गंगा, तिरंगा, नवरंगा, बहुरंगा, एकरंगा, लफंगा, भिखमंगा, लंगा, आ दंगा.

तिरंगा आ बहुरंगा आबादी वाला अपना देश में गंगा के महत्व बहुते बा. बाकिर गंगा के खासियते में एगो अइसन गुन लुकाइल बा जवना के केहू बढ़ियो कह सकेला त केहू खराबो. जइसे कि गंगा अपना में सगरी कुछ बहा समा ले जाली आ ओकरा बावजूद उनुका पवित्रता में, उनुका सम्मान में कवनो कमी ना आवे. गंगा के एही खासियत के कुछ लोग नाजायजो फायदा उठावेला आ आपन सगरी कचरा उनुके में बहवा देला अपने पवित्तर बनल रहे खातिर. देश के राजनीतिओ अइसने गंगा हो गइल बा जवना में सबकुछ समाइल जात बा आ राजनीति के भिखमंगा, लफंगा एह बहुरंगा नवरंगा देश के एकरंगा बनावे के कोशिश में लागल बाड़ें. एहिजा एकरंगा कवनो धार्मिक एका के नइखीं कहत, सभका के एके पाला में डाल लेबे के कोशिश के कहत बानी. काहे कि एकरंगा विशेषणो होला आ संज्ञा रूप में लाल कपड़ो के कहल जाला. हरियर, आसमानी, नीला, सफेद, करिया, भगवा के एकरंग होखला का बावजूद एकरंगा ना कहाव.

पिछला दू हफ्ता से अधिका ले देश के बड़का प्रदेश, गंगा के मैदान के देश उत्तर प्रदेश फिरकावाराना आग में जरत बा. आ एकर दोस बस राजनीति में आइल लफंगई, नंगई के दिहल जा सकेला जे अपना फायदा ला समाज के टुकड़ा टुकड़ा बाँट अपना बखरा में बड़हन टुकड़ा समेटे के कोशिश करे में लागल बा. दंगा से दंग हो जाए के चाहीं प्रशासन के बाकिर एहिजा वइसन कुछ नइखे लउकत. प्रशासन एह दंगा से दंग नइखे ओकरा सब कुछ के जानकारी पहिले से बा आ ऊ सब कुछ जानत समुझत आपन खेल खेले में लागल बा. बापे पूत परापत घोड़ा, बहुत नहीं त थोड़ा थोड़ा वाला अंदाज में बबुआ अपना बाबूजी के कान काटे में लागल बाड़ें.

कुछ दिन पहिले इहे प्रशासन आपन पराक्रम देखावत परिक्रमा रोक दिहलसि काहे कि ओकरा के रोकल सहज रहे आसान रहे. बाकिर दू गो नवहियन के घेर के मारे वाला अपराधियन के काबू करे में, ओकनी के गिरफ्तार करे में ओकर कवनो रुचि ना रहल. सोचलसि कि मामिला जइसे तइसे शांत हो जाई. बाकिर मामिला हाथ से बेहाथ हो गइल. राज्यपाल तक के लिखे के पड़ल कि सरकार आपन काम समय पर ना कइलसि आ छोट मोट मामिला बड़हन बन गइल. शरम के बात होखे के चाहीं कि एह दंगा के रोके में परिक्रमा रोके वाला पराक्रम कामे ना आ सकल आ सेना बोलावे पड़ल. पहिला बेर गाँवन के हालात काबू में करे ला सेना के गाँवन का बीच मार्च करे के पड़ल. संतोष बस अतने बा कि मामिला काबू में आ गइल बा आ अब हालात सामान्य होखे लागल बा. बाकिर अगर रीति नीति ना बदलल त कहिया ले ? वोट के एह लंगन, भिखमंगन, आ लफंगन के राह प ले आवल अतना आसान बा का? तसला में राखल दूध चुल्हा पर चढ़ल फफनाए का कगार पर बा. अबगे शांत लउकत बा अबहिए फफना उठी. शासन चलावल, बच्चा पालल आ दूध उबालल बिना खड़ा भइले ना हो पावे. नजर एने से ओने भइल कि मामिला बिगड़ल.

बा अतना धीरज?


(१५ सितंबर २०१३)

Loading

By Editor

One thought on “शासन चलावल, बच्चा पालल आ दूध उबालल बिना खड़ा भइले ना हो पावे ( बतकुच्चन – १२७)”

Comments are closed.

%d bloggers like this: