गीत

by | Oct 14, 2011 | 3 comments

Dr.Ashok Dvivedi

– डा॰अशोक द्विवेदी

रतिया झरेले जलबुनिया
फजीरे बनि झालर, झरे
फेरु उतरले भुइयाँ किरिनिया
सरेहिया में मोती चरे !

सिहरेला तन, मन बिहरे
बेयरिया से पात हिले
रात सितिया नहाइल कलियन क,
रहि-रहि ओठ खुले
फेरू पंखुरिन अँटकल पनिया
चुवत खानी दिप्-दिप् बरे !

चह-चह चहकत/चिरइयन से
सगरो जवार जगे –
सुनि, अँगना से दुअरा ले तालन
मन के सितार बजे
अरु छउँकत बोले बछरूआ
मुंड़ेरवा पर कागा ररे !

सुति-उठि धवरेले नन्हकी
उघारे गोड़े दादी धरे
बुला एही रे नेहे हरसिंगरवा
दुअरवा पर रोजे झरे
बुची, चुनि-चुनि बीनेले फूल
आ हँसि-हँसि अँजुरी भरे !


अँजोरिया पर डा॰ अशोक द्विवेदी के दोसर रचना

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3 Comments

  1. amritanshuom

    बहुत बढ़िया लागल .

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