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पिछला 2 नवंबर का दिने मारीशस आप्रवासियन के अइला के 180वां सालगिरह मनवलसि. एही दिने भारत से गइल गिरमिटिहा मजदूर पहिला बेर मारीशस का किनार पर पानी के जहाज से आ के उतरल रहले. आ हमरा बतकुच्चन के मसाला मिल गइल. आप्रवासी शब्द पढ़ के हम सोचे लगनी कि वासी कव तरह के होलें. आप्रवासी, प्रवासी, निवासी, आवासी, नवासी वगैरह अनेके प्रकार हो सकेला एह वासियन के. सबसे पहिले नवासी से निपट लीं काहे कि पहिला बेर सुनला पर लागी कि ई त संख्या ह, अस्सी आ नव मिल के नवासी हो जाला. बात सही बा बाकिर नवासा पर बसल लोग के का कहल जाई? ई लोग एक तरह से आप्रवासी होला जे कहीं से आ के बस जाला. अंतर अतने होला कि आप्रवासी के सब कुछ कमाए-खरीदे के पड़ेला जबकि नवासी के सब कुछ असहीं भेंटा जाला. ससुरारी के वारिस होखला का बाद ओहिजे बस जाए वाला के नवरसा कहल जाला काहे कि ई लोग नवासा पर बसल होला. नवासा मतलब जब केहू वास करे वाला ना रहि जाव त उ जगह नवासा हो जाला आ ओह पर आ के बस जाए वाला नवासी भा नवरसा बन जाले. अब एह नवरसा आ घरजमाई में फरक होला. सास-ससुर-सार-सरहज का रहतो ससुरारी में बस जाए वाला के घरजमाई कहल जाला. हालांकि ओकरो वंश ओह जगहा ला नवरसे हो जाला बाद में.

एही तरह निवासी आ आवासी पहिला नजर में एके लगला का बावजूद दू गो अलग तरह के वासियन के कहल जाला. निवासी अपना वास से निकल के दोसरा जगहा आवास बना लेला. रहे वाला हर जगह आवास हो सकेला बाकिर हर आवास निवास ना होला. आवास आगे चल के निवास बन जाव त अलग बात बा. ई कुछ वइसने होला जइसे स्थायी आ मौजूदा पता होला. स्थायी पता निवास के होला आ मौजूदा पता आवास के. घर मकान आ डेरा का तरह. डेरा त कुछ देर, दिन, महीना भा साल ला हो सकेला. बाकिर होला हमेशा अस्थायी. मकान स्थायी होला ओहमें रहे वाला स्थायी होखे भा ना. आदमी के अनेके मकान हो सकेला बाकिर घर एके गो होला.

अब आइल जाव आप्रवासी आ प्रवासी पर. एक देश के प्रवासी दोसरा देश के आप्रवासी हो जाला. प्रवास पर निकलल आदमी प्रवासी हो जाला अगर उ अपना नयका देश के वास बना लेव ओहिजे के नागरिक बन जाव. आ ओह देश ला उ आप्रवासी कहल जाला. आ के वास बना लेबे वाला आप्रवासी. वास आ प्रवास के क्रम लगातार चलत रहेला. आप्रवासी आगे चल के वासी बन जाले, ओहिजे के नागरिक बन जाले.

चलत चलत वास आ बास के चरचा पर खतम कइल चाहब. उच्चारण दोस का चलते कुछ लोग व के ब बोलेला आ एही से वासी आ बासी एके शब्द के दू गो रूप हो जाला. बाकिर बासी बासी ना होखे त बासी ना हो सके. ढेर देर से बना के राखल भोजन बासी हो जाला आ ढेर दिन से रहे वाला वासी ओहिजा के बासी हो जाले. नया नया आ के वासी बनल आदमी तब ले बासी ना हो सके जब ले ऊ बासी ना हो जाव. अब बासी बासो मारेला आ बास सुवास रहे तबले त ठीक बा बाकिर बास जब बरदाश्त करे लायक ना रह जाव त उठा के फेंक दिहल जाला. आप्रवासी आ घुसपैठी में इहे बड़का फरक होला कि घुसपैठी बास बहुते मारेले आ समय रहते निकाल के फेंक देबे के चाहीं ना त सब कुछ बसाए लागी आ बसे लायक ना रहि जाई.

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By Editor

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