डगर प डगरल (बतकुच्चन १३५)

by | Dec 1, 2013 | 0 comments


घर आ डेरा, चलल आ डगरल. घर डेरा ना होखे आ डेरा घर ना कहाव. ओही तरह चलल कुछ अउर बात ह डगरल कुछ अउर. हालांकि घरो में आदमी रहेला आ डेरो में. चललो में चलल जाला आ डगरलो में. अब एहिजा घर आ डेरा के फरक त बहुते लोग जानेला. खास क के उ लोग जे आपन गाँव घर छोड़ महानगरन में डेरा डाल लिहले बा. डेरा अस्थायी शिविर होला. आजु एहिजा बानी काल्हु ओहिजा. डेरा में ना रहीं त डेरा डेरा डेरा ना रहि जाव. जबकि घर में रही भा ना घर हमेशा घरे रहेला. दिक्कत आवेला नयकी पीढ़ी के. जे जनमल त डेरा में , पलाइल पोसाइल डेरा में, बहुत लोग के त शादी बिआह ले डेरा से हो गइल. स्वाभाविक होखी कि एह पीढ़ी ला डेरा डेरा ना होके घर जइसन हो जाला. बाकिर तबहियों ऊ घर ना हो पावे जबले डेरा के घर बना ना लीहल जाव. घर बनवला के मतलब कि ओह डेरा के स्थायी बना लिहल. जमीन मकान खरीद के ओहिजे बस गइल. एह हालत में पुरनकी पीढ़ी ला होखे भा ना होखे नयकी पीढ़ी ला उहे घर हो जाला. काहे कि ओकर सगरी इयाद ओही जगहा से जुड़ल होला. आ पुरनकी पीढ़ी वाला जमाना से डेरा के घर बना लिहला का बावजूद ओकरा के घर ना मान पावे. कही ना कहीं मन का कवनो कोना में ओकरा ओह घर के इयाद बनल रहेला जहाँ से ओकर बचप‍न जुड़ल रहल. एह हालात में पुरनकी आ नयकी पीढ़ी में एक तरह के खिंचाव बन जाला. पुरनका अपना घर ओर जाए चाहेला त नयका के बुझइबे ना करे कि जहाँ से बरिसन से कवनो आना जाना नइखे ओहिजा त अतना बेचैनी काहे. आ ई तबले बनल रही जबले नयकी पीढ़ी अपना बाद वाली पीढ़ी का सोझा ना आ जाई.

अब चलल जाव चलल आ डगरल पर. कुछ लोग घर से डेरा ले चल के जाला त कुछ लोग डगर के. सोचीं कि एगो के चलल काहे कहतानी आ दोसरका के डगरल. आदमी भा कवनो जीव भा वाहन जब कवनो योजना से, प्रयास क के, उर्जा खरच करत कहीं से कहीं जाला त ओकरा के चलल कहल जाला. आदमी चलेला, जानवर चलेला, गाड़ी चलेला. बाकिर डगरा के बैंगन चले ना डगरेला. एह डगरे में ओकरा वश में कुछ नइखे. ओकरा मरजीओ के सवाल नइखे कि उ ओने डगरल चाहत बा कि ना, आ एह डगरला में ओकरा ना त उर्जा खरच करे के पड़ेला ना प्रयास के जरूरत होला. एही तरह आदमीओ का जिनिगी में हो जाला जब ओकरा अपना मरजी का बिना हालात का मजबूरी से, नदी के धार में बहत एक जगहा से दोसरा जगहा ले डगर जाए पड़ेला. डगर राहो के कहल जाला आ डगरलो के. रहल बात डगरा के त अबहींए नू सूप आ डगरा से भेंट भइल रहुवे. सूप से छाटल जाला आ डगरावलो बाकिर डगरा से सूप जइसन काम ना लिहल जा सके. डगरा गोल आ सपाट होला जबकी सूप चौकोर.

चलत चलत डगर आ ठहर के बातो करत चलीं त गलत ना होखी. अब ई रउरा प बा कि एक ठहर से दोसरा ठहर ले डगर के जात बानी कि चल के. ठहर ऊ जहाँ आदमी ठहर जाव. ठहर पर ठहरल जाला आ जहाँ आदमी ठहर जाव तवन ठहर हो जाला. बाकिर हम एहिजा ना ठहर सकीं. हमरा त अबही डगरल जाए के बा. चलत बानी अपना डगर पर रउरा अपना डगरे जाईं.

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