डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल के डायरी

बगसर बिसरत नइखे

ए पारी के जाड़ा के छुट्टी के बहुत उत्साह रहे. बहुत दिन बाद, लगभग 30-31बरिस बाद 24 दिसंबर के भारवि जी (अरुणमोहन भारवि) से मुलाकात भइल. घंटों बतियावल आदिमी. बात ना ओराइ आ टाइम जल्दी-जल्दी बीतल जाइ
. साथ में भाई मनोज चौबे भी रहन जेकर भोजपुरी संगीत के अच्छा-खासा जोगदान बा. बक्सर के ओह घरी के बात एक-एक कइके फिलिम का रील मतिन आँखि का सोझा आ रहल बिया. हम इंटर में रहीं. डॉ. कमला प्रसाद मिश्र “विप्र” जी से हमार पिताजी परिचय करा देले रहीं. हम त हिंदिए में लिखत रहीं बाकिर अब भोजपुरी के नशा चढ़ि गइल. विप्र जी टॉपिक दे-देके लिखवाईं. कबो लेख, कबो कहानी, कबो समीक्षा, कबो सवैया आ कवित्त छंद में कविता. ओह घरी अँजोर, भोजपुरी कथा कहानी, भोजपुरी उचार, अकादमी पत्रिका चर्चा में रही सन. हमहूँ छपे लगलीं. ओह घरी अपना क्षेत्र में सहज रूप में जइसन भोजपुरी बोलल जात रहे, ओहीके आधार मानिके हम लिखत रहीं. खइनी, पियनी जइसन क्रियापदन के प्रयोग सहज लागे बाकिर विप्र जी मना कइलीं, ओकरा जगहा खइलीं, पियलीं लिखे के निर्देश दिहलीं आउर मानकीकरण के मतलब आ ओकरा खातिर त्याग आ परेशानी सहे के मूल्य बतवलीं. ओह घरी के ज्यादातर बड़ साहित्यकार एही तरह से लिखत रहन. तब से पीछे घूमिके ना देखलीं हम, “महाजनो येन गता: स पंथा:” के संस्कार रहे. भोजपुरी में ‘का आउर ‘के कब आ कहाँ लिखल जाउ, ई ऊहें से हमरा पता चलल. आजु ओह मनीषी के याद कइके हम अपना आपके धन्य मानतानी.

ओह घरी भोजपुरी लेखन का क्षेत्र में बक्सर के भोजपुरी साहित्य मंडल काफी महत्व राखत रहे, जवना के मुख्य स्तंभ रहीं विप्र जी आ जितराम पाठक जी. भोजपुरी के कवनो बड़ सम्मेलन में पहिल बार हम शामिल भइल रहीं. ओही सम्मेलन में रामदयाल पांडेय जी हमराके ‘विमल’ उपनाम देले रहीं, एहसे पहिले हम ‘रक्षा’ उपनाम से लिखत रहीं.  बक्सर के जोशी जी भी बिसरत नइखीं. उहाँका नाँव का अनुरूप मंच पर आपन कविता सुनावत रहीं,एकदम जोश में. पता चलल कि अब नइखीं. मन उतरि गइल. प्रोफेसर शालिग्राम उपाध्याय, प्रोफेसर सतीश प्रसाद सिन्हा, डॉ. नर्वदेश्वर राय, गणेश दत्त किरण आ रामेश्वर सिन्हा “पीयूष” जइसन वरिष्ठ साहित्यकारन का संपर्क में भी हम एही घरी आइल रहीं. हमरा यादि बा, एक दिन गरमी का दुपहरिया में पीयूष जी किहाँ अपना कई गो गीतन आ गजलन के संग्रह लेके हम पहुँचल रहीं आ गुरू नियन उहाँका संशोधन कइलीं. आजुओ उहाँके आत्मीयता से हम निहाल हो जाईंले. कइसे बक्सर के भुलाईं, बिसरत नइखे. ओह घरी भारवि जी भोजपुरी के नवहा लेखकन में एगो प्रखर व्यक्तित्व रहीं. इहाँ किहाँ रोज साहित्यकार लोगन के बइठकी लागत रहे. एह पारी जब उहाँसे भेंट भइल त कॉलेज से रिटायर हो गइल रहीं आ उम्र आउर अनुभव के गंभीरता साफ-साफ लउकत रहे. बतवलीं कि आजुओ ओइसहीं सब कुछ चल रहल बा. रउँआ एक घंटा पहिले आइल रहितीं त बहुत लोगन से भेंट हो जाइत. बक्सर में बड़हन प्रेस के अभाव के चर्चा से मन दुखी भइल. बड़हन काम करावेके बा त बनारस, पटना ना त दिल्ली जाए के परी.

सगरी उमिरिया दरदिया के बखरा

एही प्रसंग में गुमनामो जी (हरिवंश पाठक ‘गुमनाम’) के तस्वीर सामने आ गइल. एम.ए. करत खा रोहतास जिला (बिहार) में लगातार तीन गो कवि सम्मेलन (रोज अलग जगह पर) में जाए के परल. डॉ. नंदकिशोर तिवारी, लोहा सिंह जी(रामेश्वर सिंह काश्यप), मनमौजी जी, किरण जी, विजय प्रकाश जी- हमनी सभ एके साथ रहीं जा. एही कवि सम्मेलन में गुमनाम जी के सान्निध्य मिलल. गीत आ गजल के लेखन पर गजब के पकड़. शिल्प के धनी. हमरा एगो गीत ( लागेला रस में बोथाइल परनवा/ ढरकावे घइली पिरितिया के फाग रे !) के एगो हलुक आ सुकोमल संशोधन से सँवार देले रहीं. शब्दन के असली महिमा आ प्रयोग के खूबसूरती के बोध उहाँके आत्मीयता के छाया में मिलल. दू-तिनिए दिन के उहाँके संग आ पितृवत स्नेह के खुशबू आजुओ मन-प्राण में ओसहीं बसल बा आ जब-जब मन के आङन गमगमाला त उहाँका बरबस इयादि आ जाईंले-

“मटिया क गगरी पिरितिया क उझुकुन
जोगवत जिनिगी ओराइ
सगरी उमिरिया दरदिया के बखरा
छतिया के अगिया धुँआइ.” (गुमनाम)

गाँव से लवटत खा बगसर होते आरा अइलीं. डॉ. नीरज सिंह जी(अध्यक्ष, भोजपुरी विभाग, वीर कुँअर सिंह विश्वविद्यालय, आरा) किहाँ रात में पहुँचलीं. काफी रात हो गइल रहे तबो लगभग दू घंटा साथ रहीं. उहाँका सपरिवार हमरा कई गो गीत आ गजलन के सुनलीं आ भोजपुरी के कई गो पहलुअन पर जमिके चर्चो भइल. पटना लवटला पर बहुत दिन बाद भाई विजय प्रकाश आ भगवती प्रसाद द्विवेदी जी से भेंट भइल. मन रहे पांडेय कपिल जी, जगन्नाथ जी, सत्यनारायण जी आदि कई गो आदरणीय लोगन के दर्शन करेके बाकिर समयाभाव में लवटेके परल. एह पारी जाइबि त पक्का मिलबि.

लागत बा दिन नीमन आई

      कुछ दिन से भोजपुरी के आठवी अनुसूची में आवे के आगम का सुनाइल, ओकर खुलिके बिरोधो शुरू हो गइल. एकरा मूल में हिंदी के कमजोर होखे से बचावे के भावना बाटे. एह क्रम में शिष्ट, अशिष्ट आ उच्छिष्ट- हर तरह के टिप्पणी समर्थन आ विरोध- दूनो खेमा से आवे शुरू भइल बा. कवनो कोना से ई नीक नइखे लागत. कम से कम प्रबुद्ध लोगन के भाषा संयमित रहेके चाहीं. एह संदर्भ में हम पहिलहूँ कहले रहीं आ फेरु कहल चाहबि कि भोजपुरी के संविधान का आठवीं अनुसूची में आ गइला से हिंदी के कवनो नुकसान ना होई. संख्या का हेर-फेर से घबड़इला से नीमन ई रही कि आपन ऊर्जा भाषायी सर्वे का फॉर्मेट में बदलवावे में लगावल जाव, जवना में मातृभाषा आ (राष्ट्रभाषा) हिदी के अलग-अलग कॉलम होखे. एहसे ओहू वर्ग के बहुत लोग हिंदीभाषी हो जइहें जेकरा के हमनीका अहिंदीभाषी का रूप मे चिन्हित करींले जा. ओइसे अब लागता कि भोजपुरी के नीमन दिन आ रहल बा आ एकरा विकास-धारा में कवनो बाधा टिक ना पाई. हम फेसबुक में एगो पोस्ट कइलीं-

भइल समर्थन आ विरोध
अब खूब
अउर ए चक्कर में
जय भोजपुरी के
चर्चा खूब भइल
लागत बा दिन नीमन आई
बहुरी दिन.

 

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2 thoughts on “नीक-जबून-6”
  1. जी बिल्कुल। एह दिसाईं हमहूँ बहुत चिंतित बानी बाकिर अपना पेशा का अतिव्यस्तता आ अपेक्षित साहित्यकार आउर भाषावैज्ञानिक लोगन से दूरी के कठिनाई से जूझ रहल बानी। ई काम आनन-फानन में कबो ना हो पाई, बहुमत का जगहा सर्वसम्मति जरूरी होई। हम ओह सभ समर्थ लोग से हाथ जोरिके बिनती कइल चाहबि जेकरा सहयोग का बेगर ई जग्गि पूरा ना हो सके। – विमल

  2. सहज भोजपुरी में लिखल मानक भोजपुरी के दिशा निर्देश के बहुते जरूरत बा। रउरा से आ सगरी सम्मानित साहित्यकारन से निहोरा बा कि एह दिसाईं काम क के एगो मानक तईयार कइल जाव।
    खास क के भोजपुरी लिखलका पढ़े में होखे वाला दिक्कत के दूर कइला से नवहियन के सुविधा होखी भोजपुरी अपनावे में।

कुछ त कहीं......

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