ओनइसवीं सदी में बलिया के ददरी मेला : इतिहास क ऐना

by | Jan 30, 2012 | 0 comments


(पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से – 12वी प्रस्तुति)

– आनन्द संधिदूत

ओनइसवीं सदी के आखिरी दशक आवत-आवत ददरी के मेला बलिया में एगो दुर्घटना घट गइल. भइल ई कि कातिक के प्रमुख नहान आ बकरीद एके दिन पड़ गइल. नतीजा ई भइल कि हिन्दू-मुसलमान दूनो का हामाहूमी में मेला क्षेत्र में भयंकर दंगा फइल गइल. केतने आदमी जान से हाथ धो बइठल. दंगा शान्त करे के पश्चिमोत्तर प्रान्त के पुलिस के हरेक कोशिश नाकाम हो गइल. अन्त में बलिया के कलेक्टर जी॰ सी॰ कैम्पवेल का संस्तुति पर गोरी फउज के एगो टुकड़ी बोलावल गइल, जेकरा कोसिस से दंगा शान्त भइल.

दंगा त शान्त हो गइल लेकिन दंगा का भयंकरता के असर कई बरिस तक रहल. पहिले मेला में बंगाल से लेके पंजाब-राजस्थन तक अउर दूर
विदेश तिब्बत-चीन तक से दोकानि आवत रहली स ओहिजा अब पूरा मेला क्षेत्र बीरान नजर आवत रहे. पशु-मेला का रुप में मशहूर बलिया के ददरी मेला में, अब बिकाये खातिर जानवर नाँव मात्र के आवत रहलन स. जानवर का अलावे खाये-पीये, पहिरे-ओढे़, बइठे-उठे क फर्नीचर, सजावट के सामान कुल्हिये में कमी आइल रहे.

मेला का उखड़ गइला के सबसे बुरा असर डुमरांव रियासत पर पड़ल. जब मेला धमस के लागत रहे त चार हजार रुपया (विक्टोरिया वाला) रोज के तहसील रहे. कारन ई रहे कि बलिया के ददरी मेला जवना जमीन पर लागे ऊ जमीन डुमरांव महाराज के रहे. एह मेला से डुमरांव महाराज के अच्छा-खासा आमदनी होत रहे लेकिन दंगा का बाद ई आमदनी खतम हो गइल. डुमराँव के तत्कालीन राजा राधा प्रसाद सिंह आ दीवान राय जयप्रकाश लाल राजस्व का नोकसान से काफी चिन्तित रहे लोग. अन्त में काफी सोच-विचार का बाद राय जयप्रकाश लाल दीवान बहादुर का अध्यक्षता में एगो कमेटी बनल जवन मेला के फेर से जमावे खातिर कई गो कदम उठवलस. ओह में कुछ कदम ई रहल –

सबसे पहिले हिन्दी-अँगरेजी का अखबारन में डुमराँव रियासत का ओर से ई विज्ञापन छपावल गइल आ पम्फलेट छपा के चारों ओर चपकावल गइल कि सन् 1893 के ददरी मेला बड़ा धूमधम से लागी आ एकरा हिफाजत खातिर रियासत का ओर से भरपूर कर्मचारी आ सिपाही तैनात कइल जा रहल बा.

रियासत का ओर से देश के बड़े-बड़े राजा-महाराजा, विद्वान आ कलाकारन के मेला क्षेत्र में बोलावल गइल आ उहन लोग का विचार के सुना के आम जनता का मन से दंगा का कारन आइल भय के दूर कइल गइल.

क्षेत्र का तमाम प्रतिष्ठित पंडित, पीर, घाटिया साधू-फकीर के यथयोग पूजा दिहल गइल आ इहन लोग का जयजयकार से मेला क्षेत्र गुंजायमान भइल. पंडितन में पं॰ शिवनारायण शास्त्री, ब्रह्मानन्द सरस्वती, रामदेनी पंडित, पंडा समाज में रामबरन मिश्र, रघुनाथ मिश्र, रघुनन्दन चौबे, शिवदेनी चौबे आ घाटिया व्राह्मण में काशी पांडे, मदन पांडे प्रमुख रहलन लोग. साधू-महात्मा में पौहारी बाबा का अलावे भृगुजी का पिछवाड़े आ उत्तर ओर रहे वाला 20 गो साधू आ मोती जी का मठिया के 90 गो साधू लोग के पूजा दिहल गइल.

मेला में सद्भव कायम करे खातिर हिन्दू-मुसलमान के एगो संयुक्त सद्भावना कमेटी बनावल गइल, जवना क भाषण मेला क्षेत्र में भइल आ
भाषण का बाद ”इवनिंग पार्टी“ दिहल गइल. एह कमेटी में हिन्दू प्रतिनिधि का रूप में मुंशी कुलवन्त प्रसाद, बाबू सहदेव नारायण सिंह, बाबू बैजनाथ सिंह वकील, बाबू गंगाराय (सोनबरसा), मुंशी देवी प्रसाद, बाबू सुदामालाल, पांडे रामसरन लाल, मुंशी गोकुल प्रसाद वकील, आ मुसलमान प्रतिनिधि का रूप में शेख अब्दुल अहद फरस्तार, मौलवी मुहम्मद शरीक (गाजीपुर), मौलवी अब्दुल समद, वकील गाजीपुर, शेख अब्दुल कादिर (एडिटर तोफे कादरी) काजी अब्दुल अजीज, तुफैल अहमद खाँ, शेख बिलायत हुसैन (चुरकन्द), शेख अब्दुल सत्तार, शेख मुजफ्फर हुसैन, शेख लियाकत हुसैन, शेख मुहम्मद इश्क, शेख खैरात हुसैन के नाँव प्रमुख रहे.

एह तमाम कोशिश के ई नतीजा रहे कि सन् 1893 में मेला धमस के लागल. मेला में पहिले नियर हर तरह के दोकान अइली स, जवना में पर्याप्त मात्रा में मवेशी, मवेशी के चारा के दोकानि मेलनहरिन के खाये पीये के दोकानि, पर्चून, बजाजा, दर्जी, कम्बल, रूई, गहना, पुस्तक, दवा, संदूक-बक्सा. कहे के मतलब आवश्यकता क हरेक चीज के दोकानि मेला में आइल. एह मेला में आइल हरेक चीज के गिनावल त सम्भव नइखे लेकिन कुछ चीजन के उल्लेख जरूरी बा जवन अब विलुप्त होखे का कगार पर बा. अइसन सामान में घोड़ा के रंग से पहचान एह तरह रहे – नोकरा, खिंग, सूर्खा, सब्जा, चीनिया, चाल, समन्द मिर्गा, कुल्ला मुश्की, कुमैद, सुरंग, संजाफ, गर्रा, फुलवारी, सन्दली, मक्मी, लाखैरी, अबलख, पंचकल्याण, चंबा बोज, बौरदार, खैराचौधर, श्यामकर्ण, गुर्ग बिगम्बरी, अष्टमंगल, महताबी, अगरई, सोनवारी, मुर्गा, टोपरा हरौजी, अर्कोक, पतंग, टंपाक, फाकताई, अर्जन, बाजक मूहा, पर्मल, सीतक, बादामी, अगरंग, जर्दा, बिलौरी खतंग, नीला, मणिजोति, कच्छी (कैप वैलर) आदि. एह घोड़न के आवक स्थान पंजाब (जंगल दहिना जंगल बायाँ) सतलज, काठियावाड़, रंगपुर, भूटान, बुटवल, नेपाल, चैनघाट, टीरी, जौनपुर, काबुल, कन्धार, भेवड़ा, ईरान अरब, दकन रहे जहाँ से पर्याप्त मात्रा में घोड़ा मेला में आइल करँ सन.

अब ट्रैक्टर का जमाना में बैलो क प्रजाति नष्ट हो रहल बाड़ी स. बलिया का ददरी मेला में बैल सरजूपार, बछवल, गुजरात, काठियाबाड़, नेपाल, ईजानगर, नागौर वगैरह से आवत रहलन स जवन गुण आ रंग का अनुसार धावर, सोकन, कसौटी, पीअर, महौर, गोल, बैरिया, करिया, हांसार, चावर, कावर, टीकर, धूमर, मैन, सरगपताली घोंच, भुंड, चातर, खैंक, ओछीकानी तौल, खाभर नाँव के होत रहलन स.

ओह जमाना में अदिमी के पहचान ओकरा पगड़ी से होत रहे. बंगाली, ईरानी, तुर्की, पंजाबी, मेहराबदार, डेढ़नोखा, काशीवाल, राजशही, बबुआनी, लट्टदार महाजनी, कैथऊ, पंडितऊ, दक्षिणी, जैपुरी, ग्वालियरी वगैरह पगड़ी के किसिम रहे जवन मेला में बिकात रहे. सर्राफा का दोकन पर गहनो नाना प्रकार के मिलत रहे जवना के लमहर लिस्ट बा. अइसहीं दर्जनों प्रकार आ बीसन जगह से आइल वेश्या आ भाँड़ों लोग रहल जवन मेला के शोभ बढ़ावत रहे.

बड़ा कोशिश का बाद सन् 1893 में मेला त बड़ा जोरदार लागल लेकिन ऊपर वाला का ई मंजूर ना रहल. मेला में अचानक बहुत तेजी से हैजा फइल गइल जवना से देखते देखत भीड़ छँटे लागलि.


(रामलखन के लिखल पुस्तक ‘ददरी मेला’ 1893 का आधर पर जवन 1894 में बिहार बन्धु प्रेस, बाँकीपुर से छपल रहे.)


पिछला कई बेर से भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका “पाती” के पूरा के पूरा अंक अँजोरिया पर् दिहल जात रहल बा. अबकी एह पत्रिका के जनवरी 2012 वाला अंक के सामग्री सीधे अँजोरिया पर दिहल जा रहल बा जेहसे कि अधिका से अधिका पाठक तक ई पहुँच पावे. पीडीएफ फाइल एक त बहुते बड़ हो जाला आ कई पाठक ओकरा के डाउनलोड ना करसु. आशा बा जे ई बदलाव रउरा सभे के नीक लागी.

पाती के संपर्क सूत्र
द्वारा डा॰ अशोक द्विवेदी
टैगोर नगर, सिविल लाइन्स बलिया – 277001
फोन – 08004375093
ashok.dvivedi@rediffmail.com

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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


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