कलयुग

by | Mar 30, 2015 | 0 comments

– डॉ॰ उमेशजी ओझा

UmeshOjha
रउरा मानी चाहे ना मानी, बाकिर धोखाघड़ी, ठगी आ एक दोसरा के टॉग खींचे के जमाना में ईमानदारी के मजे मजा बा. रउरा सभे के हमार बात अटपटा लागत होई, हमरा के पागल आ सनकी समझत होखब, कि कलयुग आ भ्रष्टाचार के जुग में अईसन कहे के हिम्मत करत बानी. मालिक, हमार बात त तनिक सुनीं. हम पुरा ईमानदारी से आपन बात दोहरा सकत बानी भा कहीं कि खुलासो कर सकत बानी.

ईमानदार होखला प सबसे पहिला बात होई कि राउर जेब हमेशा हउला रही. जेकरा से तमाम तरह के परेशानियन से रउआ छुटकारा मिली. जइसे कि ना त राउर जेब कटे के डर रही, ना ही घर में चोरी होखे के, आ ना ही इनकम टैक्स वालन के छापा मारे के.

ठन-ठन गोपाल होखे का चलते पहिले त रउरा से केहु उधारो मांगें ना आई. केहु भुलल भटकल आइओ गइल त ओकरा से आपन फाटल खाली जेब दिखा दिही. उ आदमी रउरा लगे से अइसन गायब होई जइसे गंजा के सिर से बाल. शायद ई सोच के कि कहीं रउवे ओकरा से कुछ उधार मत मांग बईठीं.

ईमानदार होखला प बाकी चीज त छोडिए दिहीं रोटीओ खाइल मुश्किल हो जाई. कवनो निहन सरक-सरक के महिना बीतल करी. छुट्टीओ का दिन में पत्नी आ बाल-बच्चा के कहीं घुमावे के फरमाईश पुरा ना करे के पड़ी, आ ना ही ओह लोगन के खरीदारी खातिर मेला बाजार ले जाए के पड़ी. बस चुपचाप घर मे पड़ल रहीं. अगर बाल बच्चा आ पत्नी कवनो चीज के फरमाईश कर दिहले त पहिले जबान से समझावे के कोशिश करींं. अगर ना मानस त आखिर में बाहुबल त बड़ले बा.

ईमानदार होखला प ना त केकरो से जादा दोस्ती होई, ना समाज में कवनो रूतबा, आ ना ही कवनो नाता-रिश्ता रउरा के घेरी. एहसे रउरा पासे समए समय रही. समय के कवनो कमी ना रही. बस रउरा पास चैने चैन होई. ईमानदार होखला प शायद कसहु रोटी त खा लेबि बाकिर जिनगी के दोसर चीज बस सपने रहि जाई. जेकरा से आपन पड़ोसियन, दोसतन आ नाता रिश्तेदारन से कवनो जलन ना होई कि फलनवा का घरे ओकर फलाँ सामान हमरा घर से बढिया कइसे बा. अइसन जिनगी रउरा ईमानदार भईले प मिल सकत बा.

ईमानदार भइला प कुछ परेशानी त जरूरे रउरा होई. जइसे राउर उसूल बराबर दोसरा के निजी फायदा से टकराई. रउआ अपने आपके समाज आ एह दुनिया में ना पाइब. रउआ पाइब कि रउआ से कम काबिल लोग आपन जिनगी में रउआ से कही ढेरि आगे निकलल आ कामयाब बाड़े. बाकिर कबो अइसन देखले बानी कि गुलाब के साथे काँटा ना होखे.

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