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रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून. पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून.

पानी के महत्ता हमनी सभ के मालूम बा. जाने वाला लोग बतावेला कि तिसरका विश्वयुद्ध पानिए खातिर होखी काहे कि पानी घटल जात बा, लोग बढ़ल जात बा. पानी पर मुहावरो बहुते बाड़ी सँ. जइसे कि पानी चढ़ावल, पानी उतारल, पानी पानी क दिहल भा हो गइल, पानी के मोल, पानी में फेंकल, पानी में बहावल, पानी अइसन बहावल, पानी पानी भइल, पानी फेरल, पानी में आग लगावल, पानी के बुलबूला, पानी आइल भा पनियाइल वगैरह.
बाकिर एहसे पहिले कि हम एह मुहावरन का जाल में अझुराईं चलि कुछ ओह पानी के बात बतिया लिहल जाव जवना का बारे में कवि रहीम कह गइल बाड़न. दुनिया के अधिकतर जीव भा निर्जीव पदार्थन में पानी के बहुतायत होला. आदमी के देह के करीब तीन चउथाई पानिए होला. बाकिर रहीम एह पानी का बारे में ना बतियावत रहले उ त ओह पानी का बारे में बतियावत रहले जवन कबो चमक हो जाला, कबो इज्जत त कबो सब कुछ बदल देबे वाला रसायन. पानी कबो हट के खतम करेला त कबो सट के, घुसि के. मोती के पानी से मतलब ओकरा चमक से बा. जवना चलते उ पानी के मोल ना बिका के बड़ मोल प बिकाला. मानुष के पानी माने ओकर इज्जति. एक बेर आदमी के इज्जति, मान प्रतिष्ठा हेरा जाव त फेर खोजले ना भेंटाव. आदमी के पानी एक बेर उतर गइल त फेर हमेशा ला समाज ओकरा के हिकारत का नजरे देखे लागेला. बाकिर चूना का बारे में. जब कली चूना में पानी मिलावल जाला भा ओकरा के पानी में डूबावल जाला त ओकरा में एगो बदलाव आ जाला जवन हमेशा ला होखेला. एक बेर कली चूना से चूना के घोर बन गइल त ओकरा के फेर कवनो हाल में कली चूना ना बनावल जा सके. आ घोरलो चूना के पानी अगर सूख जाव त उहो फेर कवनो काम के ना रहि जाव, गरदा बनि के रह जाला.

जान जाईं जे आजु पानी के चरचा एह से करे बइठनी कि बात पनछा आ पनका के निकल गइल रहुवे. कई बेर गलती से पनका आ पनछा के इस्तेमाल गड्डमड्ड हो जाला. बाकिर जब लिखे बइठनी त रहीम के दोहा याद आ गइल आ बात पानी पर चल गइल. चलीं उहो सब कुछ हमरा रउरा कामे के बात रहल. जब कवनो पौधा के नया कोंपल निकलेला त कहल जाला कि पनका निकलत बा, भा पनका फेंकले बा. पनछा पानी जइसन रस के कहल जाला. देखले होखब कि घाव से कबो गाढ़ पीब निकलेला त कबो पानी जइसन बहाव. एही के पनछा कहल जाला. बाकिर बात जब रस के भइल त पनछुछूर के चरचा कइसे भुलाई. जब कवनो चीझु के सवाद पानी जइसन बेसवाद लागेला त कहल जाला कि पनछुछूर लागऽता.

पनका के एगो नमूना पनकलो में देखे के मिलेला. आदमी जब कवनो बात प नाराज हो जाला त बहुत कुछ कहे लागेला खीसि में. कहल जाला कि पनक गइलन आ एकरे के पनकल कहल जाला. एही पनकल के कुछ लोग पिनिकलो कहेला. त कुछ लोग इहो पूछ बइठेला कि का पनपनाइल बाड़.

बात पानी प शुरू भइल रहुवे आ पानिए पर खतमो करब. पानीदार माने कि इज्जतदार आदमी के पनिगर कहल जाला. आ पनरोहा ? पानी बहे वाला नाली भा मोरी के पनरोहा कहल जाला. पनरोहा मतलब पानी के राह. गाँव जवार में आए दिन एही पनरोहा लेके झगड़ा होत रहेला आ पानी ह कि जेने ढाल देखी तेनिए बह चली. आ पानी भरे वाला के पनहरा कहल जात रहुवे. हालांकि पानी भरल एगो मुहावरो ह जेकर मतलब होला केहू के नौकरी कइल. त पानीओ भरल त नौकरिए रहुवे आ ओकरे के मुहावरा बना दिहल गइल कि हार गइनी त तोहरा किहाँ पानी भरब. आ आखिर में पनछुआ का बारे में बतावत चले में कवनो हरजा नइखे. दिसामैदान भा शौच का बादे मलद्वार के पानी से धोवला के पनछुआ कइल जाला. पनछुआ पर बात खतम क के चलत बानी पनछोपा. तालाब पोखरा के किनार के पनछोपा कहल जाला.

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By Editor

One thought on “रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून (बतकुच्चन 167)”

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