– डॉ॰ उमेशजी ओझा

UmeshOjha
छुटी के दिन रहे. हम सुरेश का घरे छुट्टी मनावे गइनी त हमरा के देखते सुरेश कहलन, ‘अहो भाग्य कि रउआ पधरनी हमरा दुआर प.’
‘अरे का बोलऽतानी. बहुत पहिले से सोचले रही कि अतवार का दिने रउआ घरे के चाय पीए के बा. एह से चली अइनी.‘

मेल मिलाप भइला का बाद सुरेश के बइठका में बईठक लाग गइल. थोडही देर में दु-चार आदमी अउर आ गइलें. चायो नाश्ता धीरे-धीरे आवे लागल. बाते बाते में एकेहाली सुरेश जोर-जोर से हंसे लगलें. बईठल सभे चिहाइल कि अबही त ओइसन कुछ बात भइल हा ना फेर सुरेश अतना जोर से हंसे काहे लगले. कही जंगल के गदहा निहन कवनो जोक के माने आज त उनका ना समझ में आइल ह. कुछ देर हंसला के बाद सुरेश चुप भइले त हमनी के उनका से पुछनी जा, ‘का हो सुरेश अकेले-अकेले जोक के मजा लेबऽ कि हमनिओ के कुछ बतइबऽ.’
सुरेश हाँफते-हाँफत कहले, ‘अरे कवनो बात नइखे, बस रऊआ सभे के देखिके लईकाई के एगो बात ईयाद आ गइल ह.‘

हमनी के उनकर बात सुनिके जाने के इच्छा होखे लागल कि आखिर बात का ह. सुरेश प जोर दिहनी जा कि ऊ बात कहस त ऊ कहे लगलन –

‘ओह घरी हम तेरह बरीस के रहली. बाबूजी इसकूल के हेडमास्टर. हम आठवां क्लास में पढ़त रही. बाबुजी का साथही इसकूल आवत-जात रही. परीक्षा खतम हो गइल रहे. बाबूजी के दसवां क्लास के कॉपी चेक करे के मिलल रहे. कॉपी चेक करे आ ओकर अंक चढ़ावे में बाबूजी के समय लागत रहे. ढेर देर से बइठल घरे जाए ला उनकर राह देखत रही. मन अकुताइल त उनका से पुछिके हम अकेलही घरे चल दिहनी. गाँव के गएड़ा सड़क तक त ठीक-ठाक अइनी. बाकि ओकरा बाद गाँव के पगडंडी वाला रास्ता रहे. खेत के आरी से होखत गुजरे के रहे. आरी के दुनो ओरी रहर के फसल लहलहात रहे.

सड़क से खेत के आरी प जब उतरे के भइल त हमार सभ होश उड गइल. तेज भइल सब टाँय-टाँय फिस्स हो गइल रहे. जाड़ा के दिन, ओहू में जल्दिए दिन उतर गइल रहुवे आ चंदा मामा के दुधिया रोशनी धरती पर पड़त रहुवे. दिमाग कवनो काम ना करत रहे. बस हम सड़क प खाड़ होखे रोअल शुरू क दिहनी. जाड़ा के दिनो में देहि से हर-हर पसीना चले लागल. आगे बढ़े के हिम्मत ना रहे. पीछे केहू लउकतो ना रहे कि ओकरा साथे घरे चल जाईं. गाँव के लोग से आ बाबूओजी से सुनले रही कि सड़क प से गाँवे आवेला राहता में पड़े वाला बुढवा आम के फेड़ प धनु काका अपना मेहरारू का चलते फाँसी लगाके जान दिहले रहनी आ अब ओही फेड़ प भूत बन गइल बानी. ओह राहता से आवे-जावे वाला के तंग करेनी आ कबो-कबो त अकेले देखिके जानो मार देनी. जब केहु ना मिलेला त फेड़ से उतरि के रोईबो करेनी. अन्हार भइला प केहू ओह राह से ना जाला.

कुछ दिन पहिले गाँव में एगो आदमी के उहे भूत पकड लिहले रहे. ओकर झाड़-फूंक ओझा बइद से चौपाल प होखत रहे आ ऊ खुबे अक-बक बोलत रहे. भूत के बात सुनिके ओह आदमी के देखे के मन करे लागल कि भूत आदमी के धरेला कइसे. बाबूजी आ घर वालन के लाख मना कइलो प सभकर आँखि बचावत हम चौपाल में पहुँचनी त देखनी कि सुदर्शन भईया बेहोश हालत में चौपाल के चउतरा प चीत पड़ल बाड़न. ओझा झाड़फूंक करऽता. बीच-बीच में सुदर्शन भईया कुछ अक-बक बोलत रहसु. ओझा हाथ में मोरपाख वाला पंखा लेले रहे. सुदर्शन भईया के मुंह से झागो निकलत रहे. ई देखि के त हमार रोआ खाड़ हो गइल रहे. बाकिर का जाने कांहे भीतर से लागत रहे कि ई सब बकवास ह. भूत-ऊत कुछ ना होला. ई लोगन के भरम ह आ ई भरम तूड़े के होई . बाकि तूड़ी के? इहे सभ सोचत मन के कवनो कोना में डरो लागत रहे.

हम सड़क से उतर के ओही आरी से आवे खातिर खाड़ रही. आगे बढ़े के तनिको हिम्मत ना करत रहे. खाली रोवल जात रहीं. सोचत रहीं कि कहँवा फँस गइनी. इसकूल से चलत घरी ई राहता कांहे इयाद ना पड़ल. पीछे मुड़ के देखतो रहीं कि केहू आ जाव त हम उनका साथे हो ली. बाकिर ओह दिन त हमार करमे फूटल रहे. गाँव के केहू आवे के नाम ना लेत रहे. ओहिजे खाड़-खाड़ सात बज गइल. अबले बाबूओजी ना पहुचल रही. रहर के खेत से रहर के डाली रगड़इला से चे-ची, चे-ची के आवाज आवे लागल रहे. कबो-कबो झिंगुरो के चेचिहाट सुनात रहे. आ ऊरूआ के आवाजो हमरा अकेलापन के डेरवना बनावत रहे. जेकरा से देहि के एक-एक रोंआ खाड़ हो गइल रहे. हिम्मत जवाब देत रहे. तबहीं ना जाने कहां से आवाज आइल, ‘सुरेश बेटा, हिम्मत करऽ. भूत-ऊत कुछ ना होला. डर लागत बा त बजरंगबली बानी नु. उनकर नाँव ल आ चलऽ आगे बढऽ, हम तहरा साथे बानी.‘

चारो आरी नजर घुमा के देखनी कि आखिर आवाज कहाँ से आवत बा. बाकि केहू ना लउकल. ऊ आवाज त हमरा अंतरआत्मा के रहे. हम रोअते धीरे-धीरे बजरंगबली के नाँव लेत, हनुमान चालीसा पढ़त आगे बढे लगनी. जइसे-जइसे ओह आम के फेड़ का नियरा पहुचल जात रही वइसे-वइसे डरो बढ़ल जात रहे बाकि आपन आत्मा के बात मानत हम आगे बढ़ल जात रही. जब फेड़ से थोडही दूर पर रहीं कि एगो मेहरारू के रोवे के आवाज आइल. रोवल सुनिके के त हमार होश उड़ गइल. पायेंट गील हो गइल. आ गिर के बेहोश हो गइनी. जब होश आइल त गाँव के पगली के अपना सामने पवनी. हम ओही आम के फेड़ के नीचे अपना के पाके पगली के ध के डर का मारे रोवे लगनी. ऊ पगली हमरा के आपन छाती से सटा के चुप करवलसि. पानी पिये के दिहलस. थोड़ देर बाद जब शांत भइनी त ओकरा से पुछनी कि ‘तू ऐहिजा का करऽतारू?‘

‘का करीं बाबू? हमार मरद, तहार धनु काका, एही फेड़ प आपन भउजाई से झगड़ा क के खीस में फांसी लगा लिहले. आपन अछरंग बचावे खातिर उनका घर के लोग हमरा पर अछरंग लगाके घर से खेद दिहल कि हमरा चलते ऊ फांसी लगा लिहलन. घर से निकलला के बाद कुछ दिन तक त गाँव में केहु-केहु के घर से खाना मांग के खा लेत रहीं. बाकि कुछ समय बाद उहो लोग खाना दिहल बन क दिहल त दोसरा गाँवे जाके भीख मांगेनी. हम पागल ना हईं. दिनभर के तकलीफ राति में एहेजा फेड़ के नीचे आके उनका से कहेनी. जेह से लोग हमार रोवल सुनी के भूत समझेला आ एने केहू ना आवेला.‘

पगली के बात सुनिके हमरा राहत मिलल. बरीसन से गाँव के लोगन के मन में बइठल भूत के डर कतना गलत रहल. ई जान के कि ओह फेड़ का नीचे कवनो भूत-ऊत नइखे हमार हाथ एगो युद्व जीतल विजयी योद्वा निहन हवा में लहराए लागल. हमरा अन्दर बइठल भूत के डर खतम हो गइल रहे. आ हम उछलत-कुदत गाँवे चल दिहनी.

गाँव के नियरा पहुँचनी त गाँव के गयेड़ा नदी के किनारे शौच करे बइठ गइनी. देखनी कि गाँव के कुछ लोग हाथ में लाठी लेले दोसरा गाँव में नौटंकी देखे जात रहे. ऊ लोग ओही भूतहा आम के फेड़ का बारे में बतियावत जात रहे. हम स्कूल के उजर रंग के ड्रेस पहिरले रहीं. चॉदनी रात में ऊ दूर ले लउकत रहे. ओह लोग के बात सुनि के हमरा शरारत सूझल आ एक बएक बेंग लेखा कूद गइनी. हमार कुदल देखते ऊ लोग भूत-भूत चिचियात उल्टा गोड़े गाँवे भागल. देखनी कि चौपाल के चबुतरा प ओह में से तीन आदमी बेहोश हो के पड़ल बाड़े आ झाड़ फूंक चालू बा. हम ई तमाशा देख अचरज में पड़ गइनी. लोग के रोकला का बावजूद हम चौपाल के चबुतरा प चढ़ गइनी आ चिल्ला के लोग के बतवनी कि रउरा सभे झूठ के ढकोसला में पड़ल बानी. भूत-ऊत कुछ ना होला. हम अबही ओही रास्ता से आवत बानी. जवना के रउआ सभे भूत समझत बानी ऊ धुन काकी हई. उनका के रउआ सभे गाँव से निकाल देले बानी . ऊ दोसरा गाँव में भीख मांगेली आ राति में ओही फेड़ का नीचे आ के रोवेली. चलीं रउआ सभे के देखावत बानी. आ नदी में जवन भूत देख के ई लोग भागल रहुवे ऊ भूत ना हम रहीं जे एह लोग के छकावल चाहत रहीं.

मुखिया जी कहले कि अइसन नइखे हो सकत. चलऽ हमनी के ऊ जगहा देखावऽ. हम मुखिया जी के लेके ओह आम के फेड़ लगे पहुँचनी आ सभे देखल कि उहे पगली ओहिजा बइठल रोअत बाड़ी. मुखिया जी उनुका के अपना संगे गाँवे ले अइनी आ सभका के कहनी कि पारापारी एकदिन सभे एह पगली के खिआई आ परब-तेवहार में कपड़ा वगैरह दिही.

हमार त पुरा गाँव में चरचा होखे लागल कि सुरेश लोग के मन के भरम मेटा दिहले आ भूत के अन्धविश्वास खतम करा दिहले. आजो ऊ फेड़ मौजूद बा आ अब गाँव के लोग बेखौफ ओही राहे आवाजाही करत रहेला.

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कुछ त कहीं......

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