– ओ.पी. अमृतांशु

पर घर के आसरा कइली मतारी, आइल पतोहिया भारी रे.
रोएली लोरवा ढारी मतारी, रोएली लोरवा ढारी रे.

नव महीना दरदिया सहली ,बबुआ के जनमवली 
देवता-पितर पूजली, शीतला माई के गोद भरवली
नजर-गुजर ना लागो, केतना मरीचा दिहली जारी रे,
रोएली लोरवा ढारी मतारी, रोएली लोरवा ढारी रे.

छ्छ्ने छुधवा माई के, पतोहिया अफरे खाई के,
दुधे-मलाई में डूबल बा, नकिया  अनका-जाई के.
टुकुर -टुकुर ताकेला अँखिया, कइसन बा लचारी रे
रोएली लोरवा ढारी मतारी, रोएली लोरवा ढारी रे.

रोपनी-सोहनी कइली, बबुआ के खूब पढ़वली,
ममता के गोदिया में, एगो सुन्दर फूल खिलवली.
मुरुझाइल फुलवरिया, फुलवा लोढ़लस बे-विचारी रे.
रोएली लोरवा ढारी मतारी, रोएली लोरवा ढारी रे.

कलपत जियरा, हहरत हियरा, डहकत छने-छने रोंवा
छछनत हाय  परनवा बाटे, कइली कवन कसूरवा.
हाय रे रामजी,  हद के लीला तहरो बाटे न्यारी रे.  
रोएली लोरवा ढारी मतारी, रोएली लोरवा ढारी रे.

Loading

11 thoughts on “आइल पतोहिया भारी रे”
  1. समाजिक दृष्टि से आपकी गीत ‘ आइल पतोहिया भारी रे’ काफी प्रभाव पूर्ण है .माँ की ममता की दर्द का चित्रण अच्छा लगा . बहुत कम साहित्यकार होते है जो लिखने के साथ -साथ पेंटिंग्स भी करते हैं .आपने अपने पेंटिंग्स द्वारा अपने रचना का भाव साफ -साफ दिखा दिया .

    धन्यवाद .

Comments are closed.

%d bloggers like this: