वीर विशाल

by | Nov 20, 2014 | 0 comments

– डॉ॰ उमेशजी ओझा

UmeshOjha

एगो छोटहन गांव में दीपक अपना धर्मपत्नी सुरभी आ एगो 14 बरीस के बेटा विशाल के साथे रहत रहले. दीपक के कतही नोकरी ना लागल रहे. एहसे ऊ अपना परिवार के जीविका खातिर एगो ठिकेदार का लगे मजदुरी करत रहले. दिन भर मजदुरी कइला से जे थोड बहुत पइसा मिलत रहे ओहसे उनकर परिवार चलावे में दिक्कत होत रहे. जेहसे उनकर पत्नी सुरभि गॉव के नियरे बाजार में भाड़ा प एगो दुकान लेके सिलाई के काम करत रहली. दुनो के मेहनत से तीन लोगन के जिनिगी बड़ही सुखमय कटे लागल. दीपक के बेटा विशाल बड़ होनहार, तेज अऊर अपना मांई के हर बात माने वाला दुलारा बेटा रहले. ऊ अपना माई से बहुत प्यार करत रहले. माई के हर दुख तकलीफ अपन दुख तकलीफ समझत रहले. माई के काम से आवते अपना माई के सेवा में लाग जात रहन. मजाल रहे कि केहू कुछ विशाल के बोल दे. भूल से अगर केहू बोली दिहलस त ओकर खैरियत नइखे. विशाल के तरफ से उनकर माई सुरभि जे खाड़ हो जात रही.

आजु उहे सुरभि अपना पति के साथे अपना बेटा के मरणोपरान्त राष्ट्रपति से पुरस्कार लेवे खातिर राजपथ दिल्ली गइल बाडी. ऊ कुछ अऊर लोगन के साथ पुरस्कार लेवे खातिर बइठावल गइल रहलन. वोहिजा बइठल-बइठल दुनो बेकत अपना बारी के राह देखत रहे लोग आ मन ही मन सोचत रहे कि एह पल के कइसे इयाद कइल जाई. जे ऊ लोगन के जिअते जिनिगी सम्भव ना रहे तवन उनकर बेटा विशाल अपना मरला के बाद कर दिहले रहन. ऊ लोगन के अपना जिनिगी में कबहिओ राष्ट्रपति से भेट होखे वाला ना रहे अउर आजु उनका से ई लोगन के पुरस्कार मिले वाला रहे. कुरसी पऽ बइठल-बइठल सुरभि अपना बेटा के ईयाद में डुबत चलल जात रही कि घटना कइसे घटल आ उनकर बेटा कइसे उनका के छोड़ि के चलि गइल. घटना के दिन सबेरे-सबेरे विशाल…………

‘माई, हम पढें जात बानी.’
‘ठीक बा, जा बेटा इयाद रखिह कि हमनी के अगर आवे में देर होई त तू शांति से घर में रहीह आ खाना खा लिहऽ.’ अपना बेटा विशाल के समझावत सुरभि, स्कुल खातिर दुपहरिया के खाना के बक्सा विशाल के पकड़ा दिहली आ विशाल अपना किताब के बस्ता के साथ खाना के बक्सा लेके अपना स्कुल चल दिहले. ओकरा बाद दीपक……

‘अरे सुनतारू हो, विशाल के कुछ पइसा ना दे देलुहा, जेहसे हमनी के आवे में देर होई त कुछ कीन के खा लिही.’
‘अरे,रउआ काहें चिल्लात बानी. विशाल के हम पइसा दे देले बानी. चली जल्दि अपना काम पऽ निकली जा.’
दीपक आ सुरभि बतिआवते अपना-अपना काम प चलि गइल लोग. राति के समय करीब 08:00 बजे दीपक आ सुरभि दुनो बेकत बस से उतरि के घरे चलल आवत रहन. दोसरा ओरि विशाल अपना घर के आगे अपना दोस्त लोगन के साथ खेलत रहन. जईसहीं दीपक, सुरभी अपना घर से कुछ दुरी प रहे लोग, तसही दुगो बदमाश अपना मोटरसाईकिल प सवार होके ई लोग के करीब अइलन आ अचके में सुरभि के गर्दन से सोना के सिकरी नोचि के भागे लगलन. एह प सुरभी जोर से चिलईली..चोर……………चोर…………

अपना घर के आगेे खेलत विशाल अपना माई के आवाज सुनिके बिना कुछ सोचले समझले मोटरसाईकिल से भागत बदमाशन के रोक दिहले. मोटरसाईकिल से भागत बदमाश विशाल के चंगुल से छोडावे के बड़ी कोशिश कइलन बाकी विशाल उ लोग के ना छोडले. तब मोटरसाईकिल चलावत बदमाश पीछे बइठल अपना साथी सेे कुछ इशारा कइलसि. ओकरा बाद ऊ बदमाश विशाल के छाती, हाथ आ गोड प पिस्तउल से तीन गोली मार दिहलसि जेहसे विशाल के पकड ढीला हो गइल आ दुनो बदमाश भाग गइले. बाद में सुरभि आ दीपक खून से लथपथाइल विशाल के ईलाज करावे खातिर असपताल ले गइले जहवाँ डाक्टर लोग विशाल के मरल बता दिहले.

सुरभि ओहि घटना के सोचत कुरसी पऽ बइठल आकाश में कही अपना विर बहादुर बेटा के निहारत रही तबही उद्घोषक विशाल के नाम लेके आवाज दिहले. ओकरा बाद फउज के दुगो गबरू जवान दीपक,सुरभि का लगे आ के दुनो के अपना साथे पुरस्कार लेवे खातिर राष्ट्रपति के लगे ले जाये लगले. जइसे- जइसे सुरभि अपना गोड आगे बढावत रही वइसे-वइसे उनकर छाती ममता के दरद बरदाश्त करत रहे. उनका कान में उद्घोषक के आवाज गूंजत रहे कि, ‘निःसंदेह वीरता का अनुकरणीय और सराहनीय परिचय देते हुए चौदह वर्ष की आयु में विशाल नाम के किशोर ने अपनी माँ की रक्षा करने में अपने प्राण की परवाह किये बिना उन बदमाशों से भिड़ गया. धन्य है विशाल के माता पिता जो वीर विशाल जैसा बेटा पाये.’

अतना सुनेके रहे कि सुरभि के छाती चित्कार कर उठल आ उनका छाती में दबल ममता जागि गइल आ उनका छाती से एक हाली फेरू नौ साल बाद अपना वीर दुलारा बेटा विशाल खातिर अमृत के धार छलक पड़ल. सुरभि कवनो लेखा आपना छाती पर काबू पावत अपना पति के साथे पुरस्कार खातिर बनल मंच प जा के काँपत हाथ से राष्ट्रपति महोदय से अपना बेटा के मरणोपरान्त पुरस्कार लिहली.


(सत्य घटना प आधारित एह कहानी के पात्र आ जगहन के नाम बदल दिहल गइल बा. समानता मात्र संयोग हो सकेला.)

लेखक परिचय :
वाणिज्य में स्नातकोत्तर, बी॰एच॰एम॰एस॰, आ पत्रकारिता मे डिप्लोमा लिहले उमेश जी ओझा साल 1990 से लिखत बानी. झारखण्ड सरकार में कार्यरत उमेश जी के लेख आ कहानी अनेके पत्र पत्रिकन मे प्रकाशित होत रहेला.
ई कहानी एगो साच घटना प आधारित बा. एकर सचाइ के देखत एकरा मे स्थान आ पात्रन के नाम बदल दिहल गइल बा.

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(3)


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(4)

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(7)
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

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