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आजु बतकुच्चन लिखे बइठल बानी त खबर में बाँट-बखरा के चरचा गरम बा आ हम सोचत बानी कि बाँट-बखरा कि बाट-बखरा. बखरा के चरचा का पहिले बाट आ बाँट के चरचा क लिहल जरूरी लागत बा. बखरा कई तरह से हो सकेला आ बाँट के आ बाट से तउल के ओही में से दू गो बा. बोटी काट के बोटी-बखरा त कपड़ा फाड़ के फाड़-बखरा.

बाकिर होखे के त ई चाहीं कि बखरा का बावजूद जवना चीझु के बखरा कइल जात होखे उ बात भा चीझु सही सलामत रहि जाव. हर खेत जायदाद में बखरा लागत गइल आ जमीन के टुकड़ा प टुकड़ा होखत गइल. घर में दीवाल खिंचात गइली सँ आजु देखब त कई गो चरतल्ला पँचतल्ला मकान मिल जाई जवना के रूख बमुश्किल चार से पाँच फीट का बीच होखी. बाकिर केहू समझदारी देखावे के तइयार ना होला कि घर के घर लायक रहे दिहल जाव, खेत के जोते लायक आ पार्टी के जीते लायक.

बखरा हिस्सा के कहल जाला आ बखरी छोट झोपड़ी-पलानी के. एही तरह एगो बखार होला बधार से मिलत जुलत. बधार पर जानवर बन्हाले सँ आ बखार प अनाज भा खेती के उपज. अब बखोरल के संबंध केकरा से कहल जाव? बखोरल ना त बखार से, ना बखरा से, ना बखरी से, कवनो से जुड़ल ना रहल. ई त केहू के नोचल के कहल जाला. हालांकि सोचीं त बखोरल के संबंध बखार आ बखरा दुनू से निकालल जा सकेला. बखार में धइल उपज के हबर-हबर हपटल बखोरले जस होला. अपना ओर अधिका से अधिका बटोर लेबे का फेर में. आजु राजनीतिक गोलो एही बखोरे में लागल बाड़े. उनका एह कर कवनो भान नइखे कि उनुका बखरा में कतना आवे के चाहीं उ त बस बखोर लिहल चाहत बाड़न अधिका से अधिका. एह में बखारे बिला-बरबाद हो जाव एकर चिन्ता दुनू तरफ में से कवनो तरफ नइखे.

बखरा पर कइगो कहाउतो बाड़ी सँ. जइसे कि पोखरा में मछरी नव नव कुटी बखरा. भा, अनकर धन पाईं त सौ मन तउलाईं. जानत भा सभे के दीवार में से ईंटा खसकला भर के देर होला. एक ईंट खसकल कि दीवार जल्दिए भहराए का कगार पर आ जाला. पहिले के संयुक्त परिवार एही तरह खप-बिला गइली सँ. आजु परिवार टूटत-टूटत मरदे-मेहरारू ले सिमट के रहि गइल बा आ ओहिजो चैन नइखे. रोजे किचकिच लागल रहेला आ केहू छोड़ावहू वाला ना रहि जाव. परिवार रहत रहे त दुखम-सुखम एक दोसरा से निबाह लिहल जात रहे. अब के केकरा से निबाही. सभका अपने चिन्ता बा कि हमरा एतना चाहीं आ हम ले के रहब. परिणाम चाहे जवन होखो. घर-परिवार-समाज-देश-राजनीतिक गोल सगरो इहे मारामारी लागल बा. हमरा ईहाँ अइबऽ त का का ले अइबऽ तोहरा ईहाँ आएब त का का खियइबऽ? आ एगो अउर लठमार कहाउतो याद आवत बा कि पूछ कि गठरिया तोर कि मोर? अगर कहलसि कि गठरिया तोर त ठीक आ कहलसि कि गठरिया मोर त पहिले कपरवा फोड़ फेर गठरिया छोड़.

से एह बाँट-बखरा के का कहल जाव – कुकुरबझाँव कि कपरफोड़उवल? जबाब रउरे बताई, हम त आपन कपार बचावत चल दिहनी.

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By Editor

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