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"श्रीरामकथा" : सामाजिक परिवर्तन के एगो महाकाव्य

by | Apr 19, 2011 | 2 comments

“श्रीरामकथा” भोजपुरी में सामाजिक परिवर्तन के एगो प्रबंध काव्य बा.एकर रचयिता डॉ श्रद्धानंद पांडेय भोजपुरी के मूर्द्धन्य साहित्यकार हईं.एह काव्य में भलहीं रामभक्त कवि के भक्तिभावना केंद्र में बाटे बाकिर एकर पृष्ठभूमि वैचारिक बा.”सर्ग विभाजन से लेके कथानक तक में एह कृति में कवि परिवर्तन के पक्षधर बा आ अपना के परंपरा से अलग राखे के कोशिश में लउकऽता.श्रीरामकथा के प्रथम चरित्र,द्वितीय चरित्र आ तृतीय चरित्र नाम से तीन भाग में बाँटल गइल बा आउर तीनो चरित्रन में कुल मिलाके चालीस गो खंड लउकऽता.एह ग्रंथ के महाकाव्य कहल कहीं से अनुचित ना होई.
श्रीरामकथा के आरंभ से पहिले प्राक्कथन,दैनिक पाठफल,आत्मकथ्य,प्रस्तावना आ वंदना खंड से कवि के सामाजिक परिवर्तन के धमक सुनाए लागऽता.एहमें वैयक्तिक वैचारिकता के स्थापित करे के आ एगो नया परंपरा के शुरुआत करे के प्रयास लउकऽता.लगातार आगे बढ़ला पर कवि के समन्वयवादी आ मानवतावादी दृष्टि के विकास मिलऽता.
श्रीरामकथा के नायक राम सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार के रूप में लउकऽतारे . उनकर जीवन धर्म,राष्ट्र आ समाज के हित खातिर बा,अपना सुख सुविधा खातिर ना.डॉ पांडेय के राम खाली शील आ विनय के मूर्ति भर नइखन बलुक सभ धर्म आ वर्ग का प्रति समभाव राखेवाला एगो आदर्श मानव बाड़े.
कवि राम का शिक्षा के क्रम में कार्ल मार्क्स आ महात्मा गांधी के सिद्धांत के नीमन समन्वय कऽके एगो आदर्श व्यक्तित्व के रूपरेखा प्रस्तुत कइले बाड़े –
संपति विशेष ढेर शोषण के चिह्न हवे
चाहीं कबो तनिका ना दीन के सतावे के |
होखे अनाचार व्यभिचार दुराचार तब
न्याय हेतु चाहीं निज शस्त्र के उठावे के |
नून मुख देला बिना जोंक माने कबहूँ ना
छीन अधिकार मिले चाहीं ना भुलावे के |
चूसे के न चाहीं लहू होके परजीवी कबो
घोर श्रम कइल चाहीं हरि गुण गावे के | (८/ज्ञान खंड)
ज्ञान खंड का छठवाँ पद से अंतिम पद तक में कवि द्वारा व्यक्त व्यक्तित्व निर्माण के सूत्रन से नीमन सूत्र होइए नइखे सकत,अइसन हमार धारणा बा.नैतिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में विद्यार्थियन के अध्ययन आ मनन खातिर एह पदन के जरूर राखे के चाहीं.
यज्ञ खंड में राक्षसन के बिनाश के जवन योजना बनल बा,ओमें राम शोषित आ दलित लोगन के नेता के रूप में उभर के आवतारे आ विश्वामित्र उनका निर्देशक का रूप में-
मानव-मानव एक समान हवे शुभ पाठ पढ़ावल जाई.”शोषक राज विनाश बढ़े सब शोषित एक बनावल जाई.” (४/यज्ञ खंड)
डॉ पांडेय के राम एगो व्यावहारिक आ सामाजिक आदमी के भूमिका में अहिल्या का पक्ष में वकालत करतारे आ गौतम आ अहिल्या के मेल-मिलाप करावतारे . अहिल्या आ गौतम के हाथ मिलवा के मेल करावे के अंदाज बिल्कुल नया बा.उनकर नारी के प्रति दृष्टिकोण सराहनीय आ आदर्श बा आउर नारी-सुधार के प्रति पुरुष के सजगता के उनका तर्क के प्रचार-प्रसार जरूरी लागता —
नारी परमेश के कला के अनुपम सृष्टि
नारी शुभ द्वार के सुख,स्वर्ग के डहर के |
नारी महासिंधु स्नेह,त्याग अरु करुणा के
नारी अधिकारिणी समान निज नर के |
नारी नर-जीवन में प्रेरणा के देवनदी
नारी हई माई सब जीव चराचर के |
पथ-भ्रष्ट नारी के उदार हो सुधारीं ना त
असहीं बनेली नारी गणिका नगर के | (६अहिल्या-उद्धार खंड)
श्रीरामकथा के धनुष-भंग प्रसंग जाति-पाँति के बिसर्जन के कहानी बाटे.एह में धनुष के जाति-प्रथा के प्रतीक बतावल गइल बा.राम धनुष-भंग कइके जाति-पाँति के बिभेद के मिटावे के काम शुरू कऽ देतारे.परशुराम राम के एह कृत्य पर बहुत क्रोधित होतारे —
रामचन्द्र,जाति तूरि कइलऽ विवाह काहें
होई अराजकता समाज ढहि गइले | (२४/विवाह खंड)
श्रीरामकथा के राम दंडकारण्य में बनवासी लोग के कृषि कर्म के प्रशिक्षण देतारे आ ओह लोगन के सभ्य बनावे के प्रयत्न करतारे –
खेत बना कृषि कर्म सिखावत बासमती मड़ुआ मकई के |
गेहुम बूँट जई जव के बहु भाँतिन अन्न रबी भदई के |
राम कृपानिधि सभ्य बनावत दंडक कानन के मनई के |
रोज बटोरि पढ़ावत बालक चाल चला बन में भगई के |
(१२/अरण्यवास खंड)
बाकिर, डॉ. पांडेय के राम के सिद्धांतन के सीता परित्याग खंड में पता ना का हो जाता.भगीरथ बंश में उनुकर अपवाद ना चाहल ( “भूप भगीरथ के कुल में कवनो अपवाद न चाहत बानी.” ६/सीता परित्याग खंड ) सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर आ लाल क्रंति के समर्थक उनका चरित्र के खिलाफ बा.एहिजा कवि के एह बात के ध्यान राखे के चाहत रहल हा.”गर्भ पले सुत रावण के सिय के अछरंग लगावत बाड़े.” जइसन सीधा सपाट बयानन से कवि के बाँचे के चाहत रहल हा,काहेंकि आजुवो जन-जन का हृदय में राम पिता आ सीता माता का रूप में स्थित बाड़ी.एकरा बादो एक बात त तय बा कि श्रीरामकथा के वैचारिक पक्ष के बुद्धिजीवी वर्ग जरूर आदर करी.

रचनाकार के पता- पोस्ट- बोकारो थर्मल (झारखंड).
(किताब के बहुत पुरान संस्करण उपलब्ध भइला का कारन ओकरा दाम आदि के जिक्र नइखे कइल जात.)


समीक्षक : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

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2 Comments

  1. रामरक्षा मिश्र विमल

    बहुत नीमन लागल टिप्पणी.
    टिप्पणी आ खासकर संतुलित आ विधेयात्मक टिप्पणी से बहुत बल मिलेला आगे चले में. बहुत बहुत धन्यवाद.

  2. santosh patelsa

    bahut prabhawpurn samiksha…
    santulit
    aekdam sughar
    sadhuvad
    visheshkar….. ee kriti se hamani ke parichay karawe la
    bas bhojpuri maee ke sewa me lagal rahi.. bhaiya
    santosh

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