– हीरालाल ‘हीरा’
सुर साधीं तऽ लय बिगड़े, बे-ताल के बनल तराना बा।
जिनिगी गावल बहुत कठिन बा, उलझल ताना-बाना बा।।
केतना अब परमान जुटाईं,अपना त्याग, समरपन के,
अरथहीन अब लागत बा सब, चूकत कूल्हि निसाना बा।।
तिल के ताड़ बनावल-गावल, राजनीति के फितरत बाऽ
राह देखावे अन्हरा अब तऽ, बिगड़ल नया जमाना बा ।।
कठिन भइल अदिमी पहिचानल, अइसन दौर चलल बाटेऽ
सज्जन दुर्जन चिन्हलो में अब, नजर के धोखा खाना बा।।
पइया-पातर उचिलावे में सूप बिचारा लागल बा
चलनी छेद बहत्तर वाली, बइठल मारति ताना बा ।।
जेतने अधिका मिलल बा जेके, ओतने ऊ मुँह बवले बा
पीड़ित बनि के झुठहीं सब पर आपन धाक जमाना बा।।
अब तऽ इहाँ बजार-हाट बा, सपना बेचे वालन के
भरमे वालन के अब आपन, पूँजी सजी गँवाना बा।।
कतनो उड़ी उड़ान चिरइया, औकाते भर उड़ि पाई
परल जो आफत-बिपत त ओके मुश्किल मिलल ठिकाना बा।।
लोभी-मुरुख न चेती, चाहे कतनों ज्ञान पिआ दीहीं
अदबदाइ के उहवें जाई, जहाँ जाल तर दाना बा ।।
(भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के दिसम्बर 2022 अंक से साभार)