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ओह दिन जब राष्ट्रपति महोदय देश के नयका प्रधानमंत्री के शपथ दिआवत रहलन त पूरा देश देखत रहे. केहु खुशी से त केहु निराशा से. कुछ लोग के त आतना कष्ट रहल कि उ लोग समारोह का ओर झाँकहु ना गइल. खैर. जे गइल ओकर मर्जी, जे ना गइल ओकर मर्जी. हम त दोसर बात ला एकर जिकिर उठवले बानी. सोचत बानी कि शपथ शब्द के शुरुआत कइसे भइल. शपथ के माने का होला? शपथ ला भोजपुरी में कवना शब्द के इस्तेमाल सही रही? चलीं आजु के बतकुच्चन एकरे प क लिआव.

शपथ, कसम, किरिया, सौगन्ध. चारो के मतलब कुछ कुछ एके होला. बाकिर का चारो के समानार्थी शब्द कहल ठीक रही. हमरा हिसाब से त ना. काहे कि चारो के मतलब कुछ कुछ एके होखला का बावजूद चारो में कुछ ना कुछ फरको बा. पता ना सही कि गलत बाकिर शपथ के मतलब हमरा त इहे बुझाता कि सत् पथ प चले के वचन. जब केहु के शपथ धरावल जाला त ओकरा से उमेद रहेला कि उ सही राह प चली, सत् पथ पर चली. एही बात के वचन लेबे खातिर ओह आदमी के शपथ दिआला भा उ शपथ लेला. शपथ सकारात्मक होला सही काम ला होला. शपथ में मनमर्जी ना होखे. शपथ लेत घरी दोसरा के दबाव रहेला, उ दबाव लोकतंत्र में जनमत के होला. सौगन्ध लेत में ई बाध्यता ना होखे. सौगन्ध आदमी अपना मन से लेला. हालांकि इहो सकारत्मके होला नकारात्मक ना.

अब चलीं कसम आ किरिया प. किरिया के क्रिया कर्म करे से पहिले कसम से निपट लीहल जरुरी लागत बा. कहल जा सकेला कि कसम शब्द शपथ भा सौगन्ध के उर्दू ह बाकिर ई बात सोरह आना साँच ना हो सके. कसम में नकारात्मक पुट बुझाला. जइसे कि शपथ माने सत् पथ प चले के वचन का जगहा कसम माने गलत राह प ना चलब, कहल. अरबी फारसी के जानकारी रहीत त कसम शब्दो के चीर फाड़ करतीं बाकिर जानकारी ना रहला का चलते एतने पर रुकत बानी जतना आम बोलचाल में कसम शब्द के मतलब बुझाला.

आखिर में लवटल जाव किरिया प. किरिया शब्द पहिला नजर में संस्कृत के क्रिया के बिगड़ल रुप बुझाला बाकिर किरिया के इस्तेमाल अगर व्याकरण का संदर्भ में क्रिया का जगहा कइल जाव त अनर्थ होखे के अनेसा बनल रही. ओहिजा किरिया शब्द के इस्तेमाल सहज ना रही. आम बोलचाल में किरिया के दू गो मतलब लीहल जाला. एक त कसम भा सौगन्ध वाला किरिया के आ दोसर क्रिया-कर्म भा श्राद्ध कर्म वाला किरिया से. श्राद्ध भा सराध वाला किरिया कइल करावल जाला जबकि कसम वाला किरिया खाइल खिआवल जाले. एह किरिया के कबो धइल त ना जाव बाकिर कई बेर धरावल जरूर जाला. आवऽ तहार आजु किरिया क देत बानी. तोहरा के किरिया धरावत बानी. आ हम किरिया खात बानी. आदमी के कबो किरिया धरत नइखी सुनले, धरावत जरूर सुने के मिलत रहेला. किरिया दिहलो लीहल ना जाव, खाइल खिआवल जाले.

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By Editor

One thought on “शपथ, कसम, किरिया, आ सौगन्ध (बतकुच्चन 158)”

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