बबुअवा से त बबुनिए नीमन (बतकुच्चन – १२८)


बबुअवा से त बबुनिए नीमन रहीत. बाकिर का कइल जाव, उ आन घर के हो गइल आ दमदा नाम कमा लिहले बा. एहसे अब बबुनिया के आगे करे में डर लागत बा. बाकिर एह मुद्दा पर आगे कुछ कहि के फसल ना चाहब आ लवटब पिछला दिन का बाढ़ का तरफ. आए दिन खबर मिलत रहे कि एहिजा हई धस गइल ओहिजा हउ भस गइल. हिन्दी के ध्वस्त आ विध्वंस जइसने संबंध धसला आ भसला में बा. कवनो चीज भा निर्माण अपने से ध्वस्त हो सकेला आ ओकरा के ध्वस्त कइलो जा सकेला. त जब ओकरा के ध्वस्त कइल जाव त ओही के विध्वंस कहल जाला. विध्वंसे से मिलत जुलत होला संहार. बाकिर विध्वंस निर्जीव के कइल जाला इ संहार सजीव के. हालांकि नीरज के एगो कविता के एक लाइन में सृजन के संहार के बात कहल गइल बा, संहार ही हो जब सृजन के नाम पर तब सृजन का संहार ही भवितव्य है. एहिजा सिरजल चीझु का साथे संहार के जोड़ल गइल बा आ सिरजल निर्जीवे के जा सकेला. सजीव के सृजन हमनी के वश मे नइखे, संहार भलहीं कर लीं. चलीं फेर लवटल जाव धसल आ भसल पर. आ एकरे से साफ हो जाई धसावल आ भसावल के अंतर. धसावल में धँसल शामिल होले. जब कवनो चीज समतल से नीचे चल जाव त कहल जाला कि धस गइल आ जब एकरा के कइल जाव त धसावल जाला धसावे के काम होला. भसल आ भसावल में कवनो चीझु टूट के बिखर के गिर जाला भा ओकरा के तूड़ के बिखरा दिहल जाला. एह हालत में ऊ गिर त जाला बाकिर धसे ना जमीन का उपरे समतल से उपरे रहि जाला.

अब पिछला दिने मुजफ्फरनगर में भइल तवन संहार त रहबे कइल बहुत कुछ के भसाइओ दिहलसि ई दंगा. कहे वाला कहत बाड़ें कि दू गो गोल मिल के ई काम कइलसि आ एही बहाने आपन गोटी लाल कर लिहलसि. बाकिर देखे में मिलत बा कि एह दंगा के हाल उहे हो गइल जवन कबो पुअरा के गाँज में आग लगवला से हो जाला. एक बेर ढंग से लहक उठल त फेर ओकरा के बुतावल मुश्किल हो जाला. धसावे में त रउरा एह बात के निर्णय कर सकीले कि कतना धसावे के बा बाकिर भसावे में राउर नियन्त्रण ना रहि जाव. काहे कि जब कवनो चीझु भसल शुरू करेला त ओह प्रक्रिया में बहुत कुछ अबुझो शामिल हो जाला जवना के पहिले से अनुमान ना लगावल जा सकत रहे. चहनी त कि आग ओतने लगाईं कि ओकरा आँच से घबरा के लोग हमरा छाँहे आ जाव बाकिर लहोक अइसन उठ गइल कि ऊ हमरा से बिदक के फरका जाए ला तइयार हो गइल बा. अब उ घबरा के दोसर ठाँव खोजे में लाग गइल बा आ लागत बा कि हमार वोट बैंक अब धसे भा ना भस जरूर जाई.

राजनीति का मैदान में एह घरी एही धसवला आ भसवला के दौर चल रहल बा. बात मामर हेठ करे से उपर उठ गइल बा. दू गो बड़का गोल एक दोसरा के धसावे भसावे में लाग गइल बाड़ें. गनीमत बस अतने बा कि केहू केहू के हिंदमहासागर में फेंके के बात नइखे करत. एगो गोल आपन नेता चुन के बता दिहले बा दोसरका गोल चुन त लिहले बा बाकिर बतावल नइखे चाहत. काहे कि तब जीत के वाहवाही का साथे हार के जिम्मो उठावे के पड़ी आ केहू नइखे चाहत कि बबुआ के कान्ह पर हार के बोझा पड़े के अनेसो बन सके. बाकिर हमरा त इहे लागत कि बबुआ से बबुनिए ठीक रहीत. बाकिर जमाना के दोस बा कि महतारी अपना बेटा के त आपन मानेले आ बेटी के बिरान.

उपर चढ़ के देखा त घर घर एके लेखा!
(२२ सितंबर २०१३)

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One thought on “बबुअवा से त बबुनिए नीमन (बतकुच्चन – १२८)”
  1. नीमन त नीमने होला
    बाकिर बेडी काटल बड़ी मुस्किल होला .

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