बकसऽ ए बिलार मुरगा बाँड़ हो के रहीहें.
रउरा सभे सोचत होखब कि ई हर हफ्ते का आ जालें बक बक करे. आ हम सोचीले कि ल फेर कपारे आ गइल बतकुच्चन करे के दिन. गनीमत एतने बा कि बहुत कमे जगहा घेरे के पड़ेला. जइसे नाच का बीच बीच में आवे वाला लबार के काम एके दू लाइन में आपन बात कह जाए के होला. बाकिर का कबो सोचले बानी कि नाच में लबार के काम कतना मुश्किल होला. पहिला नजर में त इहे लागेला कि दू गो नाच का बीच के समय काटे ला लबारन के इस्तेमाल होला. उ आवेलें आ मंच पर आ के तब ले लब लब करत रहेलें जब ले दोसरका नाच के तइयारी पूरा ना हो जाव. आ हम सोचत बानी कि संस्कृत के विदूषक भोजपुरी में आ के लबार बन के काहे रहि गइल. जबकि काम आ आचरण दुनू के एके जस होला. शायद एहसे कि भोजपुरी भा लोकभाषन में नया नया शब्द सहजे में गढ़ लेबे के ताकत होला. लब लब करे वाला लबार हो गइल. लबार शब्द गढ़त में लोकमन ई ना सोचलसि कि विदूषक के बात लब लब लागेला जरूर बाकिर आसान ना होला. एह लब लब करे में ओकरा पूरा तइयारी करत रहे के पड़ेला. अंंगरेजी के जोकर आ एह लबार का बीच के फरक समुझीं तनी. जोकर के काम जोक करे भर के होला. आवेला, हँसावेला आ ओकर काम पूरा हो जाला. बाकिर विदूषक भा लबार के काम जोक मारही ले ना रहे. हँसावे का अलावे कई बेर ओकरा बात में चोटो होला, धारदार चोट. सामाजिक विसंगतियन पर उ हँसी मजाके में चोट कर जाला आ एह चोट के पता चलेला तब, जब हँसी के गुबार निकल के गुजर जाला. पन्द्रह से बीस लाइन के एह बतकुच्चन करे में कतना माथ खपावे के पड़ेला ई मास्टर साहब लोग जानत होखी कि चालीस पैंतालिस मिनट के क्लास पढ़ावे ला घर पर कव घंटा मथफोड़ करे के पड़ेला.
अब विदूषकके चरचा क के विडम्बक के भुला दिहल ठीक ना कहाई. विडम्बक के समुझावे ला कबीर आ कमाल के चरचा आसान रही. कबीर दास के एगो दोहा ह कि ‘चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय / दो पाटन के बीच में साबित बचे ना कोय’. कबीर दास बड़हन ज्ञाता रहलन बाकिर उनके पूत कमालो कमाल के रहलन. त कमाल कहलन कि ‘चलती चाकी देखि के हँसा कमाल ठठाय / कील पकड़ कर जो रहे कभी ना पिसा जाय’. एगो दोसर कवि विडम्बक के बात समुझावे ला कहले बाड़न कि ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा बान / विडम्बक वहीं पास में खड़ा छेड़ता होगा उलटी तान’. कवनो बाति के विडम्बना खोज के सामने ले आवे वाला होखेला विडम्बक. उ मजाक ना उड़ाए बलुक सामने वाला के भा ओकरा कहल बाति के दोसर पहलू सामने ले आवेला.
लबार विदूषक होला, विडम्बक होला, जोकरो होला, आ एने के बात ओने करे में माहिरो. आजु के बतकुच्चन में एह फालतू के चरचा के मकसद कुछ अउर बा. हम चाहब कि रउरा सभे अपना माईभाषा के जियवले राखे में हर सीमा ले जाए के तइयार रहब. भोजपुरी के बहुते कुछ शब्द व्यवहार में ना अइला का चलते खतम होखे के कगार पर बाड़ी सँ. ओकनी के इस्तेमाल ना होत रही त बिला जइहें स. एही चलते हम बिसरल जात शब्दन के जाल बुने के कोशिश करीलें जेहसे कि रउरा सभे बिसार ना पाईं ओह शब्दन के.
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