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केने बाड़ी सीता (पहिला खण्ड)

by | Apr 11, 2010 | 0 comments

Heera Lal Heera

– हीरालाल हीरा

1)

हारि के वानर सिन्धु कछार
बिचारेले के अब प्रान बचाई?
फानि पयोनिधि के दस कन्धर
के नगरी, जियते चलि जाई?
राक्षस के पहरा दिन-राति
सिया के सुराग कहाँ लगि पाई?
जो न पता लगिहें त सखा
सुग्रीव से बोलऽ ना का जा कहाई?

2)

बुद्धि न केहू के काम करे,
सब सोच में डूबल बा उतराइल.
हाँकत जे दिन-राति रहे,
मुँह से उनका कुछऊ न कहाइल.
राम के काम में जानि रुकावट
वानर भालु सभे अउँजाइल.
ओही में केहू का मारुत-नन्दन
के बल-पौरुष के सुधि आइल.

3)

जो रहते तोहरा हनुमान जी
बन्धु तोहार ई मारल जइहें.
लोक में आ परलोकहु में
शिवपुत्र के कीर्ति जरूर नसइहें.
जो सिय के मिलि जाइ पता तब
रामजी हो खुश छाती लगइहें.
छोड़ि सिंहासन वानर राज
धधाइ के आ तोहसे लपिटइहें.

4)

रीछ प्रधान बुला हनुमान के
ठोकत पीठि सराहन लागे.
सासत में सभ बन्धु रही
जबले पग वीर बढ़इबऽ ना आगे.
बालपने फल जानि के भानु के
खाये बदे आसमान में भागे.
ना केहुए बलवान त्रिलोक में
बा बजरंगी से आइ जे लागे.

5)

भाइन के दुख देखि के अंजनि-
पुत्र उहाँ तुरते चलि अइले.
ना होई फाँसी ना केहू मरी
कहले. सुनते सबही अगरइले.
रूप विशाल धरे छनही लखि
के गिरिराज अचम्भित भइले.
राम के रूप बसा के हिया
तत्काल पहाड़ पे जा चढ़ि गइले.

6)

भार सहाइल ना हनुमंत के
मूधर डोलल त्रास समाइल.
पेड़ लता गिरि मस्तक से
मुँह के बल आ भूइयाँ भहराइल.
कोसन ले धरती हिलली,
भूईंडोल से शंकित लोग पराइल.
सागर ले जल हो भयभीत
पखारन पाँव लगे चलि आइल.

7)

सागर के जल खोह समाइल
जीव चराचर बाहर अइले.
आपस के सब बैर भुलाइ
शिकारी शिकार संगे बटुरइले.
राम के दुत के रूप विचित्र
निहारि निहारि सभे अगरइले.
सादर दे वरदान महामुनि
खोहन में दोसरा चलि गइले.

8)

क्रोध से भइले लाल शरीर आ
आँखिन से निकले चिनगारी.
भानु आकास में दुइ उगे
जनु ताप से सृष्टि जरावत सारी.
देखि प्रसन्न हो वानर, देव लो
गावल गीत बजावल ताली.
अंगद का बिसवास हो गइल
ना हनुमान जी खाली अइहें.

9)

दाबि पहाड़ कपीश उड़े
हिय में सियराम के नाम बसा के.
पाँव के दाब सहाइल ना गिरि
वन्दन कइले माथ नवा के.
बेग से अइसन चललि आन्ही कि
पेड़ लता चलले उड़िया के.
लागेला राहि धरावे बदे कुछ
दूर ले संगे संगे लरिया के.

10)

सिन्धू बुला कहले मैनाक से
राम के काज में हाथ बटावऽ.
लाँघल बा हमके न आसान
टिका पीठिया विश्राम करावऽ.
पैर छुआ कहले कपिनाथ कि
ना हमके इहाँ बिलमावऽ.
देइ अशीश खुशी मन से
गिरिनाथ हमें जल्दी से पठावऽ.

11)

देवन के विसवास ना भइल
जाँच करे सुरसा चलि अइली.
खाये बदे छल छद्म से आपन
सोरह जोजन के मुख कइली.
माई के माया विचारि के रुद्र
बढ़ा तन जोजन बत्तीस भइलीं.
पौरुष से बलबुद्धि विवेक से
तीनहु लोक में ख्याति कमइलीं.

12)

देखि के वानर के सुरसा
शत जोजन आनन के फइलाई.
मच्छड़ हो कपि जा मुँह में
पुनि बाहर आइ के शीश झुकाई.
बुद्धि सराहत चूमि के माथ
विदा कइली देइ नेह बड़ाई.
राम में ध्यान लगाइ कपीश्वर
जोर से फेरू छलांग लगाई.

13)

वास करे सिंहनी जल भीतर
आहट पाइ के बाहर आइलि.
खींचि ले ध परिछाहीं आकाश से
काम रहे ओह जीव के खाइल.
बान्हि हहास लगे अइले कपि
राक्षसि के तब चाल चिन्हाइल.
मारि के मूक मुआ दिहले
तन दोसर पाई के खूब अघाइलि.

14)

पौरुष देखि महा बलवान के
देव समास आकाश चिहाइल.
नाहक संशय पालल गइल
होइ कलंकित खूब लजाइल.
नाश निशाचर के नजदीक बा
काँहे कि वीर बलि उपराइल.
होइ प्रसन्न प्रसून चढ़ाइ
विचारि के भक्ति प्रबाव जुड़ाइल.

15)

जाइ समुन्दर पार रुके न
बढ़े चित राम-सिया में लगा के.
नीनि न चैन न, भूखि पियासि
मिले विश्राम त लक्ष पे जा के.
अंजनि-पुत्र के वेग बा पवन के
नाहिं थके, न रुके घबड़ा के.
भक्त के चैन कहाँ तबले
जबले न पता लगि जाय सिया के.

16)

जो न घमण्ड रहे मन में,
बल बुद्धि विवेक से काम में लागे
का करीहें सुरसा सिंहनी,
ओह वीर का राह में आइ के आगे.
दाव ना माया के लागि सकी,
जदि भाव समर्पण इष्ट में जागे.
इन्द्रियजीत के देखि के लागेले
विघ्न बलाई लुकाई के भागे.


(खण्ड काव्य “केने बाड़ी सीता” के एगो अंश)


हीरालाल हीरा
स्टेट बैंक, बलिया सिटी शाखा
बलिया
मोबाइल 09793151135

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