काकी के काका नाना (बतकुच्चन – १४४)

by | Jan 22, 2014 | 1 comment

admin

काकी के काका नाना.

ना ना आजु हम एहिजा कवनो रिश्ता फरियावे नइखी आइल आ ना ही नाता रिश्ता का बारे में बतियावे. आजु हम भोजपुरी में कि, की, का आ के का बारे मे बतियावल चाहत बानी. भोजपुरी लिखे वालन में कि आ की के इस्तेमाल में गलती बहुते होखेला. से सोचनी कि काहे ना आजु एही प कुछ बतिया लीहल जाव. वइसहू पिछला कई बेर से भासा के बात कम भासन के बात अधिका भइल बा.

कहल जाला कि बिगड़ल के केहु भलही बना लेव बनलका के का बनाई? एहिजा बनल भा बनलका शब्द के इस्तेमाल में व्यंजना बा, तंज बा. एह बनल मे बनल कम बिगड़ल अधिका शामिल बा. बहुते बिगड़ल आदमी का बारे मे कह दिआला कि छोड़ऽ ओकर बाति मत करऽ, उ त बहुते बनल ह. आ बनल बिगड़लो के कहाला आ घमंडिओ के. आ अइसनो ना होखे कि एक आ एक हरदम एगारहे कहाव. काम बन गइल माने काम हो गइल, खाना बन गइल माने खाना तइयार हो गइल. त बिगड़ल काम बन सकेला बाकिर बनल काम ना बन सके. ना विश्वास होखे त तनिका दिल्ली के देख लीं. जब कवनो बात अतना लाइलाज हो जाव कि सुधारल ना जा सके त ओकरे के मान लिआला.

हँ त शुरू भइल रहीं कि आ की से त ओहिजे लवटल जाव. कि आ की के इस्तेमाल में बड़हन लापरवाही देखे के मिलेला. जब कवनो वाक्य के दू गो हिस्सा मिलावे के होला त कि के इस्तेमाल कइल जाला आ जब दू गो शब्द का बीच संबंध देखावे के होला त की के. बाकिर भोजपुरी में व्याकरण के कमी का चलते मनमानी ढेर चल जाला. गाछ ना बिरीछ तहाँ रेड़ परधान. जेकरे जइसे मन कर देला उ ओही तरह आपन भोजपुरी लिख बोल लेला. गनीमत अतने होला कि समुझे वाला अकसरहाँ सहिए समुझेलें. लेकिन अगर भाषा के जिअवले राखे के बा, बढ़ावे के बा त कहीं ना कहीं कवनो तरीका बनावहीं चलावहीं के पड़ी. कि आ की के इ लापरवाही कबो कबो बाकी आ बाकिओ में देखे के मिल जाला. हम जान बूझ के एकरा के लापरवाही कहत बानी गलती ना. काहे कि पता ना कब के आपन आकी बाकी सधावे लागे.

बाकि बाकिर के अधवा हिस्सा ह जहाँ र के ध्वनि लुका गइल बा. आ बाकी बकाया वाला बाकी के कहल जाला. आशा करत बानी कि रउरा सभे एह बात प धेयान देब आ कि भा की के इस्तेमाल में सावधानी बरतब.

एहिजा फेर एगो पेंच फँसल लागत बा. जइसे कि हम बेर बेर कहले बानी कि भोजपुरी में भी शब्द के इस्तेमाल असहज लागेला आ भरसक कोशिश होखे के चाहीं कि भी के इस्तेमाल मत होखे. ओही तरह भोजपुरी में की के इस्तेमाल कम से कम करे के चाहीं. राम की बाइक, सीता की साड़ी वगैरह में आइल संबंधसूचक शब्द की भोजपुरी में शायदे इस्तेमाल होखे के चाहीं. भोजपुरी मे की का जगहा के, भा क के इस्तेमाल होखेला. जइसे कि राम के बाइक, सीता क साड़ी वगैरह. के आ क दुनू मान्य होखे के चाहीं काहे कि भोजपुरी एगो बड़हन इलाका में पसरल भासा कम बोली अधिका हियऽ आ जगहे जगह एहमें नजर आवे वाला अंतर के सहज भाव से लेबे के चाहीं. बावे भा बाटे, आ बाड़े, बाने, बारे वगैरह शब्दनो का साथे इहे हाल बा. केकरा के सही आ केकरा के गलत कहल जाई एहमें बड़हन बड़हन विद्वान अझूरा जइहें. हमार का औकात बा. बड़ बड़ जने दहाइल जासु आ गदहा पूछे कतना पानी? बाकि भोजपुरी मे एह तरह के चरचा बतकुच्चन के कमी का चलते हमरा इ सब करे के पड़ेला कि विद्वान लोग बात के बतगंड़ बनावे, चरचा चलावे जेहसे कि कवनो सन्मार्ग निकल सके सभका सोझा.
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1 Comment

  1. omprakash amritanshu

    सुझाव देवे खातिर धन्यवाद……

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