pub-4188398704664586

तहरा कहला से न रहेब हो

by | Jan 2, 2014 | 0 comments

neeman-singh

– ‍ नीमन सिंह

जब से हम होस सम्हरनी हमरा मन में इ उमंग उठल करे कि हम एह गाँवही में रहब आ एकरा बिकास खातिर कुछ करब.
समय बीतत गइल आ हमरा दिल में इ उमंग दिन पर दिन जोर भइल जात रहे. बहुत समय त इ सोचही में बीत गइल कि हमरा एह गाँव के बिकास खातिर का करे के परी.
जइसे जइसे दिन बीतत गइल हम अपना योजना के कार्य रूप देबे लगनी.
एही बीच इहो बात सुनाइल कि गाँव के पढ़ल लिखल नवहियन के शहर ना भाग के अपना गाँवहि के बिकास में आपन बिकास समझे के चाहीं.
इ सब सुन के हमार जोश आउर बढ़ गइल. अबही ले हम सोचते रहनी ह. अब बिकास खातिर कार्यक्रम तइयार कइनी आ सोचनी बिचरनी कि का कारन बा कि हमार गाँव एतना पढ़ल-लिखल लोग के रहला के बादो बिकास ना कर पवलस? त हम पवनी कि एह के मुख्य कारन बा पुरातन बिचार, अंधबिश्वास, अज्ञानता अउर मूढ़ता. आ इ सब के खास पकड़ बा बुढ़वन पर. जवना बुढ़वन के गाँव में बिकास खातिर सहयोग आ रास्ता देखावे के चाही, उहे बुढवा समाज, अपना दकियानूसी बिचार से नवहियन के राह रोक लिहले बा. आ एह में खास जोर एगो महा डरपोक, इज्जत के कुछ ना बुझे वाला, पईसा के सबकुछ मानेवाला पंच के बा.
ना जाने एह पंचन में कवन गुण बा जवना का चलते अधिकतर गँवार, बुढउ समाज आ अब कुछ नवहियो सब कुछ जानतो बूझत कि ओकरा कहला में रहला में हमार आ हमरा गाँव के हानि बा, तबो ओकरे कहल करेला सब.
इ सब देख सुन के हम सोचनी कि पहिले नवहियन साथे मिल के बिचार कर लियाव कि का कइल जाव कि हमनी आ गाँव दुनो खातिर ठीक रही ?
आ हम सब मिल बईठ के बात बिचार कइनी कि पहिले का भइल बा, ओकरा से का घटी-नाफा भइल. आगे ओकरा कहला में चलला पर का नुकसान होई इ सब बतवनी.
इ सब सुन समझ के नवही सब समुझल कि हमनी का अबही ले बहुते अन्हार में रहनी ह. अब ओह बुढऊ समाज खासकर पंच के कहला में ना रहल जाई. अब हमनी का कुछ क के देखावल जाई. इ सब प्रण भइल.
एह तरह से उ बुढऊ लोग के बहिस्कार क के हमनी सब बिकास के हर मुद्दा पर सोंच बिचार करे लगनी सन. अब हमनी के सब जगह से सहयोग मिले लागल त हमनी के उत्साह के पारावार ना रहे. इ देख के हमरा बुझाइल कि अब हमार मेहनत सफल हो जाई.
लेकिन इ सुख पूरनमासी के चाँद जइसन ओही दिन से घटे लागल जब हमनी इ देखे लगनी सन कि फेर उ पंचवा का जाने कवन बिद्या,कवन मंतर मार देहलस भा कवन अइसन बात समझावे में सफल हो गइल की जवन नवही आपन आ आपना गाँव समाज के बिकास खातिर जी जान लगा देले रहले सन उहे अब सब भुलाके हमारा बिपच्छ में होखे लगलन सन.
एह बात के जानकारी जब हमरा मिलल त हमरा गोर तर के जमीने खिसक गइल, इ सुन के एह नवही सन के भाग बुधि पर तरस आइल आ संगे संगे खीसो. का जाने कइसे इ सब के उद्धार होई ? का इ सब के गोबर काढ़े आ घासे गढ़े के लिखल बा? का इ सब अपना जिंनिगी में कुछ ना कर पइहें? इ सब का खइहे आ का हगीहे ?
इ सब सोच के हम सोचनी कि एह सब के एह तरह छोड़ दिहला से हमरा कर्तब्य के इतिश्री ना हो जाई, हमरा कुछ करही के पड़ी.
इ सब सोच के हमरा दिल में बुझल दिया फेर से टिमटिमाये लागल. हम सब के समझावे लगनी. नतीजा इ मिलल की. कुछ के समझ में आवे लागल. हमरा इ बिश्वास रहे कि नवही चहीहे त पहाड़ो लाँघ सकेले. हम इ काम करे खातिर कमर कस के तईयार हो गइनी.
लेकिन हाय रे हमरा गाँव आ हमरा गाँव के नवही के भाग. इ कुछ नवही त हमार नींव खोदे के तइयारी करे लगलन सन. कहे लगलन सन कि का कारण बा कि इ एतना पढ़-लिख के गाँव नइखे छोड़े चाहत आ गाँव के बिकास के सोचत बाड़े? जरुर एह में इनकर कउनो सवारथ बा. का जाने गाँव के कउनो लईकी से त नइखन फँसल जवना चलते इ गाँव में रहे के चाहऽतारे. सुने में आइल कि इहे सब सोच के उ सब हमरा ऊपर लांछन लगावे के तईयारी करे लगलन सन.
हाय रे दईब एक दिन उ भाई सरीखा लईका हमरा ऊपर अपना बहिन से लगा के लांछन लगा देहलस. फेर त हमार खून खउले लागल आ हम अब बिकास उकास भूला के कहनी कि एतना बड़ अछरंग! अब या त उ रही भा हम. ओकर एतना हिम्मत कि उ हमरा के अइसन कहे ? हम त एकनिए खातिर आपन नुकसान सहिओ के एह गाँव में रहे खातिर अपना के तईयार कइले बानी. आ हम चल देनी ओकरा के मारे खातिर. इ देख के कुछ लोग हमारा के ध लिहल आ कहे लागल की उ त इहे चाहऽतारे सन कि दंगा फसाद हो जाव आ इ बिकास उकास ख़तम हो जाव. हमार संघतिया लोग कहलस कि हमनी के बात करब, तू चुप रहऽ.
फेर एकदिन इ सुने में आइल की जब ओ लईका के घरवाला के इ बात मालूम भइल त ओकर बहिन कहे लागल कि उ त हमरा के बहिन जइसन मानेले आ तू एतना नीच बात कइसे कइलऽ हऽ? घरभर के लोग डांटे लागल त ओकरा बुधि से परदा हटल आ उ रो रो के कहे लागल कि हमरा के पंचवा आ ओकर लईका सन अइसन कहे खातिर कहले रहले सन. का जाने कइसे हमार मति फिर गइल कि हम अपना हाथे आपन इज्जत ख़राब क लिहनी. आ उ आपन कपार पीटे लागल.
इ सब सुन के हम सोचनी की हम त ओकनी आ गाँवे खातिर सब करऽतानी ओकनी के कुछ बिगड़ले नइखीं फेर उ काहे अइसन करत बाडन स? .इ का भइल कि उलटे बांस बरेली हो गइल ?
इ सब देख के मन अनसाइन हो गइल आ हम अनमना हो के रहे लगनी. इ देखके ओकनी के इहो न बर्दास्त होत रहे. उ सब हमरा के भगावे खातिर हाँथ धो के पीछे पड़ गइल रहले सन. उ सब कहे लगले कि उनकर हाँथ गोर तूड़ देहब जा, दुआर पर बांध के मारेब सन. उ अपना के बुद्धिमान समझत बाडन आ हमनी के गवांर, अनपढ़, मुरख आ पुरातन बिचार के. हमनी का जइसन बानी ठीक बानी सन. उ के हउअन गाँव के बिकास के सोचे वाला? हमनी के बाबूजी, बाबा के मतलबी कहे वाला. इहाँ सभे आपन भला देखेला. हमनियो आपन देखब. चाहे गाँव जाए भांड में. आ ओकरा बाद ओकनी के अपना के बदमास कहाए लगलन सन, उदंडता करे लगलन सन. कहे लगलन सन कि जे हमनी के रास्ता में आई ओकरा के देख लेब स आ ओकरा के ठीक क देब स.
इ सब सुन के हमार मन बेचैन हो गइल. खून खउले लागल. बुझाइल कि अगर इ बात बरदास्त क लेत बानी त हमरा अइसन बेइजता आदमी केहू ना होई. हम त एह गाँव के बिकास आ एह नवहियन के आगे नाहिए बढा पवनी. अब आपन इज्जतो ना रह जाई.सब लोग कहे लागी, “मार ओकरा त खून में गरमिए नइखे”. उ का करी? हम गाँधी ना रहनी कि इ बात बर्दास्त हो जाइत.
हम चौक में जाके ओकनी के ललकरनी, “कौन ह रे बदमास जे हमरा के बांध के मारी आ हाथ गोर तूरी?” तनी आवे त हमरा के मारे. हमरा लगे कवनो हथियार त नइखे लेकिन दुनो बाजू में एतना ताकत त बा कि सब नीचन के धुरा चटा देम. तनी उ सामने त आवे यदि अपना माई के दूध पियले होखे त.’’
एतना सुन के उ सब बदमास लाठी ले आवे दउरले सन. पासही ओकनी के दालान रहे ओह में से एगो लाठी लिआ के हमरा ऊपर चलावे के जसही चहलस हम ओकरा पीछे का ओर इसारा क के कहनी, ’ना ना सिपाही जी रउआ छोड़ दीं’. एतना कहला पर उ लाठी उठवले पीछे जसही देखलस हम कूद के ओकरा छाती पर दुनु लात से मरनी. जवना चलते उ गिर गइल तबले दुसरका लाठी चला दिहलसि. अबले हम पहिलका के लाठी उठा लेले रहीं. लाठी लेके हम बइठ गइनी आ बइठले बइठल ओकरा गोर में भरपूर जोर से मरनी. जवना चलते उ पटा के जोर जोर से चिलाए लागल. दुनू में कवनो के उठे के दम ना रहे. हम फेर ललकरनी, ‘आउर केहू बा माई के लाल त आ जाव. ओकरे के पटहा लेखा पीट के ना रख दिहनी त हमार नाम ना’.
लेकिन का मजाल कि केहू आगे बढो.
एह घटना का बाद हम गाँव छोड़ दिहनी आ फेर ना सोचनी ओह गाँव का बारे मं जहाँ ओइसन नराधम लोग रहेला.
उ लोग एह सिद्धांत के पालन करे वाला ह लोग कि, ’हम त डूबबे करब तहरो के ले डूबब’. आज जब हमरा से केहू कहेला की आज के पढ़ल-लिखल लोग के गाँव में रहे के चाहीं त हमरा उ दिन याद आ जाला आ मन मसोस उठेला. एगो हूक हो जाला. हम कहेनी “ना हो ना, तहरा कहला से ना रहेब हो अइसन गाँव में.

Loading

0 Comments

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll Up pub-4188398704664586