बतकुच्चन – ५१

by | Mar 14, 2012 | 0 comments


फगुआ बीतल चइत आ गइल. फगुआ का दिने निकलल होरिहारन के टोली भर दिन फगुआ गवला का बाद चइता गा के नयका साल के स्वागत कइलन. फगुआ आ चइता दुनु के शुरुआत हमेशा देवी वन्दना से होला. सुमिरिले मतवा, जोड़ीले दुनु हथवा हो रामा/ कण्ठे सुरवा/ कण्ठे सुरवा होखऽ ना सहइया हो रामा/ कण्ठे सुरवा. आदमी जवन कुछ करेला ओकरा पाछा एगो बड़हन शक्ति के हाथ होला. हर संप्रदाय मजहब में ओह शक्ति के अलग अलग नाम आ रूप होला बाकिर होला जरूर. खैर बात निकलल फगुआ आ चइता से. फागुन में फगुआ, चइत में चइता. दुनु के लय ताल अलग अलग. परंपरा रहल बा कि फगुआ फागुने में गवाला, चइता चइते में. सावन में कजरी, नवमी का समय पचरा. से चार महीना के गीत त मिलल बाकी आठ महीना खातिर कवनो खास तरह के गीत हमरा नइखे मालूम. इहो ना कह सकीं कि काहे नइखे ? अगर रउरा सभे के मालूम होखो त बताएब. जान के खुशी होखी. बाकिर तबले दोसर बात. आजु के नवहियन में से कतना होखीहें जिनका बारहो महीना के नाम याद बा? अंगरेजी के प्रभाव त अतना पड़ गइल बा कि देवनागरी के अंक ना चिन्हसु बहुते विद्यार्थी. सरकारो हिंदी में अंक रोमने के मान्यता दिहले बिया. चउँसठ कहीं त ना बुझीहें बाकिर सिक्स्टी फोर तुरते बुझा जाई. हमनी का जमाना में पहाड़ा याद करत में सवईया डेढ़ा अढ़इयो याद करे पड़त रहे. अब ना त ओकर जरूरत रहि गइल बा ना जानकारी. समय का साथ समाजो बदलत गइल बा. कहीं ना कहीं पुरनके लोग पीछे छूटल जात बा. पुरनिया के भरसक कवनो अलोता राख दिहल जात बा कि आवे वाला संगी साथियन के ऊ लोग ना लउके. भुला जात बा लोग कि समय का साथ उहो पुरनिया होखीहें, पुरान पड़ीहें आ तब उनुको कवनो अलोता में रहे के पड़ी. जइसन बोएब वइसने काटे के पड़ेला. पिछला दिने नेतवो लोग आपन बोअल काटल. एक लाख पूत सवा लाख नाती ओकरा घरे दिया ना बाती. काहे कि कवनो लायक ना रहलन स. भा जइसन रहलऽ हो कुटुम्ब तइसन पवलऽ हो कुटम्ब. ट्रक टेम्पो का पीछे कबो कबो बहुते बढ़िया बात लिखल मिल जाला. एह तरह के कहाउतो खूब मिलेला पढ़े खातिर. जुलुम किये तीनो गये, धन धरम आ बंस. ना मानो त देख लो रावण कौरव कंस. जइसन करनी वइसन भरनी. पाँच राज्य खातिर भइल चुनाव में सबले बड़हन उलट फेर हो गइल यूपी में. इहो साबित हो गइल कि जनता के याददाश्त कम होला. ना त ऊ ढेर पाछा देख पावे ना ढेर आगा. भुला जाला पिछलका दिन. अब एह मौका पर दोसर राग नइखी टेरल चाहत बाकिर जान जरूर साँसत में बूझात बा. कहीं अइसन मत होखे कि “बहिन जी” का बाद “भाईजी” लोग आपन कारनामा देखावे लागे. थोड़ बहुत शुरूआत त लोग मतगणने का दिन से देखावल शुरू कर दिहले बा. बाकिर अबही धीरज रखला के जरूरत बा. हँसुआ के बिआह में खुरपी के गीत गवला के जरूरत नइखे. जइसन बहे बयार ओइसने पीठ कर दिहले में भलाई बा. काहे कि एह हामहूम में दिवान जी के तजिया के देखी ?

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अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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