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करमगति

by | Aug 4, 2017 | 0 comments

(लोककथा)

शिव जी का सङे पार्वती जी आकासी राहे कहीं चलल जात रही कि उनकर नजर नीचे एगो गरीब परिवार पर पड़ल। ऊ शिव जी से कहली – ‘हऊ देखतानी। केतना गरीब बाड़े स। एकनी के कवनो बरदान देके उधार करीं।’
शिव जी कहले – ‘तहनी जनी-जात में ई बड़का बेमारी बा। बिना कुछ जनले-बुझले बकड़-बकड़ करत रहेलू। ई तीनो मरद, महरारु आ बेटा अपना-अपना करम गति के भोग रहल बाड़े। हमरा चहले भा कुछ देले एकनी के कुछ भला नइखे होखेवाला।’
पार्वती जी बोलली – ‘ई कइसे हो सकेला जे रउरा चाहीं आ एकनी के उधार ना होखी। रउरा देके त देखीं।’
पार्वती जी का जिद के आगू लाचार शिव जी उनका सहित पंडित-पंडिताइन के भेस में ओह तीनो के आगे परगट होके जल्दी-जल्दी में एकही गो बर माँगे के कहलें। तीनो का आचम्भा भइल। मरदा मउगी से कहलस – ‘पहिले ते माङ्।’
मउगी मङ्लस-‘ बावा जी, हमरा के सोरे साल के खप्सूरत राजकुमारी बना दीं।’
शिव जी कहलें- ‘जो बनवनीं।’
ऊ बन गइल। मरदा कावर तकलस त ओकरा घीन बरे लागल। एतने में कहीं से घोड़ा पर एगो सुथर राजकुमार आ धमकल। दूनो में मटका-मटकी भइल। ऊ हाथ बढ़वलसि आ ई हाथ थम्हवलस। दूनो घोड़ा पर उड़ चललें।
एने शिव जी मरदा से कहलें – ‘तेंहूँ जल्दी माङ्।’ मरदा खीसे पितपिताइल रहे। गरीबी में बुढ़िया के हम सब कइनी आ खप्सूरत देखनउक भइल त छँवरा सङे भागतिया। ऊ पितपितइले शिव जी से मङ्लस – ‘हमरा मउगी के सुअरी बना द।’
शिव जी कहलें – ‘जो बनवनीं।’
ऊ सुअरी हो गइल। राजकुमार पीछे देखलस त सुअरी। मरलस लात सुअरी घोड़ा पर से गिरल आ फेर मरदा अउर बेटवा के भिरी आके हतेआरिन लेखा खड़ा हो गइल। बेटवा ई सब देखके हरान-परेसान। एने शिव जी चढ़ल रहस – ‘तेंहूँ जल्दी बर माङ् कि हम जाईं।’ बेटवा बोलल -‘ए बाबा, तहरा बर के चक्कर में हमरा परिवार बिखरत बा। हमरा के इहे बरदान द कि हमनी जइसन रहनी हँ ओइसन हो जाईं।’
शिव जी पार्वती जी कावर मुस्कात ताकत बोललें -‘जो अइसने होई।’ एतना कहके अलोपित हो गइलें।

— डा. जयकान्त सिंह ‘जय’

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