काल्हु करे सो आजु कर, आजु करे सो अब / पल में परलय होएगा बहुरि करोगे कब. पता ना कवना कवि के लिखल ह ई बाकिर जमाना से सुनत आइल बानी अइसन सलाह. सलाह सही होखला का बावजूद मन में होखे लागेला कि, आजु करे सो काल्हु कर, काल्हु करे सो परसो / ज्लदी जल्दी क्या है, जीना है जब बरसो. बतकुच्चन के एक कड़ी भेजला का साथही शुरू हो जाला अगिला के तइयारी. रोज सोचीले कि आजु लिख के राख देब बाकिर होत होत आखिर में उ दिन आइए जाला जब बात दिन के ना रहि के घंटा पे अटक जाला. आ जल्दी से लिखे का फेर में अधिकतर इहे होला कि सोचले कुछ रहीले बाकिर बाति दोसर उठ जाला. आजुओ उहे होखे जात बा.
काल्हु शब्द भोजपुरी में खूब इस्तेमाल होला हिंदी वाला कल खातिर. हिंदी में काल्हु का जगहा कल के इस्तेमाल होखेला. काहे ? एह प हमार कुछ कहल ठीक ना रही. से लवटत बानी असल मुद्दा प.
पिछला दिने एगो रचना पढ़त घरी कल पढ़े के मिलल आ हम सोचे लगनी कि लेखक कल काहे लिखलन जबकि उनका नल लिखे के चाहत रहुवे. कल आ नल दुनू से पानी आ सकेला बाकिर नल से पानी लेबे खातिर बस ओकर चाभी घुमावे के होला जबकि कल से पानी निकाले खातिर कुछ मेहनतो करे के पड़ेला. चापाकल एकर सहज उदाहरण होखी. काहे कि कल मशीनो के कहल जाला. कोलकाता में त कल कारखाना भरल रहली सँ बाकिर कुछ लोग के कल ना पड़त रहे ई देख के कि मेहनत करे लेबर आ मुनाफा कमाए मालिक. आ ओह लोग के बेकलि के नतीजा आजु सभे भोगत बा. खैर, हम त काल्हु से कल, कल, आ कल पर आवे का राह प बानी. झरना आ नदी के कलकल सुने में जतने बढ़िया लागेला ओतने बेमतलब के कलकल खराब. कल के मतलब होखेला झरना भा नदी के पानी गिरला बहला से होखे वाला मधुर आवाज, मशीन के कल पुर्जा वाला कल, पानी देबे वाला कल, आवे वाला भा बीतल दिन वाला कल, मन के चैन शान्ति वाला कल, वगैरह. देखीं ना काल्हु वाला कल के चरचा करत पाता ना कतना मतलब निकल आइल कल के. शायद एही से हमनी के आवे वाला भा बीतल दिन खातिर कल ना कहि के काल्हु कहीले जा. कुछ लोग काल्हु के अर्ध उ से असहज हो सकेला. बाकिर साँच मानी त ई भोजपुरी के जान ह. हिंदी में हर्स्व आ दीर्घ पढ़ले बानी जा, पढ़तो रहेनी जा बाकिर अर्ध हर्स्व आ दीर्घ दीर्घ भोजपुरी के खासियत ह. काल्हु वाला उ अर्ध हर्स्व ह, पूरा हर्स्व ना. उमेद त इहे बा कि रउरा सभे समुझ गइल होखब हमार बाति. बाति के मतलब बात से बा हमार, छाती के बाती भा दिया वाली बाती से ना.
बाकिर उ बतिया त हम बतइबे ना कइनी जवन हमे कहे चलल रहीं. सोचले रहीं कि अनेरियन के अनेर पर कुछ लोग के अनेरे चिंतित रहला आ देश के संसद में एह बारे में होखे वाली चरचा प लिखब. गनीमत बा कि सरकार एहनी का चाल में ना फॅसल. हँसी मजाक, बहसा बहसी, गाली गलौज, मारपीट में शायदे सीमा के धेयान रखा पाला. जरूरी नइखे कि ढेला मारे वाला के थपड़ियाइए के छोड़ दिहल जाव. हो सकेला केहु ओकर हाथे तूड़ देबे में विश्वास करत होखे. गलती हमेशा पहिला ढेला चलावे वाला के होला. ढेला के जबाब मिले खातिर ढेला चलावे वाला के हमेशा तइयार रहे के चाहीं. पिटइला का बाद ओरहन दिहला के हक ना होखे ओकरा लगे.
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बढ़िया जानकारी. धन्यवाद