– डा0 अशोक द्विवेदी
कुछ नया कुछ पुरान घाव रही
तहरा खातिर नया चुनाव रही ।
रेवड़ी चीन्हि के , बँटात रही
आँख में जबले भेद-भाव रही ।
अन्न- धन से भरी कहीं कोठिला
छोट मनई बदे अभाव रही ।
भाव हर चीज के रही बेभाव
जबले हमनी के ई सुभाव रही ।
एक दिन शहर, भाग के आई
आसरा देबे वाला गाँव रही ।