स्व. कैलाश चन्द्र चौधरी उर्फ मास्टर साहब के कविता

by | Aug 15, 2021 | 0 comments

खालऽ, खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रुचे

उड़ते खा, चाहे बइठ के खालऽ
चाहे अलोता कहीं ले जाके खालऽ
टुकी टुकी खालऽ चाहे लीलऽ सउसें.
खालऽ, खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रुचे.

हई देखऽ राम नाम रबड़ी बनल बा,
सियाबर के सोनपापड़ी छनल बा,
लाम लाम लकठो लक्ष्मीपति के खालऽ
खालऽ खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रूचे.

प्रभु जी के पेडा मनरसा मुरारी,
मोहन के मोतीचूर खुरूमा खरारी,
ले लऽ बेलगरामी बिहारी जी के, खालऽ,
खालऽ खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रूचे.

गोविंद के गुलजमुनबा चीखऽ,
काला जामुन कन्हईया के देखऽ,
राधा रमन रसगुल्ला बीचे खालऽ,
खालऽ खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रूचे.

हई जगदीश्वर के कइसन जिलेबी,
देखऽ भतुआ पाग में भगवान के खूबी,
चीखऽ तनी चमचम चितचोरजी के, खालऽ.
खालऽ खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रूचे.

कुरमुर भाजा में कुंजबिहारी,
सेव दलमोट संगे श्याम बिहारी,
निमकी में स्वाद नटवर जी के, खालऽ.
खालऽ खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रूचे.

हई बुट बारा में बंशी बजवईया,
चापर में चिपकल ये चीर हरवईया,
चटनी चटक दहीचोर जी के, खालऽ,
खालऽ खालऽ ए चिरई जवन तोहरा रूचे.

गीत

समईया बीतल जाला ए मोरे गईंया,
अइसे काहे सूतल बाड़ तानि के चदरिया,
समईया बीतल जाला ए मोरे गईंया.

कउल करार कइलऽ गरभ भीतरिया,
सबके दोदाई दिहलऽ आवते बहरिया,
करेलऽ मनमानी तनिको तोहे ना फिकरिया,
समईया बीतल जाला ए मोरे गईंया.

बचपन खेललऽ , जवानी भर सुतलऽ,
देखि के बुढ़पवा पूका फारि रोअलऽ.
करब का उदिनवा उड़ी जाई जे चिरईया,
समईया बीतल जाला ए मोरे गोइयां.

नीमन जबुन कुछ सउदो ना कइलऽ,
छूछे हाथे जइबऽ जबकि मुठ्ठी बांधि अइलऽ,
देब का जवाब जब पूछिहे गोसईँया,
समईया बीतल जाला ए मोरे गोइयां.

जग इनरजाल बाटे, सुनर एगो सपना,
कहे खातिर सभे आपन केहू नाही अपना,
अइलऽ अकेले, जइबऽ निसहइया,
समईया बीतल जाला ए मोरे गोइयां.

अबहूं से चेतऽ, छोड़ऽ मन के गुमनवा,
सांझी बेरा कहां जइबऽ, गाव हरि गुनवा,
बेड़ा कैलास पार करी रामनइया,
समईया बीतल जाला ए मोरे गोइयां.

(बक्सर के ब्रह्मपुर इलाका के बरुहां गाँव के मूल निवासी आ पटना के खगौल इलाका के हरिदासपुर में नहर रोड पर आ वसल स्व. कैलाश चन्द्र चौधरी के कविता आजु ले कतहीं प्रकाशित नइखे भइल. उनुका भाई कमल किशोर जी से मिलल उनुकर लिखल दू गो रचना पहिला बेर अँजोरिया पर प्रकाशित कइल जा रहल बा. कैलाश जी के निधन हालही में कोरोना का चलते हो गइल. श्रद्धांजलि का साथे एह अप्रकाशित भोजपुरी कवि के रचना परोसल जात बा.)

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(5)

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