– रामरक्षा मिश्र विमल
फागुन के आसे
होखे लहलह बिरवाई.
डर ना लागी
बाबा के नवकी बकुली से
अङना दमकी
बबुनी के नन्हकी टिकुली से
कनिया पेन्हि बिअहुती
कउआ के उचराई.
फागुन के आसे
होखे लहलह बिरवाई.
फागुन के आसे
होखे लहलह बिरवाई.
बुढ़वो जोबन राग अलापी
ली अङड़ाई
चशमो के ऊपर
भउजी काजर लगवाई
बुनिया जइसन रसगर
हो जाई मरिचाई.
फागुन के आसे
होखे लहलह बिरवाई.
छउकी आम बने खातिर
अकुलात टिकोरा
दुलहिन मारी आँखि
बोलाई बलम इकोरा
जिनिगी नेह भरल नदिया में
रोज नहाई.
फागुन के आसे
होखे लहलह बिरवाई.