भउजी हो !
का बबुआ ?
कमजोरका के जोरु भर गाँव भतार.
कांग्रेस का बारे में बतियावत बानी का ?
तू कइसे बूझ गइलू ?
एहघरी एकरे त चरचा बा गली चौराहा पर. रउरा का समुझिलें कि हमरा ई सब मालूमे ना होखे.
ना भउजी, तू त उड़त चिरई के हरदी लगा देबू. तोहरा कइसे ना पता चली. बाकिर ई कहाउत ओकरा पर फिट कइसे बइठत बा ?
सभे ऊँट के चोरी निहूरे निहूरे में कइले चाहत बा. सोचत बा कि कांग्रेस के पप्पू बना दी. बाकिर ई नइखे जानत कि जवना कॉलेज से ई लोग डिग्री लेबे का फेर में बा, ओकर प्रिंसिपल रहल बिया कांग्रेस.
चलऽ देखल जाव ऊँट कवना करवट बइठत बावे.
कवनो करवट बइठे, चउबीस के त साइत निकल गइल बा. अगिला बेर के तइयारी करे लोग. हँ,एक बाति के गाँठ बान्ह लीं. चुनाव का बाद तीन महीना का भितरे जेल गुलजार ना भइली सँ, त रउरा के खीर खियाएब.
खीर के त बाति छोड़ऽ अबहीं. आजु त चाए पिया द, चायवाला का नाम पर. काहे कि अब त तुहूं बदल गइल बाड़ू.
चाय त राउर आवाज सुनते बइठा दिहले रहीं. बइठीं, बस छान के ले आवत बानी.