माङ आ आङन के ङ (बतकुच्चन – १४९)

by | Mar 2, 2014 | 1 comment

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अब रउरा पतियाईं चाहे मत बाकिर संजोग कुछ अइसन बन जात बा कि पत से पतुरिया के चरचा फेरू पाछा छूटल जात बा. काल्हुए एगो लिखनिहार से बात होखत रहे त उ बात उठा दिहलन ङ के. हिन्दी में ङ के इस्तेमाल खोजले ना भेटाईं. संस्कृत में एकर इस्तेमाल होला आ एही से ङ वर्ण वर्णमाला से नइखे निकसत, ना त एकर कबे विदाई हो गइल रहीत. अलग बात बा कि तब कवर्ग में चारे गो वर्ण बाचल रहीत. सवाल बा कि जब ङ वर्णमाला में मौजूद बा त एकरा इस्तेमाल में अतना कोताही काहे होला? जबकि कुछेक शब्द जरूर अइसन भेंटा जाई जहवाँ ङ के इस्तेमाल बढ़िया कहाई. ओह लिखनिहार के बड़का शिकायत रहुवे कि हम ङ के इस्तेमाल काहे ना होखे दीं. जबकि हमरा इयाद नइखे कि कबो हम ङ के खुला विरोध कइले होखीं. हँ आङन का जगह आंगन के इस्तेमाल होखत रहेला आ हम ओह पर विरोध ना जताईं. एह विरोध ना जतवला आ सहमति में अंतर बा. आङन का जगहा आंगन लिखला में हमरा कवनो विरोध ना होला बाकिर ओह पर सहमत होखलो के कवनो कारण नइखे एहसे महटिया जानीं. अब चूंकि बहुते लोग, सगरी लोग कह दीहल गलत हो जाई, ङ के इस्तेमाल ना करे एहसे हमहूं ओह प जिदियाईं ना कि ङ के इस्तेमाल होखबे करो. शायद एहु से कि ङ के इस्तेमाल वाल अधिकतर शब्द में ङ का जगहा दोसरा वर्ण के इस्तेमाल से मतलब निकले में कवनो असहजता ना बुझाव.

आ जब चरचा निकल गइल त सोचे लगनी का कवनो शब्द अइसन बा जहा ङ के इस्तेमाल ना होखला से अर्थ समुझे मे गलती के संभावना बन जाला. चुनाव का मौसम से मत दीं आ मत दीं के बीच के अंतर तबले समुझ ना पाएब जब ले एह वाक्यांश के सही संदर्भ ना मालूम होखे. मत विचार भा वोटो के कहल जाला आ नाहियो खातिर मत कहल जाला. एह सोचावट का साथ ही मन में उभरल दू गो शब्द माङ आ माँग. एगो माङ उ भइल जवन आदमी भा औरत आपन केश सम्हारे में काढ़ेलें. केहू बीच में काढ़ेला केहू एक ओर. औरतन के माङ में सेनुर पड़ेला त मरद के माँग खाली रहेला. खाली त कुँआर लड़िकी आ विधवो के माङ होला बाकिर ओकर चरचा एहिजा गैरजरूरी बा. हँ त एह माङ आ माँग में अंतर अब रउरा एकदम साफ हो गइल होगी. जनता के माँग वाला माँग आ आदमी के माङ वाला माङ के अंतर ङ के इस्तेमाल से कतना निकहा कइल जा सकेला एहसे रउरो सहमत हो जाएब. जङिया आ जंघिया में ओतना बड़ अतर ना बुझाई आ आँगन आ आङनो का बीच इहे हाल बा.

ङ आ अंगऽ का बीच के अंतर बतावत समुझावत एगो अउरी बात के सफाई फेरू दीहल चाहत बानी. बहुते लोग पूर्ण विराम खातिर खड़ी पाई के इस्तेमाल करेला जबकि हम ओकरा बदले फुलस्टॉप वाला बिंदू के इस्तेमाल कइल पसंद करीलें. आ एकरा पीछे एगो तर्क इहो रहेला कि जब सगरी विरामचिह्न अगरेजी वाला ले लिहले बानी जा त एगो फुलस्टॉप वाला निशान से कवना बात के परहेज. जबकि फुल स्टॉप वाला बिंदु के इस्तेमाल जगह बचावेला. फुलस्टॉप आ पिछला शब्द का बीच कवनो जगहा ना छूटे जबकि पूर्ण विराम का पहिले थोड़िका जगह छोड़ल मजबूरी होला काहे कि ना छोड़ब त समुझल मुश्किल हो जाई कि ई खड़ी पाई आकार वाला पाई ह कि पूर्ण विराम वाला.

आ एकरा साथही आजु का चरचो पर पूर्ण विराम लगावत बानी. पत आ पतुरिया के चरचा अब अगिला बेर, बशर्ते फेरू कवनो दोसर बात मत उठ खड़ा होखे.

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1 Comment

  1. डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

    ङ के भोजपुरी में इस्तेमाल पर नीक कहलीं.ई भोजपुरी के सौभाग्य बा कि जवन ध्वनि हिंदी का पासे नइखे, ऊ भोजपुरी में बिया आ निकहा प्रयोग में बिया. हमनी के अपना एह थाती के कदर करेके चाहीं. आँखि मूदिके हिंदी के तर्ज पर काम कइला में हमरा लाभ कम नुकसाने ढेर लउकता.-विमल

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