जेकरा खातिर चोरी कइनी उहे कहलसि चोर ! (बतकुच्चन – 188)

by | Apr 12, 2015 | 0 comments

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भन दे गन दऽ ना त दन दे हने लागब. तेजी के मापल जाव त ‘दन दे’ से तेज ‘भन दे’ होला. दन दे कहला क मतलब कि जल्दी से आ भन दे के मतलब ओकरो ले तेजी से. गन दऽ असल में गिन दऽ केउच्चारण दोस ह बाकिर गनल आ गिनल में कवन बेसी चढ़ल बा जबान पर से कहल मुश्किल लागत बा. गिनती गने वाला चीझन के होला, अब ऊ रुपिया होखे भा समर्थक विधायक. नोट के गड्डी में नोट आ अपना समर्थन में विधायका कई बेर जतना होखे ना ओकरा से बेसी लागेला. गने से पहिले पता ना चल सके. कहलो जाला कि आपन बुद्धि आ अनका के कमाई सबका बेसी लागेला. ठीक ओही तरह जइसे कि पड़ोसन आ उनकर नौकर दाई हमेशा अपना घरवाली आ घरवालन से नीमन लउकेला.

दूर के ढोल सुने में सुहावन सभका लागेला बाकिर जब कान का लगे बाजे लागे त शायदे केहू के नीक लागेला. ढोल के आवाज ओकरा पिटाई से निकलेला. एह पिटाई के हनल ना कहल जा सके. हालांकि हनल के मतलब पिटाईए होला. हनला आ पिटला में फरक सोचे लगनी त इहे बुझाइल कि हनला के मकसद हानि चहुँपवला से रहल होखी आ पिटाई के मकसद पटउर पारे से. हनाइलो आदमी पटउर पड़ सकेला आ पिटइला का बावजूद कुछ लोग पट ना पड़े. हार का बादो गलथेथरई क के अपना के जीतल देखावे के कोशिश करेला कुछ लोग. बाप महतारी जब नाम जीतना रखले होखी त अरमान रहल होखी कि हम त ना जीतनी बाकिर जीतना जीत के देखा दी. अब जीतना जतना जीतला के कोशिश कर लेव जीतना शायद ओकरा किस्मत में ना होखे. बाकिर एकरा से केहू जीते के कोशिशे कइल छोड़ देव, इहो नीक ना कहाई.

एही सबसे एगो कहाउतो याद आवत बा. जेकरा खातिर चोरी कइनी उहे कहलसि चोर ! जेकरा के आपन कुरसी दिहनी उहे हमार जियल मोहाल करे में लाग गइल. बाप के नाम साग पात बेटा के नाम परोरा. रहलन त ढेर दिन से राजनीति में बाकिर कमे लोग जानत रहुवे. बइठावे वाला भरत समुझ के बइठवलसि त बइठे वाला सोरे उखाड़े में लाग गइल. सोर जड़ के कहल जाला. आ बात जब जड़ के आ गइल त जान जाईं कि जड़ कवनो बात भा चीझु के शुरुआत होखेला, आधार होला, नींव होला. बाकिर अतना कुछ होखला का बादो मूढ़ के, अबुझ के जड़ कहल जाला. काहे कि ओकरा में चेतन ना होखे, अचेतन होला. आ अबुझ अउर अबूझ के बात करे से पहिले जड़ावर आ जड़ाऊ के बात कर लिहल चाहत बानी. हीरा, मोती भा नग जड़ के, माने कि जोड़ के, बनल गहना जड़ाऊ होला आ जाड़ा में पहिरे वाला कपड़ा जड़ावर. जइसे कि जे बूझे ना ओकरा के अबुझ आ जेकरा के बूझल ना सके ओकरा के अबूझ कहल जाला.

आजु के बतकुच्चन गन दे, दन दे, भन दे से फानत फनावत जड़ से पुलुई तक के चरचा पर आ गइल. अब एह फानत फनावत अइला पर फनफनइला के जरूरत नइखे. बात फन के बा फन के ना. अलग बात बा कि साँप के फन ओकर फन होला आ एही फन से फनफनाइल शब्द बनल होखी. काहे कि साँपो डेरावे खातिर भा नाराज हो के आपन फन निकाले के फन देखावेला आ फनफनावेला लोग कवनो बात से खिसिया के सामने वाला के डरावे खातिर फनफना जाला.

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(1)


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(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

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