– अभयकृष्ण त्रिपाठी

आजादी त मिलल, पर केकरा के, ई सवाल बा.
कइसे कहीं दिल के दरदिया, कहला में बवाल बा.

हर केहू देखा रहल बा, सबके आपन-आपन खेला,
अपना मतलब के लगा रहल बा आजादी के मेला,
का नेता का परेता आ का गुरु अउरी का चेला.
आजादी के मतलब लूट बा, चिल्ला रहल बा हर बेला,
जे जेतने बाद लुटेरा ऊ ओतने खुशहाल बा.
आजादी ता मिलल पर…

लूट के आजादी में बड़का लूटत बा लाख दस लाख,
पइसा लूटे खातिर छोटका कइले बा सिक्का के राख,
केहू छिपकली गोजर खिया के बनावत बा आपन साख,
कायनात लूटला के बादो देखा रहल बा सबके आँख,
रोशनी देखावल भइल दूभर इंहवा आन्हर माहौल बा,
आजादी ता मिलल पर…

मार के दरद में डूबल इन्सान लेहले दूसरा के जान बा,
अपना करनी के न्याय बतवले में ही ओकर अभिमान बा,
ले दे के सिरफ हमहीं बानी बतावे में डूबल इन्सान बा,
करनी देख जानवर भी लजाये पर कहलात भगवान बा,
आजादी ता मिलल पर…

आजादी ता मिलल पर केकरा के ई सवाल बा.
कइसे कहीं दिल के दरदिया कहला में बवाल बा.

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One thought on “आजादी त मिलल, पर केकरा के”
  1. आजादी में बर्बादी के चित्रण काफी अच्छा लागल .
    गुरु -चेला के खेला ,चिल्लाहट के बेला अलबेला लागल .
    ‘त्रिपाठी’जी बहुत -बहुत धन्यवाद !
    गीतकार
    ओ.पी .अमृतांशु

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