है, लूटी कहीं गई है” जइसन गीतनो के उनुका लगे कमी नइखे. ऊ मात रहले कि दुअर्थी भा अश्लील गाना गावल गलत ह बाकिर बाज़ार में बनल रहे खातिर एकरा के एगो तरकीब आ ज़रुरी तत्व मानत रहले. कहसु कि “जो यह सब नहीं गाऊंगा तो मार्केट से आऊट हो जाऊंगा. तो मुझ को पूछेगा कौन ? भूखों मर जाऊंगा.”

चाहे जवन होखे, बालेश्वर के गायकी अब भोजपुरी गायकी के धरोहर हवे. अलगा बाति बा कि उनुका निधन का बाद एक से एक लुभावन वायदा भइल. बड़का से बड़का नेता अइले आ चल गइलन तमाम वायदा करि के. अब साल भर बीत गइला का बादो भोजपुरी के एह अमर गायक का नाम से कवनो एगो पार्क, सड़क, मूर्ति भा स्मारक ना बन सकल. अउर भोजपुरी के ठेकेदारी करे वालन के, भोजपुरी के रोज ब रोज बेचे वालन के, भोजपुरी के दुकान चलावे आ भोजपुरी के राजनीति करे वालन के कबहु एकर चिंतो ना भइल. आ ओह बालेश्वर खातिर ना भइल जे अवध का धरती लखनऊ में भोजपुरी के झंडा गाड दिहलसि. आ लखनऊए में ना. सगरी दुनिया में भोजपुरी गायकी के परचम लहरवलसि. भोजपुरी गायकी के स्टारडम से नवज़लसि. भोजपुरी गायकी के ऊ पहिलका स्टार रहले. साले भर में लोग उनुका के बिसरा देव त ई का ह ? भोजपुरी भाषियन के ई कृतघ्नते ह, दोसर कुछ ना ! त का करब. ऊ त लिखिये गइल बाड़न कि “जे केहू से नाईं हारल से हारि गइल अपने से !”

जवन होखे, लोग उनुका के लाख बिसरा देव बाकिर जब ले भोजपुरी गायकी रही तबले बालेश्वर अमर रहीहें. बहुते सगरी कलाकार उनकुर गावल गीत पहिलही से गावत बाड़े. संतोष त एह बाति के बा कि उनुकर मझीला बेटा अवधेश अब उनुकर गायकी के विरासत के ना सिरिफ सम्हार लिहले बाड़े, बलुक उनुका संगी साथियन, साजिंदन, कलाकारन के पूरा टीम, प्रशंसकन, आ उनुका “परोगरामो” के सहेज लिहले बाड़न. उनुकर गायकी, उनुकर मंच, उनुकर कार्यक्रम सब कुछ. अवधेश के मंच पर गावत देखि के युवा बालेश्वर के याद मन में ताजा हो जाऽता. आ फेर बालेश्वर के इयाद आ जाऽता. उनुकर गायकी याद आ जातिया. “फगुनवा में रंग रसे रसे बरसे” उनुका गायकी के एगो अइसन बिरवा ह, अइसन होली गीत ह जवना में रंगो बा, रसो बा, आ रासो बा. फगुआ के ठु्नको बा आ ओकर मुरकी आ खुनकीओ. उनुका आवाज के मिठास के मिसरी मन में आजुओ फूटतिया. “अउरी महिनवा में बरसे न बरसे, फगुनवा में रंग रसे रसे बरसे, सास घरे बरसे, ससुर घरे बरसे अरे उहो भींजि गइलीं, जे निकले न घर से ! फगुनवा में रंग रसे रसे बरसे.” उनुकर ई गायकी अबहियो मन के पुकारेले. रई रई रई रई करि के मन बान्हि लेले, ऊ मरदानी अउर मीठ आवाज़ जवना में समाईल भोजपुरी माटी के खुशबू पागल बना देतिया. त उनुकरे बिरहा के ठेका में कहे के मन करत बा “जियऽ बलेस्सर, जियऽ !”


दयानंद पांडेय जी के संपर्क सूत्र
5/7, डाली बाग, आफिसर्स कॉलोनी, लखनऊ.
मोबाइल नं॰ 09335233424, 09415130127
e-mail : dayanand.pandey@yahoo.com

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2 Comments

  1. amritanshuom

    बालेश्वर जी की पहिला पुण्य तिथि हम उनकर संगीत में रचल – बसल आत्मा के सत्-सत नमन करत बानी .

    धन्यवाद !

  2. अशोक मिश्र

    पाण्डेय जी, बहुत नीक लिखले बानी.बधाई

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