Ram Raksha Mishra Vimal

– रामरक्षा मिश्र विमल

1
शहर में घीव के दीया जराता रोज कुछ दिन से
सपन के धान आ गेहूँ बोआता जोग कुछ दिन से

जहाँ सूई ढुकल ना खूब हुमचल लोग बरिसन ले
ढुकावल जात बाटे फार ओहिजा रोज कुछ दिन से

छिहत्तर बेर जुठियवलसि बकरिया पोखरा के जल
गते से निकलि जाला बाघ हँसिके रोज कुछ दिन से

बिरह में रोज तिल-तिल के मरेली जानकी लंका
सुपनखा के भइल चानी हरियरी रोज कुछ दिन से

कइल बदले के जे गलती हवा के रुख बगइचा में
ठेठावल जात बा जाङर उठवना रोज कुछ दिन से

महीनन से भइल ना भोर इहँवा, हाय रे मौसम !
विमल का इंतजारे जी रहल बा लोग कुछ दिन से

2

बढ़नी से अलगावल गइलीं भरल जवानी बबुआ जी
कुक्कुर अस पुचकारल गइलीं इहे कहानी बबुआ जी

रतजग्गा होखे रउरा से करत निहोरा खाए के
अजुओ अंतर आइल ना ओसहीं मनमानी बबुआ जी

मजबूती आ बरोबरी के जतना केहू बात करे
अजुओ मेहरारू का नाँवे लिखल चुहानी बबुआ जी

ममता के धागा से हरदम जोरल आपन आदत बा
टूटेला परिवार त कारन हमही बानी बबुआ जी

हमरो मन होला पढ़ितीं लिखितीं जनितीं दुनिया का हऽ
बाकिर आँतर खोजल जाला सोना चानी बबुआ जी

छोटन खातिर प्यार अउर सम्मान बड़न के ओठन पर
नख शिख दरशन कइके लोग अघाले, मानीं बबुआ जी

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12 thoughts on “दू गो गजल”
  1. आदरणीय रामरक्षा मिश्र जी के दुनो रचना कथ्य के हिसाब से बेजोड़ बा, भोजपुरी शब्दन के प्रयोग निकहा सुघर भइल बा, बाकिर पहिलका रचना के ग़ज़ल के नाम दिहल ग़ज़ल के साथ मज़ाक होई, ग़ज़ल के मुख्य चीज काफिया, रदीफ़, बहर आदि होला, दुसरका ग़ज़ल काफिया, रदीफ़ के अस्तर पर नीमन बा, बाकी पहिलका के ग़ज़ल कहल मजाक के अलावा कुछु नईखे, काफिया त पूरा रचना में केनियों नईखे लौकत हां रदीफ़ सुरु के ५ गो शेर में ठीक लौकत बा बाकिर अंतिम शेर में आवत आवत उहो हेरा गइल बा,
    आखिर कबले लोग संकोचे ना बोली, एही तरे रही त लोग पढ़त पढ़त एही के ग़ज़ल बुझे लागी, पर तकनिकी रूप से इ ग़ज़ल नईखे, हम बेसिके चीजहन के ना देखनी एह से बहर पर माथा भी ना खपवनी ह |
    तनी तित बा, बाकिर भोजपुरी साहित्य के रक्षा करे खातिर इ जरुरी बा कि भोजपुरिया पाठक जागरूक होखस, आखिर कबले चना के नाम पर लेतरी के सतुआ खात रही ?
    कहन और भाव खातिर हम रचनाकार के बधाई देवल चाहब |

    गणेश जी “बागी”

  2. vimal bhaiyee
    pranam
    ji, raur vichar ke swagat ba. Ham abhi adarniya ravindra nath tagore ke 150 jayanti ke upar bhojpuri me unkar kritian ke anuvad bhojpuri jindagi me prakashit kare ja rahal ba. yani nayaki aank ravindranath tagore ke upar kendrit ba. unkar kahani, kavita, labhukatha aadi ke bhojpuri anuvad kar ke bhej sakila.okra bad wala aank geet – gazal ke sathe nikalab.
    pranam
    santosh

  3. धन्यवाद भाई.
    भोजपुरी में काफी स्तरीय काम हो रहल बा बाकिर प्रकाशक लोगन के कमी आ भोजपुरी में लिखे-पढ़े के संस्कृति ना बन पवला का कारन लउकत कम बा. उमेदि कइल जाउ कि ई स्थिति जल्दिए सुधरी.
    राउर आपने
    विमल

  4. डॉक्टर साहब,
    बहुत बहुत धन्यवाद.
    रउरा जइसन प्रतिक्रिया से साहित्य सृजन खातिर बहुत बल मिलेला. हम त भोजपुरी के एगो छोट सिपाही हईं. एक से बढ़िके एक साहित्यकार भोजपुरी का लगे बाड़े. भोजपुरी काब्य के स्तर लगातार ऊपर उठ रहल बा. ई बात संतोष का सङही खुशी के भी विषय बा.
    असहीं नेह-छोह बनवले रहीं.
    राउर आपने
    विमल

  5. dunu bhojpuri ke niman gazal badi san.
    sadhuvad
    santosh patel
    editor: bhojpuri zindagi.

  6. Geet aur ghazel ka bare me hamra knowledge bahut kam ba baki ham etna jarur kahabi ki vimal ji ke duno kavita bahut barhiya bari san.Bhojpuri me bhi etna niman kavita likhal ja rahal bari san-hamni khatir ee garv ke bat ba.ANJAN PRASAD

  7. बिमल जी ,
    दुनो ग़ज़ल बहुत असरदार और मज़ेदार बा.
    राउर शैली और शब्द चयन से हम बहुत प्रभावित बानी.
    पहिलका ग़ज़ल के कटाक्ष बहुत मैलिक और तीखा बा .
    दुसरका बहुत मार्मिक बाकी सही अभिब्यक्ति बा .
    भोजपुरी काब्य के स्तर असहीं ऊपर उठावत रहीं.
    सादर
    कमल किशोर सिंह , न्यू योर्क .

  8. विमल जी
    सादर प्रणाम| राउर दूनो गजल दिल में उतर गइली सँ|*छिहत्तर बेर जुठियवलसि बकरिया पोखरा के जल,गते से निकलि जाला बाघ हँसिके रोज कुछ दिन से* बहुत उम्दा शेर बा| अबतक के बाघ बकरी के कहानी के ई नया रूप बा| समाज में ई पहिलहीं से बा बाकी रउँआ एकरा के काव्य में उतरनी ,ऊहो धारदार ब्यंग का रूप में| पहिल बेरि आ एतना जोरदार ढंग से| जतना हम पढ़ले बानी ,हिंदी का सङही कवनो भारतीय भाषा में ई बिंब हमरा आज तक नइखे मिलल| लगभग तीन महीना बाद हम नेट पर बइठल बानी| कल ही पढ़ लेले रहीं| आज इची मोका मीलल हा|रउरा बिंबन में मौलिकता के दर्शन ढेर होला| *कइल बदले के जे गलती हवा के रुख बगइचा में,ठेठावल जात बा जाङर उठवना रोज कुछ दिन से* के समानांतर निदा फाजली के एगो शेर के हम अक्सर गुनगुनाईंले–*जिन चरागों को हवाओं का कोई खौफ नहीं ,उन चरागों को हवाओं से बचाया जाए|* दोसरी गजल में रउँआ नारी शक्ति के यथार्थ रखि देले बानी| कवना शेर के बड़ कहीं आ कवना के छोट ,समझ में नइखे आवत| हँ, *हमरो मन होला पढ़ितीं लिखितीं जनितीं दुनिया का हऽ,बाकिर आँतर खोजल जाला सोना चानी बबुआ जी* शेर आज के तथाकथित ईमानदार पुरुषन के पोल खोले खातिर बहुत बा| ए तरह के रचना का प्रकाशन खातिर अँजोरिया के संपादक महोदय के जतना भी धन्यवाद दीहल जाई,कमे होई|
    पथिक भोजपुरी

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