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भाखा आ भाखल (बतकुच्चन – १३१)

by | Oct 16, 2013 | 0 comments


भाषा के केहू भासा बोलेला त केहू भाखा. ष के उच्चारण आम बोलचाल में ख हो जाला. लिखे में भोजपुरी मे त भासा के इस्तेमाल खूबे होला. खैर आजु हम भासा का फेर में नइखीं. हम त आज भाखा आ कुभाखा का फेर में बानी. ई भाखा भाषा वाली भाखा ना होके कहला के मतलब होला. हमार भाखा बहुते खराब हो जाव त ओकरा के कुभाखा कहल जाई. बढ़िया बात भाखा आ खराब बात कुभाखा. अब एक खराब के मतलब भाखा के गलत होखल ना हो के कहला के गलत होला. बेजाँय बतियावल कुभाखा होले गलत बात कुभाखा ना होखे. एही भाखा से बनल शब्द भाखल. भाखल के मतलब होला भविष्य के बात बतावल. हालां कि भविष्य के बात बतावत मे बढ़ियो बात हो सकेला आ खराबो बात. अगर भविष्य देखत बानी बतावत बानी त जवन सामने आई उहे बतावे के बा. बाकिर कुभाखा से बनल कुभाखल के मतलब सराप, श्राप, दिहल होला.केहू का बारे में नुकसानदेह बात के उम्मीद कइल कुभाखल होला. अब जब चुनाव के सीजन चलत बा त परब त्योहारो का सीजन पर भारी पड़त बा. आम आदमी ला त अबही परब के सीजन चलत बा बाकिर नेतवन ला चुनाव के सीजन बा आ मीडिया ला मौका बा भाखे आ कुभाखे के. कबो ओपिनियन पोल का नाँव पर त कबो एक्जिट पोल का नाम पर. तरह तरह से चुनाव परिणामन के आकलन करके बतावत रहेले मीडिया. अब जब ले उ ईमानदारी से भविष्य के अनुमान लगावे त ओकरा के भाखले कहल जाई. बाकिर अगर मीडिया अपना पूर्वाग्रह का चलते केहू का बारे में गलत बेबुनियाद भाखे त ओकरा के कुभाखल कहल जाई आ एहसे नुकसान सभके होला. सबसे बेसी ओह मीडिया के जे कुभाखत होखे. आ जब जेल में बंद कवनो आदमी का बारे में रात दिन कुभाखा के इस्तेमाल होखत होखे त देखे वाला अगर विकृत मानसिकता वाला ना होखी त चैनल बदलल छोड़ ओकरा लगे दोसर कवनो राह ना बाची. अदालत से फैसला आवे से पहिलही केहू के जनमानस में फाँसी पर लटका दीहल बढ़िया ना कहल जा सके. मानत बानी सभकर आपन आपन रोटी सेंके के बा. हो सकेला कि केहू का लगे आपन पुरान हिसाब किताव फरियावे के मौका आ गइल होखे. अखबार पत्रिका का जमाना में एकरा ला पीत पत्रकारिता शब्द के इस्तेमाल होखत रहे टीवी का जमाना में ई धंधा बन गइल बा. एह धंधा में मीडिया के चेहरा तब झलके लागेला जब साफ नजर आवे ला कि वो कत्ल भी करते हैं तो चरचा नहीं होती, हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम. केहू के बड़हन बड़हन घोटाला के चुप लगा के घोंट जाले मीडिया आ केहू के हर छोट बड़ बात के दिनो हफ्तो फेंटत रहेले. अब एहसे नुकसान केकर होखत बा से त जानही समुझे के पड़ी. आम आदमी के नुकसान सबले बेसी बा काहे कि ऊ “रीड बिट्वीन द लाईन” कइल ना जाने. उ त ओकरे के सही मान लेला जवन उ पढ़त सुनत बा. ओकरा ला भाखा आ कुभाखा के अंतर समुझल, भाखल आ कुभाखल में अंतर कइल सहज ना होखे. लेकिन जहिया ऊ जान ली कि फलाँ कुभाखे वाला आदमी हउवन तहिया उनका से दूरी बना ली. आ शायद इहे कारण बा कि अधिकतर चैनल जनता के भरोसा गँवा दीहले बाड़न. आसमान पर पत्थर मारे वाला के हमेशा एह बात के धेयान राखे के चाहीं कि जब ऊ गिरे त ओकरे कपार पर मत आ गिरे.

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