– ओ.पी. अमृतांशु
भादो के अन्हरिया रात, हमरो जिनिगिया,
दिन पे दिने दिने होता देहिया हरदिया
दिन पे दिने दिने ना.
कहिलें कुशलवा में, बारहो वियोगवा,
दुई टुक होई गईलें, घर के हंडीयवा,
नेह-छोह बाँट गईल, ननदी सवतिया,
दिन पे दिने दिने होता देहिया हरदिया
दिन पे दिने दिने ना.
टुटही पलानी मिलल , कूकुरा हेलानी,
लागि जाला डाभा जब पड़े लागे पानी,
कंहवा डसाई सेज, कइसे जोरीं चुल्हिया,
दिन पे दिने दिने होता देहिया हरदिया
दिन पे दिने दिने ना.
चित्रा बरसि गइल, पपीहा गरभाइल,
हमरो गरभवा के दिन नजीकाइल,
छट-पट करे जिया, उठे ला दरदिया,
दिन पे दिने दिने होता देहिया हरदिया
दिन पे दिने दिने ना.
जल्दी से आवऽ ,ना त रोपेया पेठावऽ ,
अपना सजनिया के, गरवा लगावऽ , ,
ना त बस भेंज द तू, तनी सा महुरिया,
दिन पे दिने दिने होता देहिया हरदिया
दिन पे दिने दिने ना.
भादो के अन्हरिया रात, हमरो जिनिगिया,
दिन पे दिने दिने होता देहिया हरदिया
दिन पे दिने दिने ना.
bhado ke aanhariya rat kariya kuch kuch…..
sunder bimb
sadhvad
santosh patel
ratriya prachar mantri: akhil bhartiya bhojpuri sahitya sammalen,patna
लोक जीवन के चित्रण लययुक्त लागल .
आशा बा ई लय हमेशा बनल रही .
धन्यवाद , अमृतांशु जी
निधि कैरोस
वाह !ओ .पी .जी .
दुखिया के दुखियारी जीवन भाव पूर्ण लागल .
रंजित कैरोस
bahute niman laagal
बङा निमन लागल राऊर इ गित ,लिखत रहीँ ,संक्षिप्त ,सटीक और बेबाक