गति से दुर्गति ले (बतकुच्चन – 178)

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एगो गति संज्ञा होले आ दोसरका गति भा गत विशेषण. दुनू में छोटकी इ के मात्रा लागेला बाकिर दोसरका गति से छोटकी इ के मात्रा हट गइल काहे कि उ मात्रा छोटको ले छोटकी इ के रहुवे जवन बोले में त सहज लागी बाकिर लिखत में असहज क देले. जइसे कि बाति लिखे में ठीक ना लउके बाकिर बोले में सहज भाव से बोला जाला. बाकिर आजु हम गति गोत आ गोतिए ले अपना के बान्ह के राखब. ढेर एने ओने भागब त गति खराब हो जाई.

गति से सद्गति, अधोगति, प्रगति, दुर्गति, संगति भा संगत, गत, विगत, आ बेगत जइसन शब्द बनल बाड़ी सँ. गोत गोत्र से बनल बा आ एके गोत्र, परिवार भा समूह, के आदमी के गोतिया कहल जाला. गोत्र एक तरह से जाति का भीतर के जाति, माने कि उपजाति, के कहल जाला. जब दू भा अधिका लोग के गति एक समान होला त कहल जाला कि उ लोग संगति में बा. इहे संगति नृत्य-संगीत का दुनिया में संगत बन जाला. जब नर्तक भा नर्तकि के संगति देबे खातिर संगीत दिहल जाला त ओकरो के संगत कहल जाला. दू गो वाद्ययंत्र, माने कि बाजा, बजावे वाला लोग एक दोसरा के संगत देला.

अइसने संगत राजनीति का मैदान में दुगो अलग अलग गोलो का बीच में देखे के मिलेला. जबले संगति के गति एक जस रहेला तब ले त निबहे ला बाकिर गति बिगड़ते गत बिगड़े लागेला आ दुनू गोल एक दोसरा के गत करे में लाग जालें. केहू के हालत खराब कइलो को गत कइल कहल जाला. तोहार त हम उ गत करब कि चिन्हाए लायक ना रहि जइबऽ. हालही में भइल महाराष्ट्र चुनाव का दौरान अइसही दू गो संघतिया एक दोसरा के गति बिगाड़े में लाग गइलें आ चुनाव बाद जब मजबूरी लउकल त कहे लागल लोग कि हमनी के गोत एके हऽ से हमनी का निबाह लेब जा. दिन बीतल जात बा बाकिर निबहल लउकत नइखे.

अइसहीं होला सद्गति. कवनो चीझु भा आदमी के गति बढ़िया हो जाव, निमना लोग का संगत में रहे लागे त कहल जाला कि सद्गति का तरफ जा रहल बा. सद्गति के चरम होला जब आदमी ई दुनिया छोड़ के चलि जाला. कहल जाला कि उनकर सद्गति हो गइल. आ बातो सहिए होला काहे कि जब आदमी ओह दुनिया में चल जाला त ओहिजा बढ़िे संगति मिलेला. गति के एगो दोसर रूप होला अधोगति के. जब आदमी के हालात आ सुभाव बिगड़त जाला, ओहमें गिरावट आवे लागेला त ओकरा के अधोगति कहल जाला. सद्गति आ अधोगति के तुलना प्रगति आ दुर्गति से कइल जा सकेला. एह गति में संगत के महत्व कम होखेला हालात के महत्व बेसी. उपर भा आगा का तरफ बढ़ल प्रगति कहल जाला आ पीछे भा नीचे का ओर गिरल दुर्गति. हालांकि दुर्गति कबो कबो दोसर लोग करा देला. जबकि प्रगति खातिर खुद अपने मेहनत करे के पड़ेला.

गत के प्रयोग बितलो खातिर होला जवना के विगत कहल जाला. जवन बीत गइल होखे तवन विगत बाकिर जेकर गति खतम हो गइल होखे, हालात बिगड़ गइल होखे उ बेगत के हो जाला, विगत होखो भा ना. चलत चलत गोत्र के एगो अउर रूप बतावत चलीं. समाज में गोत्र ओह ऋषि का नाम पर चलेला जिनका गुरू से राउर पुरखा शिक्षा लिहले रहले. गोत्र के दू गो बड़का समूह होला. एगो तीन के आ दोसरका में तेरह गो के. आ एही चलते कह दिहल जाला कि हमार का, हम त ना तीन में बानी ना तेरह में! गोत्र बाल बचवन के याद करावे के पड़ेला. जाति में बिआह होला, उपजाति में ना आ गोत्र में त एकदमे ना. अब ई हम लस्टम बाबा प छोड़त बानी कि जाति, उपजाति आ गोत्र का बारे में रामचेला के सिखावसु, ओही बहाने हमनियो का सीख लेहब जा.

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