बसंत प दू गो कविता

by | Feb 27, 2017 | 1 comment

– डॉ राधेश्याम केसरी

1) आइल बसंत फगुआसल

सगरी टहनियां प लाली छोपाइल,
पछुआ पवनवा से अंखिया तोपाइल,
देहिया हवे अगरासल,
आइल बसन्त फगुआसल।

कोयल के बोल अब खोलेला पोल,
सैंया सेजरिया से हो जाला गोल,
मोर मर्दा हवे साधुआसल,
आइल बसंत फगुआसल।

झांकी ला हरदम खोल के केवाड़ी,
रतिया अंजोरिया बा बरछी कटारी,
जिउवा हवे भकुआसल,
आइल बसन्त फगुआसल।

पछुआ पवनवा हिला देला मनवा,
हमरो पड़ोसिन त फुंके ले कनवा,
बासी सनेहिया बा पाटल, आइल बसंत फगुआसल।

आवते फगुनवा पीटाये लागल ढोल,
ओढले ढकोसला,पहिनले बा चोल,
कूट,कूट देहिया बनावे रसातल,
आइल बसन्त फगुआसल।

चहकत चिरईन के कोरा उठावे,
पिंजरा में सुगिया के अंखिया लोरावे,
साँची सुरतिया बा पागल,
आइल बसन्त फगुआसल।


2) आइल बसंत

आइल बसंत, भकुआइल बसंत,
सतरंगी चुनर, सरमाइल बसंत।

रंगवा लगवले, चमेलिया क गाल,
हमके बतावे, टेंडु़राइल बसंत।

जेकरा के खोजे, पिया के पिरतिया।
अंखिया में ओकरा लुकाइल बसन्त।

अगिया लगा के , पलसवा जे भागल।
लोरिया के संगे, बूताईल बसंत।

भर-भर आँसुवन से, अंखिया लोराइल ।
मंठा अस जिनगी, मथाइल बसंत।

बोरे के बोरन, न खाये के निक बा।
आवते टिकोरा, पिटाइल बसंत।

पुवा भा पुड़ी,न कब्बो देखाइल,
सतुवा क संगे, घोराइल बसंत ।

आपन गरीबी हम, कइसे बताई?
बथुवा के संगे, खोटाइल बसंत ।

भरसक, फगुआ में दुरे रहिला।
रोटी में आपन, भुलाइल बसंत।

नेहिया, निगोड़ी करेजवा में बेथे।
रो रो के अब्बे, चुपाइल बसंत।


– डॉ राधेश्याम केसरी
ग्राम ,पोस्ट- देवरिया,
जनपद- ग़ाज़ीपुर, (उत्तरप्रदेश),
पिन – 232340

9415864534(व्हाट्सप)
rskesari1@gmail.com

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1 Comment

  1. amritanshuom

    राउर दुनो गीतिया आइल पसंद.

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(3)


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(7)
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