– ओ.पी. अमृतांशु

टपऽ- टपऽ चुअता पसेनवा
हायॅ राम भइल बा उखमवा !

चैन बा दलानी नाहीं
बाग-फुलवारी,
लेई लुकवारी धावे
पछुआ बेयारि,
उसिनाई गइल बा परानवा
हायॅ राम भइल बा उखमवा !

पोखरा – ईनरवा के
होठवा झूराई गइल,
खेतवा के नन्ही -नन्ही
डिभी झकोराई गइल ,
छछनी के पीहुके पपिहवा  
हायॅ राम भइल बा उखमवा !

गरमी जवानी थाम्हऽ
बरखा ये रानी आवऽ,
जरती भुभुरिया के 
हिकवा मिटानी आवऽ 
छम-छम बारिसऽ अँगनवा
हायॅ नाची मन के मयूरवा.
टपऽ- टपऽ चुअता पसेनवा.

हायॅ राम भइल बा उखमवा !

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8 thoughts on “भइल बा उखमवा”
  1. जीवन से जुडल गीत काफी प्रभावपूर्ण लागत बा .”उसिनाई गइल बा परानवा” में केतना दर्द झलकत बा .
    धन्यवाद !अमृतांशु जी

    किरण

  2. उसिनाई गइल बा परानवा
    हायॅ राम भइल बा उखमवा !

    वाह बहुत अच्छा रचना बा .मजा आ गइल.
    भोला प्रकाश

  3. “उसिनाई गइल बा परानवा
    हायॅ राम भइल बा उखमवा !”
    वाह! केतना दर्द बा राउर कविता में .

    पूनम

  4. तोहर गर्मी के पुकार भगवान सुन लिहले बाडन.एही से बारहा रानी के भेज दिहले बाडन .
    बहुत सुन्दर गीत बा .
    धन्यवाद !

  5. पोखरा – ईनरवा के
    होठवा झूराई गइल,
    खेतवा के नन्ही -नन्ही
    डिभी झकोराई गइल ,….

    भाई अमॉतांशु जी…ग्रामीण परिवेश के सजीव वर्णन करत रउआँ ए रचना की माध्यम से पानी (जवने कातिर आजकल..महानगर में हाहाकार मचल रहता) की जगहि पर अमृत पिया रहल बानी। साधुवाद।।

  6. नमस्कार सर !
    सबसे पहिले धन्यवाद रचना प्रकाशित करे खातिर .बाकिर एगो निहोरा बा रचना में निचे से दुसरका लाइन “हो, टपऽ- टपऽ चुअता पसेनवा” निकाल दीहीं त बढ़िया रही .
    धन्यवाद !
    राउर
    ओ.पी.अमृतांशु

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