– डॉ. गोरख मस्ताना

सहर भइल सुरसा निगल रहल गाँव के
चिमनी चबाये लागल निमिया के छाँव के

नगर नगर नेहिया के दियरी टेमाइल
नफ़रत के रोग गाँव गाँव में समाइल
गाँवो में भईयारी बाँच गइल नाँव के
सहर भइल सुरसा निगल रहल गाँव के.

गँऊआ के लोग रहे गंगा के धोअल
ना जानी विख उनका मनवा के बोअल
हिया- हिया मारत बा ताना तनाव के
सहर भइल सुरसा निगल रहल गाँव के.

सतुये पर दम, संतोस जहवा भारी
उहवाँ सहरिया चलावेला आरी
रंग- ढंग बदलल बा गवई पेन्हाव के
सहर भइल सुरसा निगल रहल गाँव के.

दउरी देहातो के मुहवा झुराइल
हरिहर धरतिया के लाली हेराइल
लोग बाग काट रहल अपना ही पांव के
सहर भइल सुरसा निगल रहल गाँव के.


(साभार : डॉ.गोरख प्रसाद मस्तान के काव्य संग्रह ” जिनिगी पहाड़ हो गइल” से)

 322 total views,  3 views today

One thought on “सहर भइल सुरसा”
  1. हरिहर धरतिया के लाली हेराइल
    सरसों के फुलवा के रंगवा फिकाइल
    थथम गइल धारा, गंगा बहाव के
    सहर भइल सुरसा निगल रहल गाँव के.
    गोरख मस्ताना राउर रचना पढीला बड़ी चाव से .

    ओ.पी . अमृतांशु
    09013660995

Comments are closed.

%d bloggers like this: