– ऋचा

चलऽ, फेरु सपनन के फेंड़ लगाईं जा !
मउरल-दनात अमराई से अलगा
सड़की का गुलमुहरन का नीचे
लुकवा दीं जा कूल्हि पुरान योजना
हरियर सुतरी अस लटकत सहजन का झोंप में
बान्हि आईं जा आपन चाह-चिन्ता
जवन होई, तवन होई
आवऽ रेंगनी का काँटन से लथरल जथारथ में
फेरु से नया पौध लगाईं जा
सपनन के !

इच्छा त हइये हई स अनन्त
कहाँ पूरेली सँ, कबो !
अब आधी-अधूरी, बसिया -ताजा जवन होखँ सन
दे दीं जा फिलहाल उनहन के
टेसू- फूलन के बिस्तार
बस बीनि-बीछि के मूर्त्त करीं जा
एक-एगो सपना
पारा-पारी ।
ओमें भराय अमलतास आ गुलमुहर का
फूलन के रंग आ गन्ध
उन्हन के रहस भरल पँखुरिन से
कुछ न कुछ लेके
गूँथि लीं जा एगो माला
ओही में ठाँवाँ ठाईं गूँथ लियाई
एकाध गो मोती अपना बीनल-बीछल इच्छा के
मन के पूरल धागा में
के जाने, कब सुतत-जागत
पूरिये जाय कवनो सपना !

चलऽ, आजुये बो आईं जा
कवनो सपन-बीज कहीं
कोड़ि के माटी एही राह, एही घाट, एही मैदान में
एकोरा
हो सकेला ऊ एक दिन
बन जाय बिरिछ
फूल-फर से लदरियो जाय
आ लवट आवें सँऽ
हमन के छोड़ि के गइल चिरई- चुरुँग ।।


  • श्री विजय दुबे, भरून्धा कछार, वाराणसी रोड,
    ‘कार फाइन एसेसरीज‘ के पीछे, मिर्जापुर 231001 उ0प्र0

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कुछ त कहीं......

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