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गजल

by | Sep 2, 2013 | 1 comment

– मनोज भावुक

वक्त के ताप सहहीं के बाटे
बर्फ से भाप बनहीं के बाटे

पाप के केतनो तोपी या ढ़ाँपी
एक दिन ओकरा फरहीं के बाटे

जवना ‘घर’ में विभीषण जी बानी
ओह लंका के जरहीं के बाटे

चाँद-सूरज बने के जो मन बा
तब त गरहन के सहहीं के बाटे

चार गो नाव पर जे चढ़ल बा
डूब के ओकरा मरहीं के बाटे

अइसे मुस्का के कनखी से देखबू
तब त परिवार बढ़ही के बाटे

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1 Comment

  1. संतोश यादव्

    बेजोर…

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