बकवास, भाषण, संबोधन, आ प्रवचन (बतकुच्चन – १२४)

by | Sep 9, 2013 | 0 comments


बकवास, भाषण, संबोधन, आ प्रवचन चारो एकही काम के अलग अलग जाति ह. चारो में बहुत हद तक समानता मिल सकेला भा जवन एक आदमी ला बकवास होखी उ दोसरा ला प्रवचन हो सकेला. चारो में एक आदमी बोलेला आ बाकी लोग सुनेला. सुने वालन के काम हँ में हँ मिलावल भा बीच बीच में जयकारा लगावल भा थपड़ी बजावे ले सीमित रहेला. बकवास कवनो संधि के नमूना ना ह बाकिर तूड़ दीं लागी कि बक आ बास के मिला के बनल होखी. जवन में बकबक भा बेकार के बास आवे भा वास होखे ओकरा के बकवास कहल जाला. एकर नमूना आए दिन टीवी चैनलन पर होखे वाला पैनल डिस्कशन में देखे के खूब मिलेला. एकरा बाद आवेला भाषण. भाषण शब्द हालां कि भाष्य से जनमल होखी जवना में कवनो बात के बढ़िया से समुझावल जाला. जइसे कि गीता के बहुते भाष्य मिलेला आ हर भाष्यकार अपना अपना हिसाब से ओकर भाष्य कइले बाड़ें. केहू ला गीता शांति के संदेश ह त केहू ला युद्ध के उद्घोष. जाकि रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखिन तिन तैसी वाला हाल होला. अब आज के नेता लोग के भाषण में कवनो भाष्य खोजे चलब त निराशे हाथ लागी. भाषण से एक तोड़ि उपर होला संबोधन. संबोधन के मतलब अइसन भाष्य जवन सामने वाला के कुछ बोध करावे, ज्ञान देव. कवनो खास मौका पर सगरी देश के सुनावे वाला भाषण दिहल जाला त ओकर नाम परंपरा से राष्ट्र के नाम संबोधन बतावल गइल बा. हर साल कम से कम दू बेर राष्ट्र के संबोधित करेलें राष्ट्रपति आ प्रधानमंत्री. अबकियो कुछ अइसने भइल बाकिर छियासठ साल में पहिला बेर कवनो राज्य के मुख्यमंत्री चुनौती दिहलसि आ प्रधानमंत्री के संबोधन के भाषण बता के राख दिहलसि. अतना फिंचाई आजु ले कवनो प्रधानमंत्री के भाषण के ना भइल होखी. अब कहे वाला कहत रहें कि ई एगो गलत परंपरा के शुरूआत हो गइल बाकिर अब त हो गइल. अब से हर बेर जे ही प्रधानमंत्री होखी ओकरा सम्हल के रहे होखी. ओकरा बोलले भर से काम ना चल पाई ओकरा कुछ ना कुछ कहे के पड़ी. काहे कि कहला का जगहा अगर बोल के काम चलावल चहींहें त कहासुनी भा बाताबाती होखल जरूरी हो जाई. अब रउरा कहब कि एह कहल आ बोलल में हम कवन फरक निकाले लगनी. दुनु त एकही ह. बाकिर हमार कहना ह कि अगर दुनु एके ह त दू गो शब्द काहे बनल. जरूर कुछ ना कुछ महीनी होखी. आटा मैदा सूजी सभ त गेंहुए से बनेला बाकिर आटा आटा होला आ मैदा मैदा. आ सूजी के त पूछबे मत करीं. एक बेर सूजी के हलुआ बनावे चलनी त अतना पिलुआ लउकल महीन महीन कि ओकरा बाद से सूजी के हलुआ देखते उबकाई आवे लागेला. खैर बात बहके नइखे देबे के. कहल आ बोलल में सबले बड़का फरक त इहे होला कि बोलल में जब कुछ कहे लायक बात आवेला त ओकरा के कहल कहल जाला ना त बोलले कहि के काम चलावल जा सकेला. अकसर लोग बोलिए के काम चला लेला काहे कि कहे लायक कुछ रहे ना. कहानी में कुछ कहे लायक होला कुछ ना कुछ कहल होला. एही से संत गुरू बड़कन के कहल मानल जाला केहू के बोलल सुनले भर से काम चल जाला. बोलल के माने के जरूरत ना होखे जबकि कहल माने पड़ेला. अब ई रउरा सोचीं कि हम कुछ कहले बानी कि बस बोल के रह गइनी. अब एह बात पर बतकही फेर कबो क लिहल जाई आजु चले दीं. परनाम!.

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