SantoshPatel

– संतोष कुमार

माई रे, इ नान्ह जात का होला? सुरुज आपना माई से पुछलें. जाड़ा के रात खानी खाना खाये के बेरा सूरज चूल्हे भीरी बइठ के पलथी मार के आ मुड़ी गाड़ के रोटी आ भंटा के चोखा खात रहले. उनका बाल मन के इ हिरिस रहे जाने के कि इ नान्ह जात होला का. इ सुनत, रोटी तावा पर सेकत उनकर माई चिहा गइली. रोटी तावा में से गरमे गरम निकाल के सूरज के थरिया प रखत कलावती, सुरुज के माई, पूछली, ऐ बाबू, इ का पूछत बाड़? कहवाँ से इ कुल्ही सुन से आइल बाड़ऽ? के कहलख? सुरुज अचरजे भाव से कहले, माई हो, उ बिजेंदर चाचा जी के दुनु भैया लोग बा नु, रमेश भैया आ दिनेश भैया, उहे लोग जब क्रिकेट खेले में हमरा गेंदा पर आउट होला लोग त, उ लोग हमरा के अपना दुआरी पर से
भगावे लागेला लोग. हरमेसा नान्ह जात, नान्ह जात कह के खेल में से निकाल के बेला देला लोग. जब ओह लोग के केहु बोलिंग करे वाला ना मिले ला त फेर हमरा के बोला के कहेला लोग कि रे सुरुजवा, आव खेले. जब गोइया-गोइया खेलल जाला त ओह बेरा आउट भइला पर हमरा के नान्ह जात कह के भगा देला लोग. माई इ बता दे हमरा के आजु कि आखिर इ नान्ह जात के मतलब ह का ?

सुरुज के माई के देह में इ बात आग जस लागल, रात हो गइल रहे आ परिवार के सभे खाये पिए में लागल रहे. केहु लेखा रात कटल. भोर भइल, कलावती रात भर ना सुतल रहली, करवट बदल बदल के इहे सोचत रहली समय बदल गइल आ आजो समाज में जाति पाति के भेदभाव के सोच कोढ़ लेखा बड़ले बा. सबेरे उठ के कलावती सुरुज के बांह ध्इले, बिजेंदर के दुवरा पर गइली. बिजेंदर आपना सोफा पर बइठल पान खाए खातिर सरौता से कसैली काट काट के पनबर में राखत रहले, दुआरी पर कलावती के देख के भौचक्का हो गइले, काहे कि कलावती आजु से पहिले हरमेसा मुंह पर लुगा से घूघ तान के बात करत रहली, आजु उनकर घूघ ना रहे, चेहरा गोस्सा से तमतमाईल रहे आ उ आवते पुछली का भैया जी, इहे बड़का जात कहाला जे अपना बाल-बच्चन के कवनो रहन ना सिखवले होखे! राउर दुनु लड़िका लोग हमरा बेटा के नान्ह जात, नान्ह जात कहत बा लोग, हमरा के रउरा बताईं जदि रउरा बड़का जात बानी त कहवा बा राउर सिंग आ पोंछ आ लगले एगो अउर बात के जबाब दिहीं, का रउआ मउगत पर भगवान ऊपर से रथ भेज दिहन का? कलावती के सवाल सुन के बिजेंदर के मुंह खुलल के खुलले रह गईल.


(हेलो भोजपुरी के दिसम्बर 2013 अंक से साभार)

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By Editor

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