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एगो कहाउत ह कि जवन तहरा घरे भोज तवन हमरा घरे रोज. कुछ अइसने भइल रहे जब एके दिन एगो राजा अपना महतारी के सराध का बारे में कहत रहले कि अइसन सराध आजु ले केहू ना कइले होखी. एगो दरबारी कहलसि कि ना हुजूर रउरा से अधिका त हरखुआ कइलसि. राउर त सब कुछ जस के तस पड़ल बा, ओकर त घर जमीन सब बिका गइल. कहे के मतलब कि कवनो दू बात के तुलना हर बेर एके पैमाना प ना कइल जा सके. ओकरा खातिर अनुपात देखे के पड़ेला. काहे कि कवनो बड़का परिवार में रोजे डेढ़ दू सौ आदमी खात होखींहे जबकि पाँच बेकत के परिवार खातिर सौ दू सौ आदमी के खिआवल भोज हो जाई. अइसने एह घरी राजनीति के गोलन में देखल जा सकेला. मीडिया एक गोल के चुन लिहले बिया आ रोजे कवनो ना कवनो बहाने एक गोल के चरचा होखत बा. उनका सादगी के उनका ईमानदारी के. जबकि उनका ला जवन भोज बा तवन कुछ गोल में रोजे होखत आइल बा. ममता बनर्जी के सादगी, ईमानदारी, साधारण गाड़ी से चले, साधारण मकान में रहे, साधारण कपड़ा पहिरे के कवनो मीडिया अतना चरचा कबो ना कइले. गोवा के मुख्यमंत्रि परिकर स्कूटर से चलेलें, अपने फ्लैट में रहेले, सरकारी आवास में कार्यालय चलावेले बाकिर मीडिया उनको चरचा नइखे करत. उ त बस झाड़ूवाला के डंडा उठवले चलत बा. असल में मीडिया अब खुदे एगो गोल हो गइल बा. ओकर आपन मकसद बा, आपन चरखी चलावे के बा. जवना हाँड़ी में ओकरा मीठ लउकत बा ओने चिँउटी जस जूझ पड़त बा. पता ना सही कि गलत एगो गोल मीडिया के साधे के भरपूत कोशिश कइलसि. हर तरह के फायदा दिहलसि आ मीडिया ओकर डुगीओ ढेर दिन ले पिटलसि. बाकिर जब ओकरा लागल कि एह ढिबरी में ढेर दिन जरे लायक तेल नइखे त दोसर मलिकान खोजे निकल पड़ल. ओकरा त कवनो तरह से एगो खास आदमी के रोके के बा.

तीन दिन बाद संक्रांति बा. एकरा के हमनी का खिचड़ी के पर्व कहीले जा. संक्रांति हर महीने होले. जब जब सूरज एक राशि से निकल के दोसरा राशि में जाले त ओह दिन के संक्रांति कहल जाला. बाकिर संजोग अइसन बनल कि मकर संक्रांति त संक्रांति हो गइल आ बाकी एगारह गो संक्रांति के हमनी का साधारण मान लिहनी. एकरा पीछे के बड़का कारण बा कि मकर संक्रांति जाड़ा पाला से निकल के गरमी का ओर बढ़े के शुरूआत होला. कष्ट से निकल के आराम के जिनिगी के उमेद जगावेला. ओह दिन केहू के याद ना रहे कि आवत बा भंयकर गरमीओ के दिन. मौसम बदली त हमेशा बढ़िए ना होखी कबो कबो खराबो होला. बाकिर मौसम बदललो जरूरी होला. ना बदले त सगरी खेती चउपट हो जाई. जिनिगी नीरस हो जाई. राजनीतिओ के इ संक्रांति काल आइल बा. गुनगुनाइल सबेरा के आस जागल बा. बाकिर आदमी भुला जाता कि फोकट में कुछ ना मिले. एह तरह से ना त ओह तरह से हर चीझ के भुगतान करही के होला. फोकट में कुछ मिले का लालच में आगे बढ़ब त उहे होखी जवन एगो साधु के चिरइयन के भइल रहे. सिखावल पढ़ावल सब याद रहुवे कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, लोभ में आ के फँसना मत. कहत दोहरावत रह गइली स चिरई बाकिर बहेलिया के डालल दाना चुगे का फेर में ओकरा जाल में फँसत चल गइली स.
इ साल देश ला बहुते खास होखे वाला बा. आगे गड़हो बा तनी सम्हारिए के चलब जा. जाई त सभे अपने राहे हम बस सावधान करावत बानी.

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By Editor

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