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ई सब रोग गरीबी के

by | May 9, 2011 | 12 comments

– डॉ. कमल किशोर सिंह

उत्तर टोला बर तर,
बईठल चबुतर पर,
धनिया ढील हेरवावत रहे,
सुबुकत सब सुनावत रहे –
कतना दुःख सुनाईं बहिनी
ई ना कभी ओराला,
आ धमकेला दोसर झट से
जसहीं एगो जाला.

भादो में भोला के कसहूँ
गोडवा गइल छिलाय.
धान निकौनी करत रहलन ,
टेटनस गइल समाय.
जबड़ा जकड़ल, देहिया अकड़ल,
धर लिहलस फेर छाती,
पटना पहुंचे से ही पहिले,
बुतल उनुकर बाती.

पुनिया के पुतर कॉलेज से
कइलस  बी ए पास.
बहुत दिन से घरे बइठल
बबुआ भइल उदास.
खोजत रहे सगरो बाकी
कहूँ ना मिलल ओकरा नोकरी.
एक दिन चढ़  ऊपर गर्दन में
हाय! लगा लिहलस खुद फसरी.

छट्ठीये के दिन  झुनिया के
बचवा गइल जम्हूआय.
स्तन, बोतल, सितुही से दूध
सब लेलीं आज़माय.
झार-फूंक, दवा सब कइनी,
बत्तको दिहनी बइठाय,
डाक्टर कतनो कोशिश कइलें,
बचवा गइल बिलाय.

रोजी रोटी खातिर –
गोबर गइलें गौहाटी.
साले भर में बाबू हमार
सूख के भइलें काठी.
गहना-गुड़िया बेचनी सबकुछ,
बेचनी गईया बाछी.
केहू कहे रोग टी. बी. के,
केहू कहे एच. आई. भी. के,
हमरा त लागत बा बहिनी
ई सब रोग गरीबी के.

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12 Comments

  1. Shyam Narain Verma

    दिल छोडी अईनी घरवा , खुद रहेनी  परदेश !
    चिंता में डूबल मनवा , कौनो ना मिलल सन्देश !
    केतना दिन भईल  कौनो चिठ्ठी  ना आईल !
    सोची सोची के   बिरह    में   मन घबराईल !
    केकरा से जा के कहीं  अब  दिल के  कलेश !
    घरनी  त  घर में   बाड़ी    हम बानी बाहारा!
    का करिहन उ जब दिल में उठी लाहारा !
    ख़त लिखे  आवेना अब   के भेजी उपदेश !
    भसुर ससुर ही सब आस     पास बाडन ! 
    देवर    ननद केहू अबो  ना  पढ़े जालन !
    दिल के हाल के अब लिखी सोच उठे कलेश ! 
    बाबूजी से कहनी  मोबाइल      ना लियायील !
    गाँव में केहू के कौनो फोन ना खरीदायील !
    केकरा से कहाँ कहीं कौनो दिल के सन्देश !
    गाँव में अनेकों  ही    मंत्री आवेलन जालन !
    कवनों विकास के आधार ना   रखवावेलन !
    वर्मा दुनिया आगे गईल   पीछे  हमार देश !
    दिल छोडी अईनी घरवा , खुद रहेनी  परदेश !
    श्याम नारायण वर्मा 

  2. Shyam Narain Verma

    bahut sundar rachana

  3. OP_Singh

    प्रिय विनोद जी.

    आपके टिप्पणी के जबाब ना दिहला के कारण रहे कि हमरा लागल कि अबही रउरा मस्कट में बानी. जब बलिया आयब त बात होखी. हमरा लगे वास्तव में समय के बेहद कमी बा जवना चलते हम कवनो सामाजिक कार्यक्रमो में शामिल ना हो पाईं. अपना काम आ पेशा का बाद जवन समय निकलेला तवन एह अँजोरिया में लाग जाले. आशा बा कि रउरा भा दोसर हित मित लोग एह बाति के बुरा ना मानी.

    जब कबो बलिया आवे के होखो त हमरा के मेल कर देब. हम फोन से संपर्क कर लेब.

    राउर,
    ओम

  4. Vinod kumar

    Singh Sahab, namaskar,
    Typing english kewal janla key khatir hum english mey hi likhat bani,
    ye sey pahley bhi anjoria key madhayam sey aap tak pahunchey key prayas kailey rahni, lekin koino jawab na aiel.

    Umeed baa, aapkey samay na milela key karan, jawab na deley hokhab.

    Hum aap sey milel chahtani, aagar aapkey izazat hokhey ta…..

    Ballia mey hamar telephone no. 9648417306

    Appkey key anuj..
    Vinod Kumar
    Muscat International Airport, Oman

  5. Surendra Pandey

    Ati utam Kamal. Bahut he sunder or dil ke karib wala kavita ba. Yeshe he likhat chalee. Surendra,Newcastle,UK

  6. santosh patel

    bahut sundar rachana
    sadhuvad
    santosh

  7. Kamal Singh

    प्रिये प्रभाकर और ओमप्रकाश जी ,
    दिलचस्पी और प्रशंषा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद . एह से और लिखे के प्रोत्साहन मिळे ला . ओमप्रकाश जी का स्पष्टीकरण
    शत प्रतिशत सही बा .जम्हुआइल नवजात बच्चा पर बत्तक बैठावे के टोटोरम हम अपना गाँव में १९५७ के लगभग में देखनी .
    ‘जम्हुआइल’ शब्द रौया बतकूचन के अच्छा बिषय बन सके ला. हर शिशु सेप्सिस के जम्हुआइल कहे के चाहीं ,लेकिन शिशु टेटनस के ही
    कहे जम्हुआइल कहल जाला ई आश्चर्य के बात बा.
    प्रेमचंद के ‘गोदान’ के पत्रान के सहारा लेके बर्णित सब घटना हमार आँखों देखल गाँव के यादास्त पर आधारित बा. हमारा गावं में एगो बड़हन बरगद के पेंड़ बा, जहाँ ई बातचीत हॉट रहे . ओह बर के कारण नी शायद हमारा गावं के नाम पड़ गोइल -बरुहाँ .ओमप्रकाश भाई ! स्पेल्लिंग सुधारने , उचित संशोधन और परिचय देवे खातिर धन्यवाद.
    सादर
    कमल किशोर सिंह

  8. OP_Singh

    प्रिय प्रभाकर जी,

    गलत टाइपिंग का तरफ ध्यान दिलावे खातिर धन्यवाद.
    असल में समयाभाव से अइसनका कुछ गलती होइये जाला जवना के हम लाख चाहीले कि ना होखे.

    दोसर बात बतक बइठावे के त ओकरा खातिर गाँव देहात के टोना टोटका देखे के पड़ी.

    जम्हुआ छूअला के भा जम्हूआय के मतलब बा कि ओह लड़िका के टिटनेस हो गइल रहे. टिटनेस में मुँह के जबड़ा सबले पहिले प्रभावित होला आ बच्चा दूध ना पी पावे. पुरनका जमाना में जब चिकित्सा सुविधा हर जगहा मौजूद ना रहत रहे त लोग लड़िका का उपर बत्तक बइयावत रहे. लोग के अनुमान रहत रहे कि बत्तक के पाँख का छाँव में लड़िका ठीक हो जाई. कवि एहिजा ओही टोटका के जिक्र कइले बाड़न.

    एहिजा बता दिहल चाहत बानी कि डा॰ कमल किशोर अमेरिका में बाल रोग विशेषज्ञ हईं आ अपना भोजपुरी प्रेम में बीच बीच में कविता पठावत रहीलें. आशा बा कि डा॰ कमलो किशोर जी एह पर आपन टिप्पणी भेजब. तबले हमरे स्पष्टीकरण से काम चलाईं.

    सप्रेम आ धन्यवाद देत
    राउर
    संपादक, अँजोरिया

  9. प्रभाकर पाण्डेय

    सादर नमस्कार,

    एकदम नीचला लाइन में रोग की जगह रोब हो गइल बा।

    एकबात अउर, “बत्तको दिहनी बइठाय” के अरथ हमरा क्लियर नइखो होत..तनि क्लियर क देतीं त बहुत अच्छा रहित। कहीं एकर मतलब काई माई चाहें कवनो देवथान पर बत्तख चढ़ावल त ना ह न…चाहें कवनो ओझा के देहल? तनि स्पष्ट करीं…बहुते उत्सुकता बा इ जाने खातिर। सादर।।

  10. rajesh sharma

    bhojpuri me kuch bhi likhal athawa padhal athawa sunala ta hamara man bhoot khush ho jala, bhojpuri dunia ke mahan bhasha me se ak ba, hamara bhojpuri chetra ke morisash jaisan kai go desh me apna bhojpuria janda lahrawat bate ,jay ramji ke , dardar muni ke ashirbad hoi to phir milal jai

  11. amritanshuom

    बड़ी नीक आ भाव पूर्ण रचना के मालिक बनी रउआ .
    धन्यवाद !
    ओ.पी,अमृतांशु

  12. प्रभाकर पाण्डेय

    सादर नमस्कार, रउरी रचचन में जवन व्यंग्य छिपल रहेला ओकर सबसे बड़ खूबी जवन हमरा लागेला उ इ ह की आदमी हँसत-हँसत रोवे लागला.

    बस ए रचना की बारे में कुछ भी कहल हमरी बूता के बात नइखे….बस एगो लमहर साँस खींचि के छोड़ले की अलावा।
    सादर।।

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