– रश्मि प्रियदर्शिनी

Rashmi PriyadarshinI

अँगना-दुअरा एक कs देवेले

लोग कहेला

माई के गोड़िया में

चकरघिन्नी बा

दुअरा के बंगली से

अँगना के रसोई तक

चलत रहेले

चलत रहेले

 

परिकरम करे जवन धरती आकास

एक दिन उहे गोड़वा

टेटाए लागल

माई के उमरिया

बुझाए लागल

 

दवाई खूब भइल गाँव में

बाकिर फायदा ना बुझाइल

छोटकू सहर में रहलन

उनका हिस्सा में

माई के इलाज आइल

सहर पहुँचते

डाक्टर बी पी आ वजन देखलन

छोटकुओ याद रखलन

कि माई

कौ किलो के आइल बाड़ी

 

सहरी इलाज के, फायदा बुझाइल

सूखल गोड़

कुछ हरियाइल

माई फेरु जोखाइल

 

माई फेरु जोखाइल

समाचार पहुँचल सगरो

माई बढ़ गइल, चार किलो

छोटकू खबर कइलन

बड़कुओ के

माई में हमार लागल बा

चार किलो

 

बड़कू तनतनइलन

छोटकू मुसकइलन

 

गाँवे पहुँचला पर

माई फेरु जोखाइल

बडकू कहलन

जेतना भेजले रहनी

ओतने बिया माई

कइसन चार किलो ?

 

दुअरा से बाबूजी कहनी

माइयो जोखाये लगली

माई अब जोखाए लगली

माई अब जोखाए लगली

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(रश्मि प्रियदर्शिनी माने भोजपुरी कविता में एगो युवा हस्ताक्षर. साहित्य से पत्रकारिता आ अभिनय तक सक्रिय पहचान. फिलहाल दिल्ली में. प्रस्तुत बा आम आदमी के मन के झकझोरेवाला इहाँके एगो समकालीन कविता.- संपादक)

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3 thoughts on “माई अब जोखाए लगली”
  1. माने के पडी कविता के वजन के।सहज शब्दन आ भाव ले के भी कविता आपन कथ्य के बहाने सामाजिक विद्रूपता आ वर्तमान अवस्था पर अच्छा चोट करतिया।बधाई रश्मि जी -छोट कविता से बडहन बात कहे के राउर कला के नमन।
    उदय-नारायण सिंह,छपरा

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