keshav-mohan-pandey

– केशव मोहन पाण्डेय

हमरा गाँव के बरम बाबा खाली पीपर के पेड़े ना रहले, आस्था के ठाँव रहले, श्रद्धा के भाव रहले. सामाजिक, पारिवारिक आ ग्रामीण जीवन-शैली के मिलन के छाँव रहले. समूचे टोला के पहचान रहले. मौसम कइसनको होखे, ऊ त एगो तपसी जस अपना तप से सबके सुख चाहें. जेठ के ताप में भी ऊ अपना नवका पतई से सबके तन शीतल आ मन शांत करे वाला बेना रहले. ऊ एगो जड़ (पीपल) हो के चेतन स्वरूप में सगरो गुड़ के भंडार रहले.

हम आजु ले अपना होश में ओतना बड़का पीपल के पेड़ कहीं नइखी देखले. विशालता में भी, वैभव में भी आ विस्तार में भी. लइकाईं में जगिरहाँ में हल्दी कुँवर बाबा के अथान देखले रहनी. उनकर डाढ़ फइलल रहे बाकीर तना से दूब्बर-पातर. उतरही डाढ़ तीन-चार मीटर पर फिर से धरती के छुअले रहे, तब जा के बान्हा के ऊपर उठल रहलें.

कई बेर लइकाईं के नजर में बसल दृश्य जिनगी भर हीयरा में हिलोरत रहेला. हमरा आजुओ ईयाद बा कि शायद सन 1982-83 के बात होई. अयोध्या से राम लीला मंडली आइल रहे. हमरा टोला के लगभग सगरो मेहरारू लोग आ ओह लोग के साथे दीदीओ लोग रामलीला के रस लेबे जाव. सुरक्षा के खयाल क के भाइयो लोग जाव. चाचा-काका लोग के साथे भीमो बाबा कबो-कबो जास. ओह उमीर ले माई के अँचरा से हमके अलगा रहे के कवनो सवाले ना रहे. माई के अँचरवे ओढ़ना, बिछवना आ ओहार रहे. ओही से ढाँक के माई दू साल पहिले ले हमार भूख दूर करें. बातीयो त सहिए ह कि बच्चा के जनमते पहिला परिचय ओकरा माई के अँचरवे से होला. हमार लइकाईं त माई के अँचरा आ बरम बाबा के छाँव में ही बितल बा. हम आजुओ दूनू के महिमा के कायल रहेनी.

हल्दी कुँवर बरम बाबा के अथान पर होत रामलीला देख के लक्ष्मण के शक्ति लागल, उनके धरती पर गिरल, राम के विलाप, रावण के वध आदि चित्र एतना साफ उतर गइल कि आजुओ ईयाद बा. कबो-कबो लागेला कि शायद ओही के परताप ह कि अभिनय करे आ करावे में हमार रूचि हो गइल बा. . . . हल्दी कुँवर बाबा नारायनी के कटान में स्वाहा हो गइले. तब सगरो जवार में हमरा दुआर पर के बरम बाबा हमरा घर, टोला के साथे हमनीओं के पहचान बन गइले.

बरम बाबा के एगो डाढ़ दखिन के ओर जाए वाला रास्ता के समानान्तर हमरा दालान के पीछे ले गइल रहे. ओकर ऊँचाई तनी कम रहे, से हम लइकन के टोली ओही डाढ़ से हो के बरम बाबा पर चढ़ जाईं जा. हमरा खातीर बरम बाबा के ऊहे डाढ़ सबसे प्रिय रहे. ओकरा अंतिम छोर पर बइठ के ऊपर-नीचे होखे के मजा लिहला के अलगहीं आनन्द रहे. ओह आनन्द के आगे बड़को लेमचूस के रस फिका लागे. हमनी के टोली बरम बाबा के ओह डाढ़ पर चढ़ल आ चढ़ के सगरो पेड़ पर ओल्हा-पाती खेलल आपन सबसे बड़का जीत समझे. हँ, खाली पुरूब आ पुरूबाहुत हो के ऊपर के ओर गइल डाढ़ पर जाए के केहू के हिम्मते ना करे. कई बेर त दुपहरिया में खेले के जिद्द कइला पर माई कहें, – देख बाबू! दुपहरिया में बरम बाबा ओह पर आराम करेले.

बरम बाबा के बारे में एह तरे के रोज कथा-कहानी सुने के मिले. कई बेर त सुनि जा कि ‘पेड़ उड़ जाला.’ ‘बरम बाबा पेड़वे पर बइठ के रिश्तेदारी करे जाले.’ ‘पहिले हल्दी कुवँर बाबा से मिले जास, अब मलाही टोला के बाबा से मिले जालन.’ ‘घर के बड़का तसला से बड़ त उनकर फूल के लोटा बा.’ ‘छछात दुपहरिया में उनका हाँड़ी पर परई चढ़ेला.’ – एह तरे से किसिम-किसिम के किस्सा सुन के कान पाक जाव. मन में डरवो बइठ जाव. डर के ऊहे असर रहे कि हमनी के कबो पुरूबवारी डाढ़ पर ना जाईं जाँ आ ना ऊपर के कवनो डाढ़न पर भी.

पछिम के ओर, ठीक हमरा दुआरी पर, एगो धोधड़ रहे. बड़का धोधड़. एतना बड़ कि कबो-कबो आइस-पाइस खेलत हमनी के ओही में जा के लुका जाई जाँ. हमार माई बतावस आ देखलो से लागे कि ऊ एगो मोटहन डाढ़ के चिन्हा रहे. कहल जाला कि पीपर के डाढ़ के छाँह घर पर ना पड़े के चाहीं, आ ऊ डाढ़ पछिम ओर हमनी के घर के ऊपर ले आइल रहे. एक बेर केयाम देवान सबसे नौ-निहोरा क के कटवा ले गइले. ओही रात के ईया सपना देखली कि दुआरे केहू पीअर धोती पहिनले, तन में मोटका जनेव झलकावत आइल बा. ओकर एक्के गो हाथ रहे. ऊ पीड़ा से कोंहरत रहले आ कहत रहले कि हमार हाथ कट गइल. होत फजीरे ईया बाबूजी आ लाला पर राशन पानी ले के पड़ गइल रहली.

हमरा साथे ओह धोंधड़ के एगो अलगे कहानी बा. एक बेर के बात ह. हमनी के आदत से मजबूर. आइस-पाइस के खेल जमल रहे. हम झट से दखिनही डाढ़ से होत ओह धोंधड़ में लुकाए खातीर कूदनी. कूदनी कि नीचे ध्यान गइला पर पराने सूख गइल. ओही में एगो करइत साँप बइठल रहे. शायद ऊ बरम बाबा के परतापे रहे कि हम झट से निकलनी आ अपना से तीन पोरसा ऊँचाई से नीचे कूद गइनी. माई सुनली त हमार परान बचावे खातीर बरम बाबा के दसो नोह जोड़त एगो पतुकी भाख देहली. कई शनिचर ले हम जलो चढ़वनी.

एह तरे के घटना पूरा टोला के साथे कई बेर घटल रहे आ कई बेर पतुकी चढ़ावल जाव. जल, अछत, फूल से धन्यवाद दिहल जाव. केहू के माता जी निकलें, केहू बीमार पड़े, केहू के पेट गड़े लागे, केहू के मरद खिसीआ के बहरा भाग गइल, केहू के बकरी भूला गइल, केहू के गाय-भँइस बिआइल, केहू के घरे कवनो नया काम भइल त बरम बाबा के पतुकी चढ़ावल जाय. तब देखे के मिले कि ऊ एगो खाली पीपर के पेड़वे ना हो के टोला भर के आस्था, विश्वास आ सुरक्षा के कारण आ जिम्मेदार के साथही सबके घर के आदरणीय पुरनिया लागेले. हमरा टोला के ऊ बरम बाबा कई बेर केहू के घर पर कवनो बिपत मडरइला पर हृदय के हिम्मत बन जाले. तन के ताकत आ आँख के असरा बन जाले.

गरमी में जब बरम बाबा के अंग-अंग से नवका पतई से स्निग्ध शीतलता भरल चमत्कार चमके लागेला आ दग्ध करे वाला सूर्य देवता के किरीन गरमी से बेहाल करे लागेले त ओह बेरा ऊ एगो विशाल मन वाला आश्रयदाता बन जाले. दिन के चढ़ते उनका छाँव में एगो विविधता आ अपनत्व भरल संसार के संरचना करे लागेलन. टोला भर के बुढ़उ लोग चैकी-खटिया डाल के देंह सोंझ करे लागेला लोग. हमनी के दुपहरिया में चढ़ल मना ह, से तरई-चटाई पर पचीसा के प्रोग्राम चालू हो जाला. जवान लोग के अलगे सभा जमेला. ओह लोग के आपन अनुभव बा. आपन चिंता बा. ऊ लोग पढ़-लिख के बेरोजगारी के चोट से अपना के असहाय बुझेला लोग. बाप-महतारी के असरा, भाई-बहिन के जिम्मेदारी आ बेरोजगारी के वास्तविकता के तलवार से घेराइल जवान भाइन के गरदन हमेशा ठेहे पर पड़ल रहेला.

कई जवान अपना के निकम्मा समझेला लोग. जवानन के ओही विचार-मंथन वाला सभा में मनोरंजन आ सृजनात्मक पक्ष के एगो नया रूप सभे देखे लागल. टोला में रामलीला मंडली बनल. पढ़ल-लिखल जवान अब दिन भर रामचरित मानस के पढ़ाई आ तैयारी के साथे अपना चरित्र के निखारे में लागल रहे लोग. चर्चा से हमनीयो के बुझा जाव कि टोला के कुछ नौजवान आपन रास्ता बदल देहले बाड़े. ओह लोग में कुछ बाउर नियत उपजे लागल बा. नारायनी के दियरा में ऊ लोग रास्ता भूला के कान्धा पर बंदूक ढोए के तैयारी में लागल बा लोग.

चिंता सबके रहे. ताश के दाँव तैयार करत बुढ़उओ लोग में. रामलीला के अभ्यास करत जवनकनों में. बेटी-बहीन के विवाह-शादी के साथे आपन दुख-सुख करत औरतो लोग में. खैर, रास्ता बाउर रहे, से केहू साथ ना दिहल. बरमो बाबा ना. परिणाम बाउरे भइल. करम के फल त भोगहीं के रहे. मिल गइल. . . . ई बरम बाबा के छाँव के परताप रहे, या उनके औषधीय गुन, हमरा टोला में कबो केहू साँस के बीमारी के चपेटा में ना पड़ल.

भले टोला में केतनो शांति रहे, तबो बरम बाबा के लगे दू-चार आदमी लउकीए जाय. मौसम कवनो होखे. बहाना कुछू होखे. गरमी के दिन के ढलान पर हमनी के बोरा-तरई बिछा के पढ़े बैठ जाई जाँ. चैहान जी मास्टर साहेब के निर्देशन में रस बने लागे. बेल के रस. घूरा में पकावल बेल के रस. कबो-कबो हामी भरला पर हमनीयो के मिल जाव. बाबूजी, लाला, मास्टर साहेब आ भइया लोग त हिस्सा रहे लोग ओह रस-सम्मेलन के. मौका पर रहला पर बैरिस्टर मिया आ टेकमन राम मास्टरो साहेब के सम्मिलित क लिहल जाव. हमनी के पढ़ाई के बाद साँझ के बेरा नदी के ओर घूमें जाईं जाँ. घुमाई, नौकायन, स्नान आ फिर से घरे.

मौसम कवनो होखे, बाकीर बाबूजी आ लाला के ई दिनचर्या रहे कि साँझे-बिहाने रहेठा के खरहरा से दुआर बहारल जाव. गरमी में दुआर बहरला से धूरा ना उड़े से, पानी छिड़काव. जाड़ा में बरम बाबा के पतई आ चुअल चुन्नी से घूरा तैयार कइल जाव. कई बेर दऊँरी होखे त गरमी के रात में हमनी के ओही पर सुति जाई जाँ. गरमी से निजात पावे खातीर दुअरवे पर हमनी के पढ़इयो होखे. दुआर पर गाय बन्हा सों. दुअरवे पर बाबूजी के खाट लागे. अइसन कई बेर भइल रहे कि हमनी के पढ़त बानी जा तले ऊपर से करइत गिर गइल. कई बेर घोठा पर. गइयन के खूँटा पर. कई बेर रास्ता पर. एक बेर त चैहान जी मास्टर साहेब के गोड़े पर गिर गइल रहे. अइसन घटना गरमी आ बरसात में ढेर होखे, बाकीर जड़वो में बंद ना होखे. ई बरम बाबा के कृपा रहे कि कबो कवनो घटना ना घटल.

आज के राजनैतिक माहौल आ सामाजिक सोच के झरोखा से देखेनी त बरम बाबा सद्भावना आ समरसता के एगो ऊँचका आसन पर विराजमान प्रजा से प्रेम करे वाला राजा लागस. बाबूजी, लाला, माई, चाची आदि केहू में हम कबो जाति आ धरम के नाम पर कवनो फरक ना देखनी. ई व्यवस्था खाली बभनटोलीए के ना रहे. ताली कवनो हाल में एक हाथ से त बाजेला ना. जवना तरे एन्ने से कवनो भेद ना होखे, ओही तरे ओने से श्रद्धा रहे. ताश के दाँव होखे चाहे सामान्य चर्चा-परिचर्चा, भेदभाव के कवनो संकेते ना मिले. एक्के चौकी पर बइठ के बैरिस्टर मियाँ से उनका नौकरी के प्रगति पूछे लोग त, नवकी-पूरनकी ताश के बेगम के कार्ड पर टेकमन राम मास्टर के छेड़े लोग. अलगू राम के चिंता अलगे रहे आ बिशुन के राजनैतिक विचार अलगे. चिंता, सुझाव, प्लानिंग आ व्यवस्था, एह सब के गवाह बने बरम बाबा.

बरम बाबा के आस-पास के वातावरन भी मोहक रहे. बेली, अड़हुल, बैजंती आदि फूलन के गंध, अमरूद, सरीफा, अनार, केला, आम आदि के पाकल मीठास, जोतल, कोड़ल, झोरल खेतन के तैयार भइल ढेला से उठत माटी के सोन्हउला सुगंध. एह सब से आवृत ऊ वातावरण अपना ओर आकृष्ट करे खातीर कम ना रहे. ओही वातावरण में कबो नगेसरी फुआ के ताना मारल, त कबो होरील ब भउजी के एक गाल कइल मजाक. लछमीना डोमीन जब टोला में सुपा-बेनिया लेआवस त लाला ब के लग्गे बइठे के चाहस. बरम बाबा के छाया में आपस पसेना पोंछत ऊ हम लइकन खातीर घिरनी बनावत रहस आ आपन सउदा बेंचत रहस. टोला के जवानन द्वारा कबो जहीर ब चुड़ीहारी से लाइफब्वाय साबुन माँग के लहर लुटल जाव त कबो रूप ठाकुर से दाढ़ी बनववला के चर्चा. पारस बीन के गँठल तन के कारन टकटोरल जाव त कबो भीम बाबा के सौ रोग के एक दवाई के विश्लेषण होखे. कबो बकरीदन के धागा कंपनी पर बहस त कबो बूढ़वा बरम बाबा के अथान पर सफाई के चिंता. बरम बाबा सबके साक्षी रहलन. गाँव में डकैती पड़ला के भी, रामलीला के आयोजन के भी. अनगिनत बारात के असरा दे के आव-भगत के भी. बेटी के विदाई के भी. पतोहन के स्वागत के भी. अनेक जग-परोजन उनका सहन में होखे. अनेक हर्ष-अमरख के ऊ गवाह रहले. एही बीच में झगड़ा-लड़ाई, फौज-फौजदारी हमरो टोला में बढ़े लागल.

समय बदलल. घटना घटल. रामलीला बंद हो गइल. धीरे-धीरे दियारा से सटल हमरा टोला में चोरी-चमारी बढ़ गइल. नारायनी के बाढ़ से सासत होखे लागल. बलुई माटी पटे लागल. खेतन में ऊपज कम होखे लागल. गंडक के कटान बढ़ गइल. परिवार बढ़े लागल. अनाज के खपत बढ़े लागल. ऊपज घटे लागल. नौजवान भैया लोग दिल्ली, बंबई के रास्ता ध लिहले.

समय के उत्पात, जरूरत के मार, अपना पानी के रक्षा के अइसन चिंता भइल कि टोला से सभे पलायन करे लागल. टोला के दायरा सिमटे लागल, नदी के दियारा बढ़े लागल. सभे अपना चादर भर गोड़ पसारे लागल. एन्ने-ओने जगह-जमीन खरीद के झोपड़ी-मकान बनावे लागल. टोला के अधिकतर लोग तमकुही रोड में बस गइल. हमनीयो के. . . . जमीन ओहिजा रहे. बगीचा ओहिजा रहे. बँसवार केहू कहाँ ले जाव?

बौद्धिक बल के अधिकता वाला लोग आपन दाँव हार के सुख-शांति चाहे. शारीरिक बल के अधिकता वाला लोग दोसरे भाशा बुझे. खैर, ओह परिस्थिति में भी जब हम कबो ऊहाँ जाईं त बरम बाबा के पेड़ के नीचे खड़ा हो के पसेना सूखाईं. पसेना का सूखाईं, उनका छाँव के, उनका स्नेह के, उनका आशीष के अपना में लपेट लेबे के चाहीं. हमार एक जने पट्टीदार हमरा आम के बगीचा पर आपन हक जमावे के कोशिश करें. लाठी के धौंस देखावें. मन में बड़ा क्रोध होखे. हर साल हो हल्ला. जिअत माछी कइसे घोंटाव. तब मन में आवे कि नारायनी ई सब काट लेती त सभे सबूर क लीत.

सन 2007 में नदी अपना भयंकर रूप में रहली. ओह साल खुब आम फरल रहे. नदी के कटानों तेज रहे. कहे ला लोग कि दू दिन से सिल्ली पड़ल रहे. नदी के धारा खुब गरजे. नदी के ओही प्रलयकारी रूप में बरम बाबा के पेड़ कट गइल. करीब पचास फूट ऊँचा ऊ बरम बाबा के पेड़ एक बेर गिरल त दोहरा के केहू देखिए ना पावल. उनकर चिन्हा नइखे, बाकीर मन में रहि-रहि के इयाद आवते रहेला.

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4 thoughts on “बरम बाबा (संस्मरण)”
  1. सच में, वैसे तो लगभग हर गाँव में बरम-बाबा रहते है, मगर हर जगह आप जैसे आँख वाले नहीं होते। बेहतरीन प्रस्तुति।

  2. नीमन बहुत खूब .लईकाइ के इयाद जिनगी के डोर ह इ जबले जान रही ना छुटी.
    रउआ लरिकाई इयाद दिला देहनी
    .बहुत बढ़िया

  3. धन्य बानी भाई जी! रउरा बतवला पर ढेर दिन बाद इहाँ अइनी हँ। राउर संस्मरण पढ़ के आनंद आ गइल। कमाल बा –
    ‘माई के अँचरवे ओढ़ना, बिछवना आ ओहार रहे. ओही से ढाँक के माई दू साल पहिले ले हमार भूख दूर करें. बातीयो त सहिए ह कि बच्चा के जनमते पहिला परिचय ओकरा माई के अँचरवे से होला. हमार लइकाईं त माई के अँचरा आ बरम बाबा के छाँव में ही बितल बा. हम आजुओ दूनू के महिमा के कायल रहेनी.’

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