– (स्व॰) मोती बी॰ए॰
मों तो मोती बावरा यद्यपि हों जलजात
सीपी में सागर तिरे, सीप न सिन्धु समात.
स्वाति बून पाके मगन, गहिरे गहिरे पइठ
मोती ले के गोद में, गइल अतल में बइठ.
गोताखोर सराहिये साहस विकट कराल
पइठ सिंधु के पेट से मोती लियो निकाल.
नीमन बात कहा गइल, ओही के दोहराउ
रे कउआ नीमन बदे, खेत खेत मत जाउ.
कागभुसुण्डी नाँव पर कउवा नाहिं पुजाय
कड़े कड़े ढेलवाँसि से सदा भगावल जाय.
घूमत फिरे सरेह में चरत दुधारु गाइ
बछरू हो भा साँप हो, देले दूध पियाइ.
जानेलऽ कब के तरे देश भइल आजाद
सत्य अहिंसा प्रेम जब होइ गइल बरबाद.
दूध दूध का बके रे, दूध गइल परदेस
बिन डालर कइसे चली अतना भारी देस.
पानी दूध मेराई के रोगिन देहु पियाय
लड़िका साढ़ी के हठे अँगुरी देहु चटाय.
गान्ही जी अइले इहाँ, अपने भारत देस
जहवाँ मूअल जियल ह, तहवाँ कवन कलेस.
गली गली घूमें जहाँ लम्पट कामी चोर
तमसो माँ ज्योतिर्गमय चोकरत फिरे अँजोर.
भाखा सतमेरवन भलो भाव विचार विहीन
दोहा पानी दे कहे, जल के बाहर मीन.
बाउर सब आसक्ति ह, नीमन हउवे शक्ति
बाउर संगति छोड़ि के करीं शक्ति के भक्ति.
(पाती के विशेषांक से कविता आ चौरीचौरा डॉट कॉम का सौजन्य से फोटो)
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मोती जी जइसन महान साहित्कार के रचना पढ़े के मिलल .
हिया के हियाव में हलचल बा उठल
बहुत -बहुत धन्यबाद ओ .पी जी
गीत कार
ओ.पी .अमृतांशु
BAHUT BADHIA KHUBSURAT