बतकुच्चन – ४

by | Oct 31, 2010 | 1 comment

ओह दिन एगो टीवी चैनल पर संगीत के रियलिटी शो देखत रहीं. एगो गायिका गीत गावत रही, “सईंया के थूरल देहिया….” मतलब उनकर रहे “सईंया से थुराइल देहि” के आ गावत रहली “सईंया के थूरल देहिया..”. कुछ देर मन में चकोह नाचल जरुर कि एह गाना के श्लील कहीं कि अश्लील ? बाकिर ओह चकोह में हम ढेर देर ले ना अझुरइनी आ सोचे लगनी कि भोजपुरी में श्लील भा अश्लील खातिर कवन ठेठ शब्द होखी ? बहुतो सोचला का बाद कवनो शब्द ना मिलल. काहे ? का एहसे कि ऊ त बाल मन का तरह निरपेक्ष बा सबकुछ से. ओकरा त बस शृंगार रस के अनुभूति चाहीं. बाकिर लोग बा जे भोजपुरी में अश्लीलता के सवाल रहि रहि के उठावत रहेला आ हमनी भोजपुरिया ओह लोग का बाति में अझुरात जानी जा.

अब एह विषय के हम ढेर देर ले ना फेंटब. काहे कि बाति शुरु भइल रहे थूरल आ थुरइला से आ ओकरे के कूटे के बा. श्लील भा अश्लील पर फेर कहियो लिखब. आजु इहे सोचीं कि थूरल आ कूटल में का फरक बा. जब केहू के बिना घेरले थूरल जाव त ऊ थुराई होला बाकिर अगर ओकरा के घेरि बान्हि के थूरब त ऊ कुटाई हो जाई. खल में बा ओखर में जब मूसल भा मूसर के मारि पड़ेला त ओकरा के कूटल कहल जाला काहे कि तब कूटावे वाला सामान ओखर में घेराइल रहेला. बाकिर ओह गीत में थूरल का जगहा कूटल राख दिआव त का मतलब बदलि जाई ?

रउरा कहब कि महाथेथर आदमी बा, एके बतिया ले के तब से अझुरवले बा. त चलीं एही पर बाति कइल जाव कि थेथर भा थुथूर, आ हेहर में का फरक होला ? थेथर भा थुथूर ओकरा के कहल जाला जवना पर मार कुटाई के कवनो असर ना पड़े आ ऊ अपने बाति पर अड़ल रहि जाला. मतलब कि जे थुरइलो पर ना सुधरे से थेथर हऽ, बाकिर हेहर ? हेहर ओकरा के कहल जाले जेकरा के कतनो हे हें करीं ऊ मानी ना, अपने धुन में लागल रही. त जे बाति से समुझवला पर ना माने से हेहर आ जे लात के देवता होखे से थेथर. कुछ कुछ थेथरे से मिलत जुलत होला पिटउर. बाकिर थेथर आ पिटउर दुनु एकदमे अलगा मलतब के शब्द होला.

पिटउर ऊ जे अकसरहा पिटात होखे. कवनो कवनो नेता खास कर के पिटउर होलें. कहीं लाठी चलो ऊ जरुर पिटा जइहें बस ओहिजा उनका होखे के चाहीं. बिहार के एगो मंत्री अपना छात्र नेतागिरी का दौरान अइसने पिटउर रहलें. कवनो आन्दोलन होखो. अगर चौबे जी शामिल बाड़ें त पिटइहें जरुर. पिटउर आ थेथर में सबले बड़ अन्तर इ होला कि पिटउर कवनो जिद्द पर अड़ि के पिटाला जब कि थेथर अपना थेथरई का चलते. पिटउर बाति कहला का चलते पिटाला जबकि थुथूर पिटाए खातिर बाति कहेला.

सोचतानी कि एहसे पहिले कि रउरा पाठक सभे हमरा के थूरे का मूड में आईं ओहसे पहिले हम विदा ले लेत बानी. हो सकेला फेर कबो एह पर चरचा करब कि ऊ गायिका “सईंया के कोड़ल देहिया..” काहे ना गवलसि ?

– बतबनवा

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