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रंग बरसे भींजे चूनर वाली वाला गाना के एगो लाइन आजु बरबस याद आवत बा कि चाभे गोरी के यार बलम तरसे रंग बरसे. आ साथही याद आवत बा लइकाईं में सुनल एगो कहानी के बाल नायक के बोल कि सात गाय के सात चभोका, चौदह सेर घीव खाँउ रे, कहाँ बारे तोर बाघ मामा एक तकड़ लड़ जाउँ रे.

फगुआ बीतला अबहीं कुछे दिन भइल बा आ ओकरा मस्ती के खुमार अबहीं ले बनल बा. एह बीच बुढ़ऊ फेरू छरिया गइल बाड़न. आ उनकर छरियइलके हमरा के मजबूर क दिहलसि चभोका पर चाभी भरेला. चुनाव कपारे बा आ सभे जानत बा कि सत्ता के चाभी एह चुनावे से निकले वाला बा. आ हालत आल्हा वाला हो गइल बा कि जवनकन के के कहो बुढ़वो बहत्तर हाथ फाने लागल बाड़ें. हँ त चभुलावे से पहिले चलीं तनी चबावल जाव.

चबावल आ चभुलावल में फरक होला. चाभे ला बत्तीसो ना त कुछेक दाँत जरूरे जरूरी होला. बिना दाँत चाबल ना जा सके बाकिर चभुलवला में एह तरह के कवनो बंदिश ना होखे. जेकर सगरी दाँत टूट गइल होखे उहो बड़ा मजा से चभुला सकेला अपना मसूढ़ा आ जीभ का सहारे आ लोग चभुलावल करतो रहेला. बबूनी ससुरा ना जाली मने मने गाजेली वाला अंदाज में उहो बुढ़उ मने मन सपना देखत रस ले लेके चभुलावेलें जिनका ला चबावे के काम डरावना सपना बन गइल होखे. कहल जाला कि हिंदूवन के बुढ़वा सठिया जालें अब ई साँच ह कि ना से त पता नइखे बाकिर अतना जरूर देखीलें कि घर के बुढ़वा के अपने नींद ना आवे त ऊ दोसरो के सूते ना देव. बेर बेर ओकरा कवनो बात याद पड़ी आ ऊ आवाज लगा लगा के रजाई में दुबकल जवान सवाँग के जगावत रह जाई जब ले ऊ जवान अनसा के झूंझूआ ना देव. कुछ अइसने हाल अबकी का चुनाव में लउकत बा.

एगो पुरनिया जिनकर उमिर हो गइल बा कि गिरस्थी तज के राम राम भजसु उनका से गिरस्थी के मोह छूटत नइखे. बेर बेर कवनो ना कवनो बात प छरिया जात बाड़ें. शायद मन में बा कि हम ना खाएब त तोहरो के ना खाए देब. चभोका मारे चलबऽ त गईए के हुरपेट देब आ तहार चाभे के सपना सपने रहि जाई. बाहर के दुश्मन से निपट लीहल आसान होला बाकिर घर के दुश्मन से निपटल आसान ना होखे. ओकरा ला महाभारत के युद्ध में अर्जुन के ज्ञान देबे वाला कृष्ण जइसन कवनो सारथी के जरूरत होला. अब अबकी का कृष्ण के सारथी में अइसन गुण बा कि ना से देखे के बात होखी. तले एह बीच चलीं चभोका आ चभुलावल पर बतिया लीहल जाव.

भर गाल खाइल चभोका होला आ थान से दूध पियलो के चभोका कहल जाला काहे कि ओहूमें गाले का सहारे दूध खींचाला. चभुलावे में बाहर से कुछ खींचे के ना होला. जवन होला तवन पहिलहीं गाल का भीतर होले आ ओकरे के चभुलावत रहल जाला. एह चभुलावल के तुलना भईंस के पगुरइला से कइल जा सकेला. भईंस के आगे बीन बजाए, भईंस खड़ी पगुराय. पता ना बुढ़उ मनीहें कि ना आ मनीहें त कब मनीहें बाकिर हम ओकर इंतजार ना कर सकीं. बतकुच्चन के कड़ी भेजे के डेडलाइन पार करे प बा आ ओकरा पहिले हमरा भेज देबे क बा एह कड़ी के. तबले रउरो चभुलाईं मन के कवनो सपना. अगिला बेर मिलब त आगे क बात होखी.

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By Editor

2 thoughts on “चबा ना सकीं त चभुलाई काहे ना (बतकुच्चन – १५३)”

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